थारू समुदाय की कुल देवी के इस मन्दिर में उमड़ रहे दो देशों के श्रद्धालु
- सोहलवा जंगल में स्थित रहिया देवी थारू जाति की कुल देवी हैं। वहीं, आसपास के लोग उनको जंगल की देवी मानकार पूजते हैं। यहां दो देशों के श्रद्धालुओं की भीड़ नवरात्र में उमड़ती है

यूपी के बलरामपुर जिले में सोहेलवा जंगल स्थित रहिया देवी मंदिर थारू जनजाति की आस्था का प्रमुख केंद्र है। रहिया देवी को थारू जनजाति के लोग कुल देवी के रूप में पूजते हैं तो वहीं क्षेत्रीय लोग भी वनदेवी के रूप में मां की पूजा करते हैं।
भारत-नेपाल सीमा से जुड़े सोहेलवा जंगल में तकरीबन 7 किमी अंदर स्थित रहिया देवी मंदिर बेहद रहस्यमयी बताया जाता है। यह सैंकड़ों वर्षों से कई रहस्य अपने आप में समेटे हुए है। मां रहिया देवी का यह मंदिर हजारों-लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। दरअसल, दुर्गम रास्तों के चलते आम दिनों में यहां भीड़ कम होती है, लेकिन नवरात्र के समय मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है।
थारू जनजाति की हैं कुल देवी
रहिया देवी को थारू जनजाति के लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। नवरात्रि के पंचमी के दिन थारू समाज के लोग मंदिर में पहुंचकर विशेष उत्सव मनाते हैं और मां वाराही की पूजा-अर्चना करते हैं। इस उत्सव के लिए नेपाल से भी थारू जनजाति के लोग यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही जंगल में बसे वनग्राम के लोग रहिया देवी की वन देवी के रूप में भी पूजा करते हैं।
मां वाराही की विशेष मुद्रा में होती है पूजा
मंदिर में स्थापित प्रतिमा विशेष मुद्रा में होने के चलते कुछ लोग मां वाराही देवी के रूप में भी पूजा करते हैं। यह मंदिर सोहेलवा जंगल के बीचों-बीच स्थापित है, जिसकी जिला मुख्यालय मुख्यालय से दूरी तकरीबन 70 किलोमीटर है। इसमें से 7 किलोमीटर का रास्ता कच्चा और जंगली है। वहीं मंदिर जाने के लिए दारा नदी (अब दारा नाला) पार करके ही जाना होता है। मंदिर से तकरीबन 5 किलोमीटर की दूरी पर नेपाल की सीमा शुरू हो जाती है। नेपाल सीमा नजदीक होने के चलते नेपाल के ग्रामीण भी माता के दर्शन करने पहुंचते हैं।
पहले दारा नगर के नाम से था मशहूर
वाराही देवी मंदिर सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के घने जंगल में दारा नदी के पास स्थित है। इस क्षेत्र के बारे में बताया जाता है कि इसे कभी दारा शिकोह ने बसाया था, जिसके चलते इसे दारा नगर के नाम से जाना जाता है। वहीं, वर्तमान में यह क्षेत्र घने जंगलों में तब्दील हो चुका है। यहां के आस-पास के रहने वाले थारू जनजाति के लोग मां वाराही देवी को (जो अब रहिया देवी के नाम से प्रसिद्ध है) अपनी कुलदेवी मानते हैं।
पंचमी को होती है थारुओं की विशेष पूजा
नवरात्रि के पंचमी के दिन थारू समुदाय के लोग समूह में पहुंचकर अपनी कुलदेवी की पूजा करते हैं। वर्षों पूर्व यहां पर समुदाय के लोग बकरा, मुर्गी आदि जीवों की बलि देते थे। अब बलि पर रोक लगा दी गई है। थारू समुदाय के लोग मां रहिया देवी को ‘रहिया दाई देवी’ भी कहते है। इस मंदिर तक दुर्गम रास्ते के जरिये श्रद्धालु पहुंचते हैं। वहीं जंगल के बीच से गुजरने के चलते इस दौरान जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है।
मंदिर के बारे में पुजारी ने दी जानकारी
मंदिर के दो पीढ़ियों से व्यवस्था देख रहे पुजारी शिव प्रसाद बताते हैं कि मंदिर के बारे में किसी को कुछ नहीं पता कि यह मंदिर कितना पुराना है। यहां पहुंच रहे श्रद्धालुओं और स्थानीय निवासियों के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 2000 में हुआ है।
क्या कहते हैं थारू समुदाय के लोग
मंदिर प्रबंधक कालूराम चौधरी व चेतराम थारू प्रधान, ने बताया कि यह क्षेत्र दारा शिकोह ने बसाया था। उसी के नाम पर दारा नदी मंदिर के बगल से बह रही है। यह मंदिर रानी सरंगा से जुड़ा हुआ भी बताया जाता है, जिनके गीत लोग गांव में गाते हैं।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।