बोले आगराः सारी दुनिया का बोझ उठाने वाले नहीं भर पा रहे परिवार को पेट
Agra News - आगरा में कुलियों की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है। लिफ्ट और एस्केलेटर की सुविधा के कारण काम कम हो गया है। पहले 500-700 रुपये कमाने वाले कुली अब 100-200 रुपये ही कमा पा रहे हैं। उनके सामने परिवार चलाने का...
लाल शर्ट, बाजू पर बंधा पीतल का बिल्ला और ट्रेन के आते ही सिर पर सामान रखकर प्लेटफार्म पर दौड़ लगाने वाले कुली अब परेशान हैं। कभी रेलवे स्टेशनों की शान माने जाने वाला कुली समुदााय की आर्थिक स्थिति अब गड़बड़ा रही है। रेलवे स्टेशन पर लिफ्ट व एस्केलेटर की सुविधा शुरू होने और पहियों वाले ब्रीफकेस (ट्रॉली बैग) के चलन के कारण कुली अब परेशान हैं। उनको काम मिलना काफी कम हो गया है। 500-700 रुपये प्रतिदिन कमाने वाले कुली वर्तमान में बमुश्किल 100-200 रुपये ही कमा पाते हैं। काम की कमी के कारण कुली काम छोड़ने तक की सोचने लगे हैं। सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं, लोग जाते हैं, हम यहीं पे खड़े रह जाते हैं।
कुलियों का जिक्र होते ही वर्ष 1983 में आई अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म कुली का यह गाना बरबस ही याद आ जाता है। इस फिल्म ने पहली बार रेल यात्रियों का बोझ उठाने वाले इस तबके के संघर्ष को सबके सामने रखा था। लेकिन इतने सालों बाद भी कुलियों की जिंदगी नहीं बदल सकी है। एक समय पर बाप की जगह बेटे कुली बनने को तैयार रहते थे, परंतु अब ऐसा नहीं हो रहा है। कुली पूरी मेहनत से काम तो कर रहे हैं, परंतु मेहनत के हिसाब से पैसा नहीं मिल रहा है।
आगरा कैंट पर 100 से अधिक, आगरा फोर्ट पर 60 से अधिक और राजामंडी पर एक दर्जन कुली बीते कई सालों से परेशान हैं। यात्रियों की सुविधा देने के लिए रेलवे ने जैसे-जैसे स्टेशनों पर लिफ्ट व एस्केलेटर की सुविधा शुरू की, कुलियों की कमाई कम होना शुरू हो गई। रही सही कसर यात्रियों के पहियों वाले ब्रीफकेस (ट्रॉली बैग) ने पूरी कर दी। अब यात्री कुलियों से सामान उठाने के बजाए खुद ही अपना लगेज लेकर ट्रेन तक जा रहे हैं।
वर्तमान में 12-12 घंटे की दो शिफ्टों में सभी रेलवे स्टेशनों पर कुली लोगों का बोझ उठा रहे हैं। काम न मिलने से अब इन कुलियों के सामने परिवार पालने का संकट हो गया है। सभी कुली आर्थिक तंगी का सामना कर रहे है। कई बार तो उनकी बोहनी तक नहीं होती है और उन्हें खाली हाथ घर लौटना पड़ता है। आगरा कैंट, आगरा फोर्ट से प्रतिदिन 250 से अधिक यात्री ट्रेनों गुजरती हैं। इसके बावजूद कुलियों के पास उतना काम नहीं मिल रहा है, जितना उनको पहले मिलता था। कुलियों का कहना है कि लिफ्ट, एस्केलेटर और ट्रॉली बैग ने काम खत्म किया साथ ही अन्य वजहों से भी उनके सामने खाने तक का संकट खड़ा कर दिया है।
अब केवल भारी-भरकम सामान लाने वाले यात्रियों के भरोसे उनकी रोजी-रोटी चल रही है। कुलियों का कहना है कि रेलवे स्टेशनों पर लगे ट्रेन समय-सारिणी के डिस्प्ले से भी उनकी रोजी-रोटी का संकट खड़ा हुआ है। अब यात्री डिस्प्ले पर ट्रेन की स्थिति देखकर ही प्लेटफार्म पर मूव करते हैं। उन्हें कुली की जरूरत महसूस नहीं होती है। इसके अलावा स्टेशनों पर ऑटो-टैक्सी चालक भी उनकी रोजी-रोटी पर ग्रहण की तरह बैठ गए हैं। चालक ट्रेन के प्लेटफार्म पर पहुंचने से पहले ही ट्रेन के गेट पर लटक जाते हैं और वहीं से यात्रियों को होटल ले जाने की बात करके उनका सामान खुद ही लेकर टैक्सी-ऑटो तक पहुंच जाते हैं। इस वजह से यात्रियों को कुली की जरूरत नहीं पड़ती है।
इसके साथ ही रेलवे की ओर कुलियों को कोई प्रोत्साहन न मिलने और दिक्कतों की सुनवाई भी कुलियों को काम छोड़ने पर मजबूर कर रही है। बीते 35 साल से कुली का काम कर रहे खेम सिंह बताते हैं कि पहले परिवार का एक बेटा बाप की जगह कुली बनने को सहर्ष तैयार हो जाता था। परंतु अब बेटा इस पेशे में नहीं आना चाहता है। स्थिति इतनी खराब है कि कभी-कभी तो 12 घंटे स्टेशन पर रहने के दौरान बोहनी तक नहीं होती है। पर्यटन सीजन में पहले अच्छी कमाई हो जाती थी, परंतु अब पर्यटन सीजन में भी पूरे दिन में 100 से 200 रुपये ही कमा पाते हैं।
विदेशी पर्यटक भी अब ट्रॉली बैग और कम सामान के साथ आते हैं। इस वजह से कुली अधिकांश समय हाथ पर हाथ रखकर बैठने को मजबूर होते हैं। कुछ दिन काम पर नहीं आए तो जेब में एक रुपया भी नहीं होता है। कुलियों की इस दयनीय दशा की ओर रेल प्रशासन का कोई ध्यान नहीं जाता है। हमें तो रोज गढ्ढा खोदना है और रोज पानी पीना है। परंतु अब तो लगता है कि काम ही छोड़ देना चाहिए।
रेलवे करता है दोयम दर्जे का व्यवहार
कुलियों की पीड़ा कमाई कम होने के साथ-साथ रेल प्रशासन भी बढ़ाता है। दशकों से रेल प्रशासन की ओर से कुलियों को साल में एक फ्री यात्रा पास (केवल पति-पत्नी), साल में एक बार लाल कमीज के लिए कपड़ा, रेलवे हॉस्पीटल की ओपीडी में डॉक्टरी परीक्षण और सर्दी के मौसम में कभी-कभार रेलवे की ओर से कंबल प्रदान किए जाते हैं। कुलियों का दर्द है कि रेलवे से कई बार फ्री यात्रा पास में बच्चों के नाम जोड़ने की अपील कर चुके हैं, परंतु कोई सुनवाई नहीं होती। अब पति-पत्नी घूमने जाएंगे तो छोटे बच्चों को किसके पास छोड़कर जाएंगे। उनकी टिकट लेकर यात्रा करने की हैसियत अब बची नहीं है। कुली की वर्दी को लेकर भी उनकी शिकायतें हैं। कुलियों का कहना है कि रेल प्रशासन हमें साल में केवल एक बार कमीज के लिए लाल कपड़ा देता है। सर्दी के मौसम में हमें रेलवे की ओर से लाल रंग के स्वेटर अथवा जैकेट भी मिलने चाहिए।
रेलकर्मियों की तरह अस्पताल में हो इलाज
आगरा में रेलवे स्टेशनों पर कुली के रूप में काम कर रहे सभी का कहना है कि उन्हें रेल प्रशासन की ओर से रेलकर्मियों की तरह बीमारी के समय इलाज मिलना चाहिए। अभी केवल रेलवे अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टर को दिखाकर वहीं से दवा मिलने की सुविधा है। यदि कोई कुली गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो उसे रेलकर्मियों की तरह पैनल वाले अस्पताल में भर्ती करके इलाज की सुविधा भी मिलनी चाहिए। इस बारे में कुली रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल मुख्यालय से बरसों से मांग कर रहे हैं, परंतु रेलवे ने उनकी मांग को अबतक नजरअंदाज कर रखा है। कुलियों का कहना है कि जब वह रेल यात्रियों का सामान उठाने के काम में रेलवे का 24 घंटे सहयोग कर रहे हैं तो रेलवे उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों कर रहा है। बूढ़े हो चुके कुली बीमारी के समय इलाज के कहां जाएं। महंगे इलाज के चलते अक्सर कुली अच्छे डॉक्टर व हास्पीटल में नहीं जा पाते हैं।
रेल प्रशासन उन्हें बना दे रेलकर्मी
कुली सुलेमान खान का कहना है कि 2008 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कुलियों को रेलवे में सरकारी नौकरियां दी थीं। उनके जाने के बाद से 16 साल बीत गए, रेलवे ने एक भी कुली को नौकरी नहीं दी। सुलेमान का कहना है कि कुली भी रेल परिवार का हिस्सा हैं। अब उनकी रोजी-रोटी संकट में है। काम न मिलने पर या तो कुली काम छोड़ रहे हैं अथवा परिवार के सड़क पर आने का इंतजार कर रहे हैं। रेलवे को एक नीति बनाकर कुलियों को रेलकर्मी बनाने का रास्ता निकालना चाहिए। आज भी रेलवे में चतुर्थ श्रेणी के कई पद ऐसे हैं जहां कुली रेलकर्मी बनने के बाद आसानी से काम कर सकते हैं। हम रेलवे से भीख नहीं मांग रहे हैं, हमने रेलवे को अपनी जवानी दी है, अब हमें जरूरत है तो रेलवे को हमारा साथ देना चाहिए। जब लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री रहते कुली को रेलकर्मी बना सकते हैं तो मोदी सरकार के रेलमंत्री ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं।
कुली सहायक के रेट का समय-समय पर रिवीजन किया जाता हैं । पूर्व में दरें नवंबर 2023 में निर्धारित की गई थीं। आगरा मंडल में रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित सभी सुविधाएं कुली सहायकों को मुहैया करायी जा रही हैं। कुली समुदाय रेलवे का अभिन्न अंग है। फिलहाल कुलियों की भर्ती बंद है। आगरा रेल मंडल में अंतिम बार 2010 में कुली भर्ती हुई थी।
प्रशस्ति श्रीवास्तव, पीआरओ आगरा रेल मंडल
कुलियों की पीड़ा...
हम रोज मेहनत करते हैं, लेकिन सड़कों पर भीख नहीं मांग सकते। हम काम और सरकार से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी चाहते हैं। लंबे समय से मांग करते आ रहे, परंतु कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
अनिल कुमार, कुली
स्टेशन पर अब काम कम मिल रहा है। पहले जहां दिन में 500 से 700 रुपये कमा लेते थे, अब बमुश्किल 100-200 रुपये ही कमा रहे हैं, आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी है। परिवार सड़क पर आ गए हैं।
जावेद अली, कुली
स्टेशन पर अब काम नहीं मिल रहा है। इसकी वजह ट्रॉली बैग हैं। कोरोना संक्रमण के बाद से तो कामकाज पूरी तरह से ठप हो चुका है। इससे भी हमारे काम पर भी असर पड़ा है।
खेम सिंह, कुली
पहले से ही काम कम था, लेकिन यात्रियों द्वारा सामान उठवाने की कम प्रवृत्ति ने कुलियों को काम मिलने में परेशानी बढ़ दी है। यात्री अपने सामान खुद ही उठा लेते हैं, जिससे कुलियों को काम नहीं मिल रहा है।
फकीरा, कुली
कुली का बिल्ला किसी समय बड़ी इज्जत रखता था, परंतु अब ऐसा नहीं है। नई पीढ़ी कुली का काम नहीं करना चाहती है। अब तो ऐसा लगता है कि आने वाले कुछ सालों में कुली बिरादरी कहीं गायब हो जाएगी।
सुलेमान, कुली
पति की मृत्यु के बाद साल पहले कुली का बिल्ला अपने बाजू पर लगाकर काम शुरू किया था। उम्मीद थी कि दो बच्चों को अच्छे से पाल लूंगी, परंतु अब ऐसा लगता है कि कुली बनने का निर्णय लेकर बहुत बड़ी गलती कर दी।
पूनम रानी, कुली
पहले रेलवे स्टेशन पर कुली से सामान उठवाने वाले लोग ऊंचे तबके के माने जाते थे, अब तो वो भी ट्रॉली बैग लेकर सफर कर रहे हैं। थोड़ा बहुत विदेशी पर्यटकों से कमाई हो जाती है। बाकी तो खाली हाथ ही रहते हैं।
इकरार खान, कुली
पूरी जवानी कुली का काम करते हुए बीत गई। अब खाने का संकट खड़ा हो गया है। रेल प्रशासन से भी कोई मदद नहीं मिल रही है। कई दिन तो बोहनी के लिए भी तरसना पड़ता है। सरकार को हमारी ओर ध्यान देना चाहिए।
उत्तम चंद, कुली
रेलवे के कुली वर्तमान में बहुत परेशान हैं। काम बहुत कम हो गया है। प्रतिदिन 100 से 200 रुपये ही कमा पा रहे हैं। हम 15 साल से यह काम कर रहे हैं। अब दूसरा काम कैसे करें। परिवार पर संकट देखा नहीं जा रहा है।
पिंकू निगम, कुली
2010 में कुली बनने की परीक्षा पास करके उम्मीद थी कि कुली के काम से रोजी-रोटी आसानी से चल जाएगी। परंतु अब काम नहीं मिल रहा है। कोरोना काल के बाद काम पर बहुत कम हो गया है। यात्री अब ट्रॉली बैग लेकर यात्रा कर रहे हैं।
मुंद्रा देवी, कुली
काम तो मिल ही नहीं रहा है, रेलवे भी हमें सुविधाओं के नाम पर केवल छल रहा है। पैसा जेब में है नहीं और रेलवे से सुविधाएं मांगी जाती है तो वह भी अनसुनी कर देता है। जल्द हालात नही सुधरे तो काम छोड़ना पड़ सकता है।
सलीम खान, कुली
अब सुविधाओं का दौर है। रेलवे लिफ्ट और एस्केलेटर स्टेशन पर लगा रहा है। यात्री भी ट्रॉली बैग पसंद कर रहे हैं। कुली का काम कम हुआ है। रेलवे कुलियों की मदद करे। रेलवे कुलियों के लिए वेतन की शुरुआत कर सकता है।
राहुल उपाध्याय, यात्री
कुली फिल्म ने कुली समुदाय को पूरे देश में फेमस कर दिया था। अब समय बदल गया है। कुलियों की दयनीय हालत को देखते हुए रेलवे उन्हें नौकरी देकर उनकी मेहनत को नया मुकाम दे सकता है। कुली मेहनती समुदाय है।
सोनू कुरैशी, यात्री
कुली कड़ी मेहनत करते हैं। परंतु समय के साथ यात्री सुविधाओं में इजाफा होने से अब रेलवे उन्हें नए तरीके ईजाद कर परिवार पालने में मदद कर सकता है। पूर्व में रेलवे ने कुलियों को नौकरी दी है, अब भी ऐसा हो सकता है।
कुनाल, यात्री
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