चीन ने अमेरिका पर अपने दबाव को बढ़ाते हुए कई दुर्लभ खनिजों का निर्यात पूरी तरह से रोक दिया है। इससे न केवल अमेरिकी प्रौद्योगिकी क्षेत्र दबाव में आ गया है बल्कि सरकार पर भी प्रेशर बढ़ता जा रहा है।
यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका रूस से तेल खरीद पर कड़ा रुख अपना चुका है। ऐसे में भारत ने अब अमेरिका से तेल आयात बढ़ाने की योजना बनाई है ताकि व्यापार वार्ता में इसे एक सौदेबाजी के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।
अमेरिका को अब इस बात की चिंता सताने लगी है कि चीनी सक्रियता से न केवल उसके पड़ोसी देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत होगे बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन एक बड़ी ताकत बनकर उभर सकता है।
दुनिया की दो सबसे बड़ी ताकतें अब सीधे टकराव की राह पर हैं। टैरिफ वॉर की आड़ में अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक दबदबे की जंग छिड़ी है। इसमें बड़ा सवाल यही है कि दोनों में से पहले कौन झुकेगा?
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये दुर्लभ खनिज डिफेंस इंडस्ट्री के अलावा कम्प्यूटर, चिप निर्माण और इलेक्ट्रिकल वाहनों के निर्माण लिए भी जरूरी हैं।
टैरिफ के इस तनाव का असर वैश्विक वित्तीय बाजारों पर भी देखने को मिला। अमेरिका और एशियाई बाजारों में भारी गिरावट दर्ज की गई, जो कई वर्षों की सबसे बुरी गिरावटों में से एक रही।
अमेरिकी सांसदों का कहना है कि चीन कांगो में चोरतंत्र के माध्यम से वहां के अमूल्य खनिजों का दोहन कर रहा है। इसलिए अमेरिका को चीन द्वारा किए जा रहे ऐसे अवैध खनिज दोहन को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए।
चीन के सबसे बड़े शिपयार्ड चाइना स्टेट शिपबिल्डिंग कॉरपोरेशन ने 2024 तक टन भार के हिसाब से उतने कॉमर्शियल जहाज बना लिए हैं, जितने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से आजतक अमेरिका ने नहीं बनाए हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के बीच संबंधों पर सकारात्मक टिप्पणी की है, जिसकी चीन ने प्रशंसा की है।
नई दिल्ली, मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अपने अजन्मे बच्चे का नाम रखने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। सारा विंन विलियम्स की नई किताब में यह खुलासा हुआ...