बलरामपुर में है कौड़ियों के चूने से बना मन्दिर, उमड़ते हैं श्रद्धालु
अपनी सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध उतरौला का एक प्राचीन मन्दिर अनूठा है

उतरौला राज्य अपनी सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की संस्कृति धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व रखती है। इनमें हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच आपसी सद्भाव और साझा आस्थाएं झलकती हैं। इन स्थलों में कुछ ऐतिहासिक मंदिरों और मस्जिदों का योगदान है, जो यहां की सांस्कृतिक विविधता और समृद्धि को दर्शाते हैं। इनमें से प्रमुख स्थल हैं श्री दुःखहरण नाथ मंदिर।
दुःखहरण नाथ मंदिर
उतरौला नगर का सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है। यह पश्चिमी उतरौला से बलरामपुर जाने वाली राजमार्ग के उत्तर में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और यह बुद्ध युग से संबंधित मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा मोहम्मद नेवाज खान के शासनकाल (सन् 1827-1841) में हुआ था। उनके शासन में एक बाबा, जयकरन गिरि ने स्वप्न देखा कि इस स्थान पर एक प्राचीन मंदिर के अवशेष मौजूद हैं। जब खुदाई की गई तो वहां से कई मूर्तियां और प्राचीन शिवाले के अंश प्राप्त हुए।
बाबा जयकरन गिरि ने इस मंदिर का नाम ‘दुःखहरण नाथ’ रखा। क्योंकि यह स्थान पीड़ा और दुखों को हरने का प्रतीक बन चुका था। राजा ने इस मंदिर के विकास में अहम योगदान दिया, जिसमें पोखरे का निर्माण और अन्य मंदिरों का निर्माण शामिल था।
मंदिर की संरचना और विशेषताएं
दुःखहरण नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि इसे कौड़ी के चूने से बनाया गया है। इससे इसकी मजबूती का प्रमाण मिलता है। एक प्रसिद्ध किंवदंती भी है कि जब राजा नेवाज अली ने इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया, तो अर्धे को आरी से काटते वक्त उस पर से रक्त की धार बहने लगी। इस वजह से राजा ने देखकर आश्चर्य चकित हो गया और इसे तोड़ने से रोक दिया। मंदिर के बगल एक पोखरे का निर्माण करवाया।
मंदिर के परिसर में हनुमान जी और राधा-कृष्ण के अन्य मंदिर भी स्थित हैं। हनुमान जी के मंदिर में एक भव्य पीतल का नकाब स्थापित है, जो आस-पास के मंदिरों से बिल्कुल अलग और आकर्षक है।
मेला और धार्मिक उत्सव
यहां प्रतिवर्ष कजरीतीज, छठ और शिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले में हजारों श्रद्धालु आते हैं। सावन माह में विशेष रूप से श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के शिवाले में जल अर्पित करने और पूजा करने आते हैं। इसके अलावा हर मंगलवार को हनुमान मंदिर में भारी भीड़ होती है। साथ ही यहां दशहरे पर लगने वाला मेला और श्रीरामलीला के आयोजन में दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं।
संस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक साक्ष्य
यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। यहां के राजा और बाबा जयकरन गिरि ने इसे एक केंद्र के रूप में विकसित किया था। यहां हिन्दू धर्मों के लोग आकर पूजा अर्चना करते हैं। यह स्थल आज भी उत्तरौला की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक बना हुआ है।
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