लंबे समय तक लिव इन में रहने पर बने संबंध को सहमति मान सकते हैं : कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई जोड़ा लंबे समय तक लिव-इन में रहता है, तो उनके बीच वैध सहमति का अनुमान लगाया जा सकता है। कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि यदि दोनों वयस्क एक...

सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि जब कोई जोड़ा लंबे समय से लिव-इन में रहता है, तो शारीरिक संबंध बनने पर उनके बीच वैध सहमति होने का ही अनुमान लगा सकते हैं। शीर्ष अदालत ने शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म के आरोपी के खिलाफ दर्ज मुकदमा रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। जस्टिस संजय करोल और मनोज मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब दो वयस्क कई सालों तक लिव-इन में रहते हैं, तो यह आरोप कि ‘शादी के झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए गए, को स्वीकार नहीं किया जा सकता। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब एक प्रेमी जोड़ा लंबे समय तक लिव-इन में रहता है, तो यह अनुमान लगाया जाता है कि वे शादी नहीं करना चाहते थे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो हमारे विचार में यह इस बात को जाहिर करता है कि उनके बीच संबंध एक वैध सहमति पर आधारित था। समझौता होने के बाद मुकदमा दर्ज कराया सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में लड़का-लड़की दोनों लगभग दो साल से अधिक समय तक एक साथ किराए के मकान में रहे। दोनों ने 19 नवंबर, 2023 को एक समझौता पत्र भी तैयार किया, जिसमें एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार की पुष्टि की और कहा कि वे शादी करेंगे। हालांकि 23 नवंबर, 2023 को लड़की ने लड़के पर जबरन यौन संबंध बनाने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कर दिया। पीठ ने कहा कि दर्ज एफआईआर में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि पहले शारीरिक संबंध केवल इस आधार पर बनाए गए क्योंकि व्यक्ति ने शादी का वादा किया था। जोड़े को परिणाम की जानकारी थी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि दो वयस्क एक साथ लिव-इन जोड़े के रूप में कई सालों से अधिक समय तक रहते हैं और साथ में सहवास करते हैं, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने स्वेच्छा से इस रिश्ते को चुना है क्योंकि उन्हें इसके परिणामों के बारे में पूरी जानकारी थी। इसलिए, यह आरोप कि इस तरह के रिश्ते में शादी का वादा किया गया था, ऐसी परिस्थितियों में स्वीकार योग्य नहीं है। उत्तराखंड हाईकोर्ट का फैसला रद्द इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ दर्ज मुकदमा बरकरार रखा था। हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि संज्ञेय अपराध हुआ है। महिलाओं की वित्तीय आजादी के चलते बढ़े लिव-इन रिलेशनशिप सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक या दो दशक पहले तक लिव-इन रिलेशनशिप चलन में नहीं थे, लेकिन अब अधिक से अधिक महिलाएं वित्तीय रूप से स्वतंत्र हैं और अपने जीवन को अपनी शर्तों पर तय करने का निर्णय लेने की क्षमता रखती हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं की इसी वित्तीय स्वतंत्रता ने अन्य बातों के साथ-साथ, ऐसे लिव-इन के प्रसार को बढ़ावा दिया है। पीठ ने कहा कि ऐसे में जब इस तरह का मामला अदालत के समक्ष आता है, तो उसे अत्यधिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए।
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