murder God does not like God wants mercy not blood Statement VHP national spokesperson Bakrid ये सिर्फ हत्या,ईश्वर को पसंद नहीं... ईश्वर दया चाहते है खून नहीं...बकरीद से पहले VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता का बयान, Jaipur Hindi News - Hindustan
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ये सिर्फ हत्या,ईश्वर को पसंद नहीं... ईश्वर दया चाहते है खून नहीं...बकरीद से पहले VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता का बयान

बकरीद जैसे बड़े मुस्लिम पर्व से पहले जानवरों की कुर्बानी को लेकर देशभर में विवाद एक बार फिर गहराता जा रहा है।

Sachin Sharma लाइव हिन्दुस्तानThu, 5 June 2025 11:21 AM
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ये सिर्फ हत्या,ईश्वर को पसंद नहीं... ईश्वर दया चाहते है खून नहीं...बकरीद से पहले VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता का बयान

बकरीद जैसे बड़े मुस्लिम पर्व से पहले जानवरों की कुर्बानी को लेकर देशभर में विवाद एक बार फिर गहराता जा रहा है। इस बार विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने इसे पूरी तरह "गैर-धार्मिक, असंवैधानिक और अमानवीय कृत्य" बताते हुए इसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है। परिषद का कहना है कि धर्म के नाम पर जीव हत्या किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती।

VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमितोष परीक ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि बकरीद पर कुर्बानी देना न तो इस्लाम की कोई धार्मिक अनिवार्यता है, न ही यह किसी नागरिक का संवैधानिक अधिकार। उन्होंने दावा किया कि कुरान शरीफ में भी कहीं यह नहीं कहा गया कि बकरीद पर जानवर की बलि देना अनिवार्य है।

"ईश्वर दया चाहता है, खून नहीं" – वीएचपी प्रवक्ता

अमितोष परीक ने कहा कि "ईश्वर को दया, करुणा और अहिंसा पसंद है, न कि निर्दोष जानवरों की हत्या।" उन्होंने आगे कहा कि कुर्बानी जैसी परंपराएं आज के सभ्य समाज में पूरी तरह से बर्बर और अस्वीकार्य हैं।

“यह सोच पूरी तरह गलत है कि कुर्बानी से अल्लाह खुश होता है। क्या किसी जीव की हत्या कर कोई परमेश्वर प्रसन्न हो सकता है? अगर नहीं, तो फिर इसे धार्मिक कर्तव्य कहना ही गलत है।”

कमरे में हत्या भी हत्या ही है

विश्व हिंदू परिषद ने उन हालातों पर भी सवाल उठाए हैं, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग अब बंद कमरों या फ्लैट्स में कुर्बानी करने लगे हैं। परिषद ने इसे “पाप को छिपाने का प्रयास” बताते हुए कहा –चाहे हत्या खुले में हो या कमरे के भीतर, वह हत्या ही कहलाएगी। कमरे में दरवाजा बंद कर लेने से हत्या का पाप कम नहीं हो जाता। VHP का दावा है कि यह धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक अपराध है, और इस पर सख्ती जरूरी है।जैसे सती और बाल विवाह बंद हुए, वैसे ही कुर्बानी भी रुके’

VHP प्रवक्ता ने कुर्बानी को एक "कुप्रथा" करार देते हुए कहा कि जैसे भारत में सती प्रथा, बाल विवाह और नरबलि जैसी कुरीतियों को समाप्त किया गया, वैसे ही अब समय है कि बकरीद की कुर्बानी जैसी हिंसक परंपराओं पर भी रोक लगे।

कोई भी धर्म हिंसा की अनुमति नहीं देता। अगर प्राचीन हिंदू परंपराओं को कानून के जरिये सुधारा जा सकता है, तो बकरीद पर कुर्बानी की परंपरा को भी बंद किया जाना चाहिए," परीक ने कहा।

PETA पर भी उठाए सवाल

पशु अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संस्था PETA (पीपुल्स फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स) को लेकर भी वीएचपी ने नाराजगी जाहिर की है। परिषद ने पूछा – जब होली और दिवाली जैसे हिंदू त्योहारों पर पर्यावरण के नाम पर नैतिकता की दुहाई दी जाती है, तो PETA बकरीद पर खामोश क्यों रहती है? क्या जानवरों की जान तब कीमती नहीं होती?"

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों का हवाला

अमितोष परीक ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि कुर्बानी कोई मौलिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि “पशुओं की कुर्बानी संवैधानिक या धार्मिक अधिकार नहीं मानी जा सकती।”

इसके अलावा देश के दर्जनभर राज्यों के हाई कोर्ट भी समय-समय पर इस पर राय दे चुके हैं कि कुर्बानी के नाम पर जानवरों की हत्या समाज और संविधान दोनों के खिलाफ है।

मुस्लिम समाज से की अपील

परिषद ने मुस्लिम समाज से आग्रह किया है कि वे इस परंपरा को धार्मिक रंग देने के बजाय इसे सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण से देखें। VHP का कहना है कि अब समय है कि मुस्लिम समाज खुद आगे आकर इस परंपरा को नकारे और नई पीढ़ी को करुणा और अहिंसा का संदेश दे। धर्म किसी निर्दोष प्राणी की हत्या की इजाजत नहीं देता। अगर बकरीद का असली संदेश ईश्वर की भक्ति और त्याग है, तो उसे खून बहाकर नहीं बल्कि करुणा दिखाकर पूरा करें," – वीएचपी।

विश्व हिंदू परिषद के इस बयान ने एक बार फिर बकरीद की कुर्बानी को लेकर सामाजिक और धार्मिक बहस को तेज कर दिया है। सवाल अब सिर्फ परंपरा का नहीं, बल्कि संविधान, संवेदना और सह-अस्तित्व का है। क्या बकरीद की कुर्बानी एक धार्मिक अधिकार है या फिर केवल परंपरा के नाम पर होती बर्बरता? इस पर बहस अब नई दिशा की ओर बढ़ रही है।

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