इलेक्ट्रिक व्हीकल की सेल्स को बढ़ाने कई राज्यों में ईवी पॉलिसी लागू की गई है। हालांकि, राज्यों की सरकार समय-समय पर इसमें बदलाव करती रहती है। खासकर ईवी पॉलिसी से ग्राहकों को सब्सिडी का फायदा मिल जाता है।
विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने सुनील राउत से मुलाकात की, जो संजय राउत के भाई हैं। इसके अलावा यह भी चर्चा है कि सुनील राउत को नेता विपक्ष की जिम्मेदारी मिल सकती है। वह विखरोली विधानसभा सीट से चुनकर सदन में पहुंचे हैं।
विपक्षी गठबंधनों में रहे दल गले मिल रहे हैं तो वहीं साथियों के बीच अदावत के हालात हैं। महाविकास अघाड़ी में शामिल शरद पवार ने एकनाथ शिंदे को दिल्ली में सम्मानित किया तो उद्धव ठाकरे गुट भड़क गया। सम्मान को ही कह दिया कि ये या तो खरीदे जाते हैं या फिर बेचे जाते हैं।
संजय राउत ने कहा कि एकनाथ शिंदे को डर है कि उनके फोनों की टैपिंग होने के साथ ही दिल्ली की एजेंसियां उनकी हर मूवमेंट पर नजर बनाए हुए हैं। राउत ने कहा कि मुझे विधायक ने कहा कि अमित शाह ने चुनाव से पहले एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने का वादा किया था, लेकिन नतीजा आने के बाद वह पलट गए।
भाजपा के मंत्री गणेश नाइक ने बुधवार को कहा कि हम चाहते हैं कि ठाणे में कमल खिले। भाजपा का यह उत्साह और ठाणे को लेकर प्लान एकनाथ शिंदे के लिए टेंशन भरा है, जो उद्धव ठाकरे से बागी होकर सीएम बने थे और अब उनका ही गुट शिवसेना नाम से पार्टी चला रहा है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मुंबई में ट्रैफिक को कम करने की सरकार की रणनीति का यह हिस्सा है। उन्होंने कहा, 'हमने शहर में कई सार्वजनिक पार्किंग सुविधाएं मुहैया कराई हैं, जिन तक अब ऐप के जरिए भी पहुंचा जा सकता है।'
सरकार से नाराज बताए जा रहे एकनाथ शिंदे के घर पर भी प्रदर्शन होने लगे हैं। शिवसेना नेता और रोजगार गारंटी मिनिस्टर भारत गोगावाले के समर्थकों ने एकनाथ शिंदे के घर का घेराव किया। मंगलवार की शाम को साउथ मुंबई में स्थित एकनाथ शिंदे के बंगले मुक्तागिरी पहुंचे गोगावाले समर्थकों ने नारेबाजी भी की।
भले ही शिंदे ने डिप्टी सीएम का पद संभाल लिया है, लेकिन अब भी भाजपा के साथ रिश्ते पहले की तरह सहज नहीं हो पाए हैं। वहीं अजित पवार खेमे का कहना है कि फडणवीस सरकार ने हमारे भी कुछ फैसलों को बदला है, लेकिन हम नाराजगी जाहिर नहीं कर रहे हैं। शिवसेना हर मामले में विरोध दर्ज कराकर संबंध खराब कर रही है।
देवेंद्र फडणवीस ने अपने निजी अनुभव को याद करते हुए कहा, ‘मैं तब 5-6 साल का था और उस दौरान मेरे पिता दो साल तक जेल में रहे थे। अगली पीढ़ियों को आपातकाल के दौरान किए गए अत्याचारों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।’
छगन भुजबल को उम्मीद थी कि उन्हें कम से कम कैबिनेट में जरूरी शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा था कि मैं किसी के हाथ का खिलौना नहीं हूं कि जब चाहा खेला और जब चाहा रख दिया। बागी रुख के चलते ही उनके भाजपा में जाने की चर्चाएं तेज हैं।