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गरीबी बचने का जरिया नहीं;पत्नी की हत्या करने वाले आरोपी को दिल्ली HC ने नहीं दी राहत

दिल्ली हाई कोर्ट के जज ने कहा कि सजा सुनाते समय सजा के उद्देश्य को ध्यान में रखना जरूरी है। दी गई सजा अपराधी के अधिकारों और पीड़ित के अधिकारों के साथ-साथ कानून के उद्देश्य के बीच सही संतुलन स्थापित करनी चाहिए।

Utkarsh Gaharwar लाइव हिन्दुस्तान, दिल्लीTue, 27 May 2025 01:32 PM
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गरीबी बचने का जरिया नहीं;पत्नी की हत्या करने वाले आरोपी को दिल्ली HC ने नहीं दी राहत

पत्नी के कत्ल के मामले में अदालत पहुंचे पति को दिल्ली हाई कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया। पति ने बचने के लिए अपनी गरीबी का सराहा लिया तो अदालत ने साफ कहा कि गरीबी कोई सुरक्षा कवच नहीं है। कोर्ट ने 2014 में अपनी पत्नी को आग लगाकर हत्या करने वाले एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने टिप्पणी की कि इस मामले में अपराध को बढ़ाने वाली परिस्थितियां,नरम करने वाली परिस्थितियों से अधिक थीं। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि हालांकि,यह मामला दुर्लभतम मामलों (Rarest of Rare Doctrine) की श्रेणी में नहीं आता,जिसके लिए मृत्युदंड दिया जा सके। अदालत भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराए गए गिरिराज किशोर भारद्वाज उर्फ श्याम नागा की सज़ा की मात्रा पर दलीलें सुन रही थी।

दिल्ली हाई कोर्ट के जज ने कहा कि सजा सुनाते समय सजा के उद्देश्य को ध्यान में रखना जरूरी है। दी गई सजा अपराधी के अधिकारों और पीड़ित के अधिकारों के साथ-साथ कानून के उद्देश्य के बीच सही संतुलन स्थापित करनी चाहिए। न्यायाधीश ने कहा,"गरीबी कोई बड़ी नरम करने वाली परिस्थिति नहीं है।" अपर लोक अभियोजक पंकज कुमार रंगा ने दोषी के लिए मौत की सजा की मांग करते हुए कहा कि उसने 24 सितंबर 2014 को अपनी पत्नी कुसुम पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर और माचिस की तीली से आग लगाकर यह जघन्य अपराध किया था।

अभियोजक ने बताया कि हत्या के बाद आरोपी के बेटों में से एक ने पढ़ाई छोड़ दी और नशे का आदी हो गया,जबकि दूसरा,जो नाबालिग था,एक सब्जी विक्रेता के यहां सहायक के रूप में काम करने लगा। इसके बाद अदालत ने भारद्वाज को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। जज ने टिप्पणी की,"दोषी पहली बार अपराध करने वाला है। दोषी द्वारा किया गया अपराध जघन्य प्रकृति का है। मृतक दोषी की पत्नी थी। मृतक कुसुम और उसके बेटों के परिवार के सदस्यों का सदमा समझा जा सकता है।" अदालत ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLA) को भी यह मामला भेजा ताकि मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों के लिए पर्याप्त मुआवज़ा तय किया जा सके। अदालत ने यह स्वीकार किया कि उन्हें मानसिक आघात,असुविधा,कठिनाई,निराशा और हताशा का सामना करना पड़ा है।