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बोले आगरा:साहित्य पर ‘सांसों का संकट

Agra News - आगरा में कई साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से शहर को समृद्ध किया है। गालिब, मीर तकी मीर जैसे महान लेखकों की भूमि पर आज साहित्यिक सुविधाओं की कमी है। युवा लेखकों के लिए उचित मंच नहीं होने से उनकी प्रतिभा...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराMon, 21 April 2025 05:50 PM
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बोले आगरा:साहित्य पर ‘सांसों का संकट

आगरा में अनेकों नाम ऐसे रहे हैं जिन्होंने साहित्य की दुनिया को अपने लेखन से समृद्ध किया है। अपनी शायरी के दम पर दुनिया भर के कद्रदानों के दिलों पर राज करने वाले करने वाले गालिब का आगरा कनेक्शन सब जानते हैं। मीर तकी मीर, गोपाल दास नीरज, नजीर किसी न किसी रूप में आगरा के ही कहलाए। शायरी की दुनिया के बड़े नाम रखने वाले शहर का वर्तमान साहित्य व्यवस्थाओं को लेकर थोड़ा मायूस है। इंतजामों की कसौटी पर स्वयं को पिछड़ा पाता है। उसकी चिंता इस बात की है कि मीर और गालिब की धरती व्यवस्थाओं और अवसरों के अभाव में साहित्य की फसल से वंचित न हो जाए।

एक साहित्य प्रेमी की पीड़ा इन शब्दों में आई। ऐसे तो सब गुमनाम हो जाएगा। साहित्य के युवा हस्ताक्षर गुमनामी में खो जाएंगे। अक्षरों का सौंदर्य वक्त के साथ दम तोड़ देगा। युवाओं के अनमोल साहित्यिक वाक्य का विस्तार मर जाएगा। गालिब, मीर तकी मीर, नजीर, नीरज की कविताएं और शायरी लबों तक रह जाएंगी।

चाहे सब कुछ हो सोशल मीडिया पर, फिर भी साहित्यिक विरासत की इस सरजमीं को काफी कुछ चाहिए। शहर में काफी बड़ी संख्या में ऐसा युवा हैं जो कविता, शायरी, छंद, दोहे लेखन की शैशव अवस्था से गुजर रहे हैं। युवाओं के पास ऐसा कोई मंच नहीं है जहां एक साथ बैठकर काफिए, शब्द सौंदर्य, विषयवस्तु आदि पर चर्चा कर सकें। ताज नगरी में युवाओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो साहित्यिक रुचि के तहत कल्पनाओं को कलम से कागज पर उकेर रहा है।

विडंबना देखिए, हिंदी दिवस पर कई स्कूलों में बच्चों की होने वाली काव्य गोष्ठी अगले साल तक के लिए विराम ले लेती है। जबकि छोटी उम्र के इन कलाकारों को नियमित मौके मिलें तो उनके अंदर के कलाकार में निखार लाया जा सकता है। ऐसे लेखन के जज्बे को मजबूत साहित्यिक प्लेटफॉर्म की दरकार है। यह कविताएं लिखने वाले हिंदी के होनहारों को सीमित आयोजन से संबंध नहीं। यह मौके किसी दिवस या पर्व से बंधे नहीं हो। इसमें निरंतरता की जरूरत है।

एक बड़ी कमी आयोजन स्थल को लेकर कही जाती है। शहर की साहित्यिक विभूतियां सक्रिय तो रहती है, लेकिन स्थल की कमी उनके उत्साह को कम करती है। अधिकांश गोष्ठियां नागरी प्रचारणी सभागार या यूथ हॉस्टल में होती हैं। कुछ साहित्यकार अपने घर में गोष्ठियां, महफिल ए शायरी का आयोजन करते हैं। सालों से चली आ रही इस समस्या का समाधान नहीं हो सका है।

यहां तक कि शहर की साहित्यिक संस्थाओं को भी होटल, रेस्टोरेंट आदि में काव्य गोष्ठियां करनी पड़ती हैं। शहर में दो-तीन सस्ते स्थानों के अलावा साहित्यकारों के लिए दूसरा कोई स्थान नहीं है। साहित्यकारों का मानना है कि शहर की साहित्यिक विरासत सदियों से विस्तार ले रही है। इसका सफर अनंत है। सब कुछ बेहतरीन है। साहित्यकारों को अगर सुविधाएं मिल जाएं, तो शहर के साहित्य को सांसे मिल जाएंगी।

संवरने के इंतजार में नागरी प्रचारणी

शहर का साहित्यिक ऊर्जा केंद्र नागरी प्रचारणी को व्यवस्था की नजरें इनायत होने का इंतजार है। सबसे ज्यादा काव्य गोष्ठियां, साहित्यिक बैठकें यहीं होती हैं। शहर के बीचों बीच स्थित होने के कारण यह उम्र दराज साहित्यकारों की मंडलियों के लिए एकमात्र मुफीद जगह है। इसकी हालत भी ज्यादा ठीक नहीं है।

वाटर कूलर, एसी, नई लाइब्रेरी जैसी आधुनिक सुविधाओं से नागरी प्राचरणी को संवरने की जरूरत है। शहर के तमाम साहित्यकारों का कहना है कि कम से कम दो शौचालय, पीने के पानी, एसी, लाइब्रेरी, पुराने लेखकों, कवियों, शायरों की सदाबाहर पुस्तकें यहां होनी चाहिए। हर कार्यक्रम का शुल्क लगना चाहिए। इसमें साहित्यकारों को रियायत मिलनी चाहिए। इससे साहित्यकारों की बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है।

साहित्यिक केंद्रों की कमी

मीर तकी मीर के शहर में आधुनिक साहित्य के लिए लेखकों के पास पर्याप्त स्थान नहीं है। युवा हस्ताक्षरों से लेकर प्रख्यात साहित्यकारों को घरों में गोष्ठियां, संगोष्ठियां करनी पड़ती हैं। शहर में लगभग हर रोज कोई न कोई साहित्यिक संस्था गोष्ठियों का आयोजन कराती रहती हैं। संजय प्लेस के यूथ हास्टल और एमजी रोड स्थित नागर प्रचारणी में ज्यादातर कार्यक्रम होते हैं।

इसके अलावा किसी दूसरे स्थान पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए साहित्यिक संस्थाओं का आर्थिक भार काफी बढ़ जाता है। शहर की तमाम संस्थाएं सस्ते स्थान के अभाव में कार्यक्रम नहीं करा पाती हैं। साहित्यकारों का मानना है कि इस दिशा में सरकार की कोई योजना आ जाए, तो समस्या का समाधान हो सकता है।

नन्हे लेखकों को प्लेटफॉर्म की जरूरत

शहर के कई नन्हे मुन्ने बच्चों का साहित्यिक स्तर भी गजब का है। छोटी उम्र में कल्पनाओं की उड़ान लिए जब बच्चा कलम से भावों को अभिव्यक्त करता है तो उसे पता चलता है कि वो कविता बन गई। घर में मम्मी पापा तो बच्चे का हौसला बढ़ाने लगते हैं पर इसके बाहर कुछ भी नहीं है। शहर के कुछ स्कूलों में हिंदी दिवस पर बच्चे काव्य पाठ करते हैं।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बड़ी बातें करते हैं। फिर चले जाते हैं। इसके साथ ही बच्चे की प्रतिभा को अगले साल तक प्लेटफॉर्म मिलने का इंतजार करना पड़ता है। प्रख्यात साहित्यकारों का मानना है कि लेखन प्रतिभा में बच्चे काफी तेजी से आगे आ रहे हैं। इन बच्चों के प्लटेफॉर्म मिलना चाहिए। इसके लिए स्कूल अपने यहां होने वाले कार्यक्रमों में काव्य गोष्ठी विशेष रूप से कराए।

एडवांस साहित्यिक लाइब्रेरी की जरूरत

साहित्यकारों का कहना है कि यह शहर मीर, नजीर, गालिब, अमृत लाल नागर, राजेन्द्र यादव, डॉ. रामविलास शर्मा, बाबू गुलाब राय, गोपालदास नीरज, सूर, अमृतलाल चतुर्वेदी, प्रताप दीक्षित, सोम ठाकुर, रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी, शिवसागर, शीलेंद्र वशिष्ठ जैसे प्रख्यात साहित्यकारों की जन्मस्थली और कर्मस्थली रहा है। इसलिए इन सभी दिग्गज साहित्यकारों का संकलन एक स्थान पर होना चाहिए। इसके लिए एक साहित्यिक लाइब्रेरी की जरूरत है।

समस्या और समाधान:

शहर की पुरानी लाइब्रेरियों में निशुल्क हॉल उपलब्ध कराया जाए।

प्रशासनिक अधिकारियों की रुचि से यह आसानी से संभव है।

शहर में तीन-चार स्थानों पर साहित्यिक कैफे खोले जाएं।

नगर निगम इस कार्य को आसानी से करा सकता है।

नागरी प्रचारणी को सभी सुविधाओं से युक्त किया जाए।

प्रशासन के स्तर से यह काम किया जा सकता है।

शहर में दो-तीन साहित्यिक केंद्र खोलने की जरूरत है।

नगर निगम के अधिकारी यह काम कराने में सक्षम हैं।

सरकारी महोत्सव में उभरती साहित्यिक प्रतिभा का सम्मान हो।

प्रशासनिक स्तर से इस काम में कोई खास दिक्कत नहीं आएगी।

इनकी रगों में रहे शायरी और शहर

मीर तकी मीर को उर्दू शायरी का पहला उस्ताद माना जाता है। उनका जन्म आगरा में हुआ था। उनकी शायरी में दर्द, गम और सूफियाना रंगत मिलती है।

आवामी शायर के तौर पर मशहूर नजीर अकबराबादी का जन्म आगरा में हुआ था। उन्होंने आम लोगों के जीवन, त्योहारों और सामाजिक विषयों पर कविताएं लिखीं।

मिर्जा गालिब का आगरा कनेक्शन सब जानते हैं। यह शहर उनके काला महल स्थित आवास को भी स्मारक न बना सका। उनकी शायरी में दर्शन, रहस्यवाद और प्रेम का गहरा अनुभव दिखता है।

दाग दहलवी का असली नाम नवाब मिर्ज़ा खान था। उनका जन्म दिल्ली में हुआ था। पालन-पोषण आगरा में हुआ। उनकी शायरी में इश्क और शबाब का रंग दिखता है।

जां निसार अख्तर का जन्म ग्वालियर में हुआ था। उन्होंने आगरा में भी कुछ समय बिताया था। वह प्रगतिशील आंदोलन के महत्वपूर्ण शायरों में से एक थे।

गोपाल दास नीरज का जन्म इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ। साहित्यिक कर्मभूमि आगरा और अलीगढ़ रही। प्रेम, प्रकृति और मानवीय भावनाओं की कविताओं आज भी युवा दिलों की धड़कन बनी हुई हैं।

डॉ. रामविलास शर्मा का जन्म उन्नाव जिले में हुआ था। काफी लंबे समय तक आगरा के साथ पूरे प्रदेश और हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण आलोचक और विचार के रूप में पहचान बनी।

बाबू गुलाब राय का जन्म इटावा में हुआ था। आगरा के साहित्यिक जगत में बाबू जी का दशकों तक प्रभाव दिखा। महत्वपूर्ण निबंधकार, आलोचक और इतिहासकार के रूप में दुनियाभर में प्रख्यात हुए।

साहित्यिक दृष्टि से हमारा शहर काफी समृद्ध है। यहीं की भूमि ने अमृत लाल नागर, राजेन्द्र यादव, डॉ. रामविलास शर्मा, बाबू गुलाब राय, गोपालदास ‘नीरज जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार दिए हैं। इसके बाद भी साहित्यकारों के पास ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां साहित्यिक विचारधारा का आदान-प्रदान किया जा सके।

डॉ. मधु भारद्वाज

साहित्यकारों के लिए इस शहर में कुछ खास नहीं है। मेरा सुझाव है कि अगर शहर के प्रख्यात आरबीएस कालेज, आगरा कॉलेज, सेंट जॉन्स कालेज में कुछ शर्तों के साथ साहित्यिक संस्थाओं को हॉल देने की सुविधा होनी चाहिए। इससे कालेजों के विद्यार्थियों को भी साहित्यिक भावना से प्रेरित होने का अवसर मिलेगा।

डॉ. राजेंद्र मिलन

शहर के साहित्यकारों के लिए कम से कम तीन-चार साहित्यिक केंद्र होने चाहिए। साहित्यिक जगत की यह सबसे बड़ी मांग है। यह हमारी जरूरत भी है। संस्थाएं इसके लिए एक निश्चित शुल्क जमा करने को भी तैयार हैं। पालीवाल पार्क, कोठी मीना बाजार, शहीद स्मारक में साहित्यिक केंद्र खोले जा सकते हैं।

भावना दीपक मेहरा

चार दशक पहले सूरसदन में ही किसी स्थान पर साहित्यिक केंद्र बनाने की कवायद शुरू हुई थी। उस दौरान मेयर के सामने भी मैंने अपने साहित्यकार साथियों के साथ साहित्यकारों के लिए एक स्थान देने की बात कही थी। इसके बाद कुछ नहीं हो सका। समय के साथ फाइल भी कहीं दफन हो गई।

रामेंद्र मोहन त्रिपाठी

. काफी लोगों में लेखन का प्राकृतिक गुण होता है। खासतौर से युवा साहित्यकार कलम को अपने लेखन से शानदार सलामी दे रहे हैं। मेरा मानना है कि साहित्य सृजन का सुखद परिणाम मजबूती से तभी सामने आ सकता है जब युवाओं को प्लेटफॉर्म मिले। शहर में साहित्यकारों के लिए एक कॉफी हाउस होना चाहिए।

डॉ. रेखा कक्कड़

. मेरा मानना है कि ऐतिहासिक इमारतें देखने के लिए आने वाले पर्यटकों को शहर के प्रख्यात कवियों और शायरों की पंक्तियां सार्वजनिक स्थलों पर पढ़ने को मिलें। इससे पर्यटक शहर के साहित्यिक स्तर से अच्छी तरह से वाकिफ हो सकेंगे। साथ ही स्कूलों को समय-समय पर अपने यहां बच्चों की काव्य गोष्ठियां करानी चाहिएं।

पदम गौतम

. ये शहर मीर, गालिब, नजीर की धरती है। यहां यमुना के तट पर सूर की भक्ति उतरती है। यहां की पावन भूमि से दुनियाभर में साहित्य के अनगिनत फूल महक रहे हैं। इसके बाद भी साहित्यकारों की यह नगरी साहित्यिक सुविधाओं को तरस रही है। नागरी प्रचारणी का कायाकल्प होना काफी जरूरी है।

कुमार ललित

. साहित्यकारों को अपने विचारों और रचनाओं को साझा करने के लिए मंच और आयोजनों की आवश्यकता होती है। इसके लिए स्थान की जरूरत है। साथ ही साहित्यिक गोष्ठियां, पुस्तक विमोचन के लिए शहर में कोई सस्ती और सुलभ व्यवस्था होनी चाहिए। इससे साहित्यकारों की बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा।

अशोक अश्रु

. शहर की साहित्यिक धारा सदियों से अपना विचारों को विस्तार देती आ रही है। शहर के साहित्यिक वैभव को अगर ठोस सुविधाओं की जरूरत है। अगर ऐसा होता है तो पर्दे के पीछे छिपी तमाम प्रतिभाओं को काफी कुछ नया सीखने को मिलेगा। शहर के प्रख्यात शायरों और कवियों की पुस्तकों के लिए लाइब्रेरी जरूरी है।

सुशील सरित

. शहर के बीचोबीच स्थित संजय प्लेस में एक स्थान विशुद्ध साहित्य के लिए बहुत कम दर पर आवंटित किया जाए। साहित्यकारों से सजी हुई तमाम संस्थाएं एक छत के नीचे आकर व्यापक साहित्य आयोजन करें। इससे उभरते साहित्यकारों को काफी लाभ मिल सकेगा। साहित्यकारों के लिए कैफे हाउस भी होने चाहिएं।

श्रुति सिन्हा

. सूर नजीर, बाबू गुलाबराय, अमृतलाल चतुर्वेदी, प्रताप दीक्षित से लेकर सोम ठाकुर, रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी, शिवसागर, शीलेन्द्र वशिष्ठ जैसे अनेक साहित्यकार आज भी इस भूमि को उर्वरा बनाए हुए हैं। इसके बाद भी साहित्यिक गोष्ठियों के लिये कोई ऐसी जगह नहीं जहां बैठकर कर कविता पर विचार विमर्श हो सके।

राजकुमार रंजन

. साहित्यक संस्थाओं के पास कार्यक्रम आयोजित करने के लिए जगह का अभाव है। आर्थिक रूप से कमजोर साहित्यिक संस्थाएं सिर्फ इसलिए कार्यक्रम आयोजित नहीं करा पाते क्योंकि साहित्यकारों के लिए एक भी स्थान नहीं है। नागरी प्रचारणी का हाल बेहाल है। इसलिए वहां कार्यक्रम कराने में काफी सोचना पड़ता है।

भावना वरदान शर्मा

. ताज नगरी का साहित्यिक विरासत को एक स्थान पर संकलित करने की जरूरत है। शहर के स की प्रख्यात साहित्यकारों की मूर्तियां शहर के तमाम पार्कों में स्थापित होनी चाहिए। इससे आने वाली पीढ़ी को साहित्य की मशहूर शख्सियतों के संबंध में आसानी से पता चल सकेगा। बच्चों को साहित्यिक इतिहास की जानकारी मिलेगी।

शशांक प्रभाकर

. इस शहर के साहित्य ने दुनियाभर में इश्क, हुस्न, गम की नई-नई परिभाषाएं दी हैं। यह कविताएं और शायरियों जवां दिलों की आज भी धड़कन बनी हुई हैं। हमारा साहित्यिक वर्ग काफी शानदार है। इसके बाद भी साहित्यकारों के लिए कुछ खास नहीं है। साहित्यिक चर्चाओं के लिए छोटे-छोटे कैफे होने चाहिए। महिला साहित्यकारों के लिए हर स्थान पर शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए।

डॉ. शशि गुप्ता

. आगरा में साहित्यकारों के लिए सबसे बड़ी समस्या किसी ऐसे प्लेटफॉर्म का न होना है जहां नए साहित्यकारों को वरिष्ठ साहित्यकारों का मार्गदर्शन मिल सके। शहर में रहने वाले मां सरस्वती के सच्चे साधकों को सम्मानित करने की परंपरा शुरू होनी चाहिए। साथ ही युवा साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशन के लिए आगरा मासिक साहित्यिक विशेषांक शुरू होना चाहिए।

वंदना चौहान

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