Brick Kiln Workers in Uttar Pradesh Struggle for Basic Needs and Rights बोले कासगंज: दरो-दीवारों की ईंट बनाने वाले कामगार रोटी तक को मोहताज, Agra Hindi News - Hindustan
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बोले कासगंज: दरो-दीवारों की ईंट बनाने वाले कामगार रोटी तक को मोहताज

Agra News - उत्तर प्रदेश में ईंट-भट्ठा मजदूरों की स्थिति बेहद खराब है। ये लोग धूप, ठंड और बारिश में काम करते हैं, लेकिन उन्हें उचित मजदूरी और बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलतीं। सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं उठा पाते।...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराThu, 29 May 2025 10:40 PM
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बोले कासगंज: दरो-दीवारों की ईंट बनाने वाले कामगार रोटी तक को मोहताज

धूप हो या ठंड हमेशा खुले आसमान के नीचे आपको ये लोग भट्ठों पर ईंट पाथने का काम करते हुए मिल जाएंगे। वहीं बरसात का मौसम आने पर काम बंद होने की वजह से इनके हाथ खाली रहते हैं। इन्हें मेहनताना भी ठेके के हिसाब से मिलता है। निरक्षरता की बेड़ियों में जकड़े होने की वजह से यह लोग कोई और काम भी नहीं कर पाते। सरकार के पास इनके लिए योजनाएं तो तमाम हैं, लेकिन उनका लाभ सभी श्रमिक नहीं उठा पाते हैं। यह लोग मिट्टी को गूंथने के बाद सांचे में ढाल कर, कच्ची ईंट तैयार करते हैं। इनका जीवन भी उन्हीं कच्ची ईंटों की तरह ही बनते-बिगड़ते रहता है।

आपके अपने दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान ने बोले कासगंज के तहत भट्टा मजदूरों की व्यथा को जाना। मजदूरों ने बताया कि हम श्रमिकों को काम भी ठेकेदार के माध्यम से ही मिल पाता है। वही हमारी मजदूरी का लेखाजोखा रखते हैं। कभी-कभी मजदूरी को लेकर भी हम श्रमिक धोखा खा जाते हैं। ठेकेदार हमसे प्रति लाख के हिसाब से ईंटों की पथाई कराते हैं। जिसकी मजदूरी का भुगतान किश्तों में मिलता है। मजदूरों का कहना है कि हमारे पास न तो मनरेगा का कार्ड है, न ही आयुष्मान कार्ड बना है, जिससे दवाई करा लें। हल्की-फुल्की बीमारी होने पर तो हम लोग दवा लेने तक नहीं जाते। ज्यादा दिक्कत होती है तो इलाज करवाते हैं। उसके लिए पैसा नहीं होता है तो ठेकेदार से उधार लेना पड़ता है। धूल और धुएं में जिंदगी झोंक रहे ईंट-भट्ठा मजदूर अपना सबकुछ झोंककर भी पेट नहीं भर पा रहे हैं। दो वक्त की रोटी के लिए परिवार सहित सुबह से शाम तक पसीना बहाते हैं। इसके बाद भी इन्हें इनकी मेहनत के मुताबिक पारिश्रमिक और सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। जिसके चलते इनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की बात तो दूर, उनको अपना पेट भरने के लिए भी कामकाज जारी रखने की विवशता होती है। सबके आशियाने के लिए एक-एक ईंट बनाने वाले मजदूरों के सामने सबसे बड़ा संकट खुद के आशियाने बनाने के साथ दो वक्त की रोजी-रोटी का है। दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद अगर एक हजार ईंट बना लीं तो बमुश्किल 500 रुपए रुपये मिलते हैं, पर कई बार ये भी हाथ नहीं आते। जिसका कारण है, पाथी गई ईंटों का बारिश आदि की वजह से खराब होना। दुश्वारियों के बीच रह रहे इन मजदूरों के घरों में कई बार चूल्हा तक नहीं जल पाता है।ईंट भट्ठा श्रमिकों के लिए उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड गठित है। श्रमिकों के लिए मातृत्व, शिशु एवं बालिका मदद योजना, संत रविदास शिक्षा प्रोत्साहन योजना, अटल आवासीय विद्यालय योजना, आवासीय विद्यालय योजना, कौशल विकास, तकनीकी उन्नयन एवं प्रमाणन योजना, कन्या विवाह सहायता योजना, शौचालय सहायता योजना, आपदा राहत सहायता योजना, महात्मा गांधी पेन्शन योजना, गम्भीर बीमारी सहायता योजना, निर्माण कामगार मृत्यु व दिव्यांगता सहायता योजना संचालित हैं। फिर भी ये श्रमिक वर्ग इनका लाभ नहीं उठा पाता है। अधिकांश श्रमिक आसपास के गांवों तथा अन्य जिलों के रहने वाले होते हैं। योजना का लाभ लेने के लिए इन्हें विभिन्न दस्तावेज तैयार कराने के लिए लगातार इधर-उधर भाग दौड़ करनी पड़ती है। कभी-कभी मौसम की मार से कर्जा लेकर करते हैं परिवार की गुजर-बसर ईंट पथाई का काम कर रहे राजा ने बताया कि उसका पूरा परिवार खेतों में खुले आसमान के नीचे कच्ची ईंटों की झोपड़ी बनाकर रह रहा है। दिन-रात मेहनत कर हम तकरीबन एक हजार ईंट बना लेते हैं। जिसके एवज में लगभग 500 रुपये की मजदूरी हाथ लगती है। कभी-कभी मौसम की मार में एक भी ईंट नहीं सुखा पाते हैं। ऐसे में कर्जा लेकर गुजर बसर करनी पड़ती है। पिछला कर्ज उतारते-उतारते कभी भी सुकून का जीवन नहीं जी पाते। मजदूरों ने बताया कि अगर उनके क्षेत्र में ही काम मिलने लगे तो उनको इस तरह की स्थितियों में न रहना पड़े। यहां न तो शौचालय की व्यवस्था होती है, न ही साफ पानी की। भट्टे सुनसान क्षेत्र में बने होते हैं, जहां से अस्पताल और बाजार काफी दूर होते हैं। जरूरतें पूरी करने की हिम्मत नहीं योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकारी दफ्तर पहुंचने पर इन्हें औपचारिकताएं फेहरिस्त पूरी करने की हिम्मत भी इनमें नहीं होती है। श्रमिकों का कहना है, कि हम लोग एक दिन की छुट्टी करके यदि संबंधित विभागों तक पहुंचते भी जाते हैं, तो दस्तावेजों की प्रक्रिया पूर्ण करने में ही पूरा दिन निकल जाता है। उसके बाद भी अधिकारी हमारे कागजों के अपूर्ण होने का उलाहना देकर, हमें टहला देते हैं। योजनाओं का लाभ लेने के लिए हम इसी तरह से छुटटी करके विभागों के चक्कर लगाते रहे, तो हमारी मजदूरी मारी जाती है। भट्ठों पर मजदूरी करने वाले हम बुजुर्गों को आखिरी वक्त में बहुत मुसीबत झेलनी होती है, क्योंकि हम काम करने की स्थिति में नहीं होते हैं। रोज कमाकर खाने की वजह से हम कोई बचत भी नहीं कर पाते हैं। बुढ़ापे में बीमार होने पर इलाज के लिए भी धन नहीं होता है। -मदन लाल हम मजदूरों की जिंदगी का तानाबाना ऐसा होता है कि काम के सिवाए कुछ और हम सोच ही नहीं पाते। रोज कमाने-खाने पर ही केंद्रित रहने के कारण हम लोग अपने भविष्य के बारे में भी नहीं सोच पाते हैं। वहीं बुनियादी शिक्षा से दूर रहने का नुकसान हमारे बच्चों को उठाना पड़ रहा है। -संजीव गरीब कौन होते हैं। इसका अंदाजा कोई हमें देखकर लगा सकता है। हम लोग सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के असली हकदार हैं। मजदूरी के दौरान सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रक्रिया पूरी नहीं कर पा रहे हैं। -राजवीर आयुष्मान कार्ड बनवाने की प्रक्रिया कठिन होने के कारण नए मजदूरों को काफी परेशानी होती है। ऐसे में मजदूरों और उनके परिवारों के सदस्यों के आयुष्मान कार्ड न बन पाने के कारण परिवार के सदस्यों के बीमार पड़ने पर परेशानी होती है। यह प्रकिया सरल होनी चाहिए। -राजा हमारी पूरी उम्र ईंट पाथते हुए बीत गई। कोई उचित भविष्य ना होने के कारण आराम करने की उम्र में भी हमें काम करना पड़ता है। हम कभी भी इतना रुपया जमा नहीं कर सके कि उनसे अपने बच्चों की खुशी को पूरा कर पाते। अब हमारे बच्चे भी इसी काम में लगे हुए हैं। -मूलचंद भट्टे पर काम करते हुए पंद्रह वर्ष से अधिक समय गुजर गया। दिनभर धूप में काम करने के कारण जिंदगी ऐसी हो चुकी है कि अब उम्र से अधिक के लगते हैं। गरीबी शायद हम लोगों तक आकर ही ठहर जाती है। हमारी कई पीढ़ियां ईंट पाथने के काम में ही लगी रही है। -कुंवरसेन भट्टों पर काम करने के दौरान भी हमें विभिन्न प्रकार की समस्याओं से निपटना पड़ता है। ईंट भट्टों पर सबसे पहले तो हमारे लिए शौचालय आदि का कोई समुचित प्रबंध नहीं होता। जिसके चलते हमें शौच आदि के लिए भी खुले में ही जाना पड़ता है।-मुकेश भीषण गर्मी के इस मौसम में हम मजदूरों की हालत बेहाल हो जाती है। हमें रहने एवं आराम करने के लिए भी पर्याप्त संसाधन नहीं मिल पाते। न दिन में सुकून मिलता है न ही रात में अच्छी नींद आती है। भट्टों पर हम लोगों के लिए बेहतर इंतजाम करने चाहिए। -लक्ष्मीकांत हम में से कई मजदूरों का तो कहीं कोई पंजीकरण भी नहीं है। उनके पास न तो श्रमिक कार्ड हैं और न ही किसी विभाग में उनका विवरण दर्ज है। श्रमिक कार्ड बनवाने के लिए मजदूरी छोड़ कर जाना पड़ेगा। औपचारिकता इनती होती है कि हमारा काम नहीं हो पाता है। -महेंद्र कश्यप तमाम सामाजिक संगठन अपने कैम्प लगाते हैं। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी सामाजिक संस्था अथवा स्वास्थ्य विभाग ने भट्टे पर मेडिकल कैंप लगाकर श्रमिकों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया हो। एनजीओ एवं अन्य संगठनों को भी हमारे बारे में सोचना चाहिए । -दारा सिंह ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया होनी चाहिए। कम से कम चैन से सोने के लिए कमरे हों, शौचालय हों, पानी की व्यवस्था अच्छी हो, इसके लिए सरकार को नियम बना देना चाहिए। हमारा खाना खुले में बनता है, शौच भी खुले में ही जाते हैं। -जय सिंह भट्ठों से निकलने वाले धुएं में मौजूद तत्व आंखों, श्वसन तथा हमारी शरीर को प्रभावित करते हैं। दिनभर धूप में काम करने के कारण हम लोगों को त्वचा संबंधी भी तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। -भगवान सिंह

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