सूख गई बलान नदी, बाया नदी नाले में तब्दील, कई तालाबों में उड़ रही धूल
बछवाड़ा व आसपास के इलाके में 40 से अधिक पोखरों में बूंद भर भी पानी नहीं... जिले का औसत भूगर्भीय जलस्तर 21 फीट आठ इंच है। सबसे अधिक नीचे बेगूसराय व मंसूरचक प्रखंड में 23 फीट ए

बेगूसराय/बछवाड़ा, हिटी। गर्मी के मौसम के बीच जिले में भूगर्भीय जलस्तर नीचे जाने लगा है। जिले का औसत भूगर्भीय जलस्तर 21 फीट आठ इंच है। सबसे अधिक नीचे बेगूसराय व मंसूरचक प्रखंड में 23 फीट एक इंच नीचे है। बखरी में 19 फीट दो इंच, बलिया में साढ़े 22 फीट, बरौनी में 22 फीट दो इंच, भगवानपुर में 21 फीट दस इंच, वीरपुर में 21 फीट सात इंच, चेरियाबरियारपुर में 21 फीट दस इंच, छौड़ाही में 19 फीट सात इंच, डंडारी में 22 फीट आठ इंच, गढ़पुरा मं साढ़े 21 फीट, खोदावंदपुर में 21 फीट दो इंच, मटिहानी में 21 फीट दो इंच, नावकोठी में 22 फीट आठ इंच, साहेबपुरकमाल में 22 फीट पांच इंच, शाम्हो में 20 फीट आठ इंच जबकि तेघड़ा में 21 फीट एक इंच नीचे है।
भूगर्भीय जलस्तर नीचे चले जाने के कारण जिले के ज्यादातर तालाब, पोखर, पाइन में पानी बहुत कम हो गया है। कई पोखर तो सूख भी चुके हैं। पूरे जिले में तालाबों की संख्या 400 है। इस भीषण गर्मी के बीच बछवाड़ा में बलान नदी पूरी तरह सूख चुकी है। गंगा बाया नदी सूखने के कगार पर है। इलाके के अधिकतर तालाब व पोखर भी सूख चुके हैं। तालाब व पोखर के सूखने से भूगर्भीय जलस्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। इस वजह से अब चापाकलों से भी पानी निकलना बंद होने लगा है। लिहाजा ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट की नौबत उत्पन्न होने लगी है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि बछवाड़ा व आसपास के प्रखंडों से गुजरने वाली गंगा बाया व बलान नदी में कभी सालों भर पानी भरा रहता था वहीं पिछले कई वर्षों से इन नदियों में अप्रैल- मई माह तक भी पानी नहीं ठहर रहा है। गंगा बाया नदी में फिलहाल ठेहुना भर ही पानी रह गया है। नदी का पानी पूरी तरह सड़ कर काला पड़ चुका है। हालात यह है कि इस नदी का पानी मवेशियों व अन्य जीव जंतुओं के पीने तथा नहाने के लायक नहीं रह गया है। ग्रामीणों ने बताया कि हरेक साल गर्मी के मौसम में इन नदियों के सूख जाने से भूगर्भीय जलस्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। नदी के किनारे की बस्तियों में चापाकलों तथा अन्य जल स्रोतों तक पानी का रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। चापाकलों से पानी निकालना मुश्किल हो गया है। बिशनपुर, दादुपुर, भीखमचक, अरबा, कादराबाद, बहरामपुर, गोविंदपुर- तीन आदि पंचायतों में सैकड़ों चापाकल दम तोड़ चुके हैं। पिछले कई वर्षों से गर्मी के मौसम में नदियों के सूखने के कारण लोगों के समक्ष घोर पेयजल संकट की नौबत उत्पन्न हो रही है। 30 साल पूर्व विलुप्त हो गई नून नदी, किसानों को हो रही परेशानी बछवाड़ा प्रखंड के रुदौली निवासी दीपक कुमार सिंह ने बताया कि इलाके से गुजरने वाली नून नदी करीब 30 साल पूर्व विलुप्त हो चुकी है। पहले यह नदी बतौर नहर हजारों हेक्टेयर खेतों में फसलों के पटवन में काफी उपयोगी साबित होती थी। नून नदी के वजूद मिट जाने के कारण रानी दरधा बहियार में किसानों के समक्ष पटवन की समस्या उत्पन्न हो गई है। बताया गया है कि समस्तीपुर मोहिउद्दीन नगर के बरैला व चकरैला बहियार नून नदी का उद्गम स्थल था। पहले अत्यधिक बारिश होने पर इन बहियारों के अलावा ग्रामीण इलाके के पानी का बहाव इस नून नदी से होते हुए मोहिउद्दीन नगर से नौला भीठ तक करीब 80 किलोमीटर की दूरी तक होता था। पिछले करीब तीन दशकों से काफी कम बारिश होने के कारण इस नदी में पानी नहीं भर रहा है। कालांतर में यह नदी अब पूरी तरह गड्ढेनुमा खेत में तब्दील हो चुकी है। उन्होंने बताया कि नून नदी को बचाने की मांग वे जनप्रतिनिधियों के समक्ष कई बार उठाई है किंतु इस दिशा में आज तक किसी ने कोई पहल नहीं की है। दूसरी तरफ चमथा दियारे के क्षेत्र में गंगा की मुख्य धारा से जुड़ी सभी ढाब नदियों के सूख जाने के कारण इन दिनों उसमें धूल उड़ रही है। चमथा व सिमरिया घाट के समीप गंगा नदी में पानी काफी कम हो जाने के कारण नदी का पाट काफी संकीर्ण हो चुका है। गंगा की मुख्य धारा में पानी घट जाने के बाद वर्तमान में नदी के तट से दूर-दूर तक टापूनुमा रेगिस्तान सा नजारा उत्पन्न हो रहा है। पोखर में बोरिंग से पानी भरकर करना पड़ रहा मछली पालन बछवाड़ा प्रखंड के रानी- तीन पंचायत निवासी विनोद कुमार राय ने बताया कि वे बड़े पैमाने पर मछली पालन का कारोबार करते आ रहे हैं। पहले उनके तालाबों में सालों भर पानी भरा रहता था। गर्मी के मौसम में तालाब व पोखर का पानी घटकर कम तो हो जाता था। किंतु पूरी तरह सूखता नहीं था। पिछले कई वर्षों से गर्मी के शुरुआती मौसम से ही उनके सभी पोखरों में पानी तेजी से घटने लगता है और अप्रैल- मई माह तक तालाब पूरी तरह सूख जाता है। उन्होंने कहा कि इस साल भी तेघड़ा अनुमंडल क्षेत्र के तकरीबन 70 तालाबों में से 40 से अधिक तालाबों में बूंद भर भी पानी नहीं रह गया है। रानी तीन पंचायत में स्थित उनके तालाबों में धूल उड़ रही है। उन्होंने कहा कि तालाबों में सालों भर पानी के ठहराव के लिए हर साल वे तालाबों की उड़ाही कर तालाब के तल को गहरा करवा रहे हैं। बावजूद इसके प्रत्येक साल अप्रैल मई माह तक तालाब के सूख जाने से उन्हें बोरिंग चलकर तालाबों में पानी भरना पड़ता है। उन्होंने बताया कि तालाबों के सूख जाने के कारण मछली पालन कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। नदी में बहाव स्थल से एक किलोमीटर दूर चली गई गंगा बीहट। निज संवाददाता। भीषण गर्मी की वजह से क्षेत्र के तालाब व पोखर सूखने के कगार पर पहुंच गये हैं। वहीं दूसरी ओर सिमरियातट पर भी गंगा में पानी लगातार घट रहा है। गंगा अपने बहाव स्थल से करीब एक किलोमीटर दूर चली गई है। गंगा नदी में बीच में रेत के टीले दिखाई देने लगे हैं। लोगों को स्नान करने में दिक्क्त हो रही है। वहीं दूसरी ओर चकिया स्थित छोटी गंगा में भी पानी नाममात्र के रह गये हैं। चकिया झील में पानी सूखने से जहां एक ओर मवेशियों को नहलाने में दिक्कत हो रही है, वहीं दूसरी ओर पानी घटने से मछलियां भी मर रही है। पानी के घटने से पानी के सड़ांध की दुर्गन्ध भी उठने लगी है और इससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बीहट बाजार स्थित रामचरित्र सरोवर भी सूखने के कगार पर पहुंच चुका है। भीषण तपिश के बीच जलाशयों के सूखने या फिर पानी काफी कम हो जाने से लोगों को जलााशयों में स्नान करने में भी दिक्कत हो रही है। बीहट नगर परिषद तथा बरौनी अंचल क्षेत्र के कई तालाब व पोखर पूरी तरह से सूख गये हैं। पपरौर स्थित अमृत सरोवर में भी पानी लगातार घट रहा है।
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