महामारी के बाद लोगों की बचत घटी, कर्ज बढ़ा
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नई दिल्ली, रोशन किशोर/अभिषेक झा। कोरोना महामारी के बाद भारत में घरेलू बचत में गिरावट का रुझान बना हुआ है। वर्ष 2023-24 में घरेलू बचत देश की कुल आय (जीडीपी) का 18.1 फीसदी रही। यह दर पूरी तरह ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर नहीं है, लेकिन बढ़ते कर्ज के कारण शुद्ध घरेलू बचत पर असर पड़ा है। ये तथ्य राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा हाल ही में जारी राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (एनएएस 2025) रिपोर्ट से सामने आए हैं। कुल बचत अब भी ऐतिहासिक औसत के करीब घरेलू बचत में तीन घटक शामिल होते हैं, सकल वित्तीय बचत, भौतिक संपत्तियों में निवेश (जैसे जमीन-जायदाद) और सोना-चांदी के आभूषणों में बचत।
कुल बचत से अगर वित्तीय देनदारियां (जैसे कर्ज) घटा दी जाएं, तो शुद्ध बचत प्राप्त होती है। 2023-24 में घरेलू बचत की जीडीपी में हिस्सेदारी लगभग उसी स्तर पर रही, जितनी 2015-16 और 2016-17 में थी। महामारी के समय 2020-21 में यह आंकड़ा अचानक बहुत बढ़ गया था, संभवतया लॉकडाउन के कारण खर्च न कर पाने की वजह से। इसी कारण मौजूदा गिरावट तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतीत हो रही है। ग्राफ : घरेलू बचत की जीडीपी में हिस्सेदारी (प्रतिशत में) कर्ज में बढ़ोतरी ने बचत को किया कम 2022-23 और 2023-24 में घरेलू क्षेत्र की वित्तीय देनदारियां रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं। यद्यपि सकल वित्तीय बचत और भौतिक संपत्तियों में निवेश में कोई बड़ी गिरावट नहीं दिखती, लेकिन बढ़ते कर्ज ने शुद्ध बचत को दबा दिया है। यह स्पष्ट संकेत है कि घरों ने बीते वर्षों की तुलना में कहीं अधिक गति से ऋण लिया है। बैंक ऋण बना कर्ज का प्रमुख स्रोत 2023-24 में घरेलू कर्ज का लगभग 99 फीसदी हिस्सा बैंकों से लिया गया था, जो अब तक का सबसे ज्यादा है। यह अच्छी बात है क्योंकि भारत के बैंक आमतौर पर सोच-समझकर ही कर्ज देते हैं। इसलिए माना जा सकता है कि जो लोग कर्ज ले रहे हैं, वे अच्छे भुगतान करने वाले होंगे। दिलचस्प बात यह है कि पिछले कुछ सालों में बैंक से मिलने वाला कर्ज कम हो गया था, लेकिन अब फिर से बढ़ गया है।
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