बोले अयोध्या: शिक्षकों की हो भर्ती और मिले मदद तो चमक उठे ‘मनूचा
Ayodhya News - राजा मोहन गर्ल्स पीजी कॉलेज, जो पहले अयोध्या में बालिका शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था, अब छात्राओं की कमी का सामना कर रहा है। कॉलेज में 616 सीटें आवंटित हैं, लेकिन केवल 400 छात्राएं ही अध्ययन कर रही हैं।...

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया से सम्बद्व राजा मोहन गर्ल्स पीजी कॉलेज ‘मनूचा के नाम से प्रसिद्व है। वर्तमान में 56 वर्ष पूरा कर चुका यह कॉलेज जिलेभर में बालिका शिक्षा के लिए शुमार था। किसी जमाने में इस कॉलेज में गोण्डा, अम्बेडकरनगर व अयोध्या जिले की पांच हजार से अधिक छात्राएं अध्ययनरत थीं और दाखिले के लिए मारामारी थी और काफी मशक्कत के बाद प्रवेश परीक्षा के जरिए मेधावियों को दाखिला मिल पाता था, लेकिन वर्तमान में सरकार की अनदेखी की वजह से हालात यह है कि विवि की ओर से आवंटित सीट भरने के लिए कॉलेज प्रशासन को प्रचार-प्रसार की जरूरत पड़ने लगी है।
महाविद्यालय में स्थापना काल से ही स्नातक व परास्नातक के तहत तमाम पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। हालांकि कॉलेज में कला संकाय के अलावा विज्ञान व वाणिज्य संकाय में शिक्षा हासिल करने की सुविधा नहीं थी। इसलिए छात्राओं को अन्यत्र ठिकाना तलाशना मजबूरी होती थी। इसके अलावा व्यावसायिक पाठ्यक्रम सहित बीएड व अन्य प्रोफेशनल कोर्स न होने के साथ हाईटेक युग में छात्राओं ने हाई- फाई संस्थानों का सहरा लिया और धीरे- धीरे मनूचा से किनारा कस लिया। वर्तमान में स्नातक व परास्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए 616 सीटें आवंटित हैं, लेकिन सीटें भर नहीं पा रही हैं। कॉलेज में महज 400 छात्राएं अध्ययनरत हैं। सीटों को भरने के लिए कॉलेज प्रबंधन और प्रशासन पर्चे छपवाकर बंटवा रहा है, ताकि आवंटित सीटें ही फुल हो जाएं। कॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ शिक्षक- कर्मचारी, प्रयोगशाला, छात्रावास, लाइट, पंखा, साफ- सफाई, खेल संसाधन- मैदान व अन्य में सुविधाओं से महरूम है। साफ-सफाई के लिए एक सफाई कर्मी के लिए कॉलेज तरस रहा है। प्रशासन की ओर से दैनिक खर्च पर सफाई कर्मी से साफ- सफाई का कार्य लिया जाता है। 400 छात्राओं की कक्षाओं के संचालन का महज 10 शिक्षिकाओं के कंधे पर बोझ है। जरूरत के मुताबिक अन्य शिक्षण संस्थान से शिक्षकों को बतौर गेस्ट बुलाकर शिक्षण कार्य कराया जाता है, ताकि संचालित कोर्स बंद न हो। वहीं प्रदेश सरकार की ओर से नि: शुल्क बालिका शिक्षा योजना लागू करने के बाद से कॉलेज आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है, क्योंकि पहले छात्राओं से जो फीस की वसूली होती थी उससे संसाधनों की पूर्ति कर ली जाती थी, लेकिन अब नि: शुल्क शिक्षा योजना लागू होने से किसी भी मद से कॉलेज को धन नहीं मिल पा रहा और न ही सरकार की ओर से कॉलेज की स्थिति में सुधार के लिए कोई कदम उठाया जा रहा है। कॉलेज प्रबंधन और प्रशासन की मानें तो कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर शासन स्तर तक कॉलेज की तस्वीर बदलने के लिए गुहार लगाई, लेकिन सिर्फ आश्वासन तक ही सिमटकर रहा गया। कॉलेज की शिक्षिकाओं और छात्राओं की मानें तो असुरक्षा, शिक्षक- कर्मचारी और संसाधनों की कमी को दूर कर दिया जाए तो रामनगरी का सबसे बेस्ट कॉलेज होगा और पुरानी पहचान को पुन: वापस ला सकेगा। नैक मूल्यांकन की ख्वाहिश पर धनाभाव रोड़ा:राजा मोहन गर्ल्स पीजी कॉलेज नैक मूल्यांकन की श्रेणी में आकर अपनी बदहाली दूर करने की ख्वाहिश पाले हुए है। नैक मूल्यांकन के लिए कॉलेज को ग्रेड मिलने पर शासन से धन आवंटन होता है और कॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ तमाम जरूरतों को पूरा कर सकता है। किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन आज के हालात में कॉलेज के पास नैक मूल्यांकन की श्रेणी में आने के लिए भवनों के रंग-रोगन व अन्य सुविधाओं को पूरा करने के लिए हाथ खाली हैं और किसी एनजीओ या सरकार से मदद की दरकार की उम्मीद रखे हैं। मनूचा की पुरातन छात्राएं नाम रोशन कर रहीं:मनूचा पीजी कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करके निकलीं मेधावी छात्राएं आज देशभर में विभिन्न क्षेत्र में नाम रोशन कर रही हैं। मेधावियों का शिक्षा, चिकित्सा, प्रशासन व अन्य क्षेत्रों में अपनी चमक बिखेर रही हैं। कॉलेज की शिक्षिका प्रो. मीन दुबे की मानें तो प्रशासनिक क्षेत्र में पुरातन छात्रा डॉ. शैफाली दीक्षित, सीमा पाण्डेय, रीता यादव, नेहा श्रीवास्तव, शिक्षा जगत में उनके स्वयं के अलावा डॉ. मधु खन्ना, डॉ. वन्दना अरोड़ा, प्रो. सुषमा शुक्ला के अलावा डॉ. नीति श्रीवास्तव, मोनिका दुबे, सोनिका दुबे, डॉ. अनामिका मिश्रा, डॉ. गीतांजलि मिश्रा, गीता शुक्ला, मिथिलेश यादव, नमिता जायसवाल, नीलम तिवारी, पूनम तिवारी, सना कलाम, रूबी, सुषमा गुप्ता, अस्मिता मिश्रा, नीलम पाठक, रूपम पाठक व अन्य शख्सियतें हैं। बोले जिम्मेदार: डॉ. मनूचा पीजी कालेज की प्रो. मंजूषा मिश्रा का इस बारे में कहना है कि राजा मोहन गर्ल्स पीजी कॉलेज में प्रवेश के लिए मारामारी रहती थी, लेकिन अब प्रवेश के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। धन के अभाव में मूलभूत सविधाओं का अभाव है। पहले संसाधनों की पूर्ति फीस से कर ली जाती थी, लेकिन अब नि: शुल्क बालिका शिक्षा योजना से फीस भी नहीं आती। इसलिए सुविधाओं का अभाव है। छात्राओं की संख्या बढ़ाने के लिए जागरूकता के साथ प्रोफेशनल कोर्स भी खोल गए हैं, ताकि छात्र संख्या बढ़ाई जा सके। मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है, लेकिन अभी कोई मूर्तरूप नहीं ले सका है।
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