बोले बस्ती : 1971 में घुटने पर आया था पाकिस्तान, अब धूल चाटेगा
Basti News - 1971 की लड़ाई ने एक नए राष्ट्र का निर्माण किया और भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराया। हाल की एयर स्ट्राइक ने देशभक्ति की भावना को और बढ़ाया। पूर्व सैनिकों ने कहा कि वे फिर से देश सेवा के लिए तैयार हैं।...

Basti News : 1971 की लड़ाई भारत के सैन्य इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। इस युद्ध ने न सिर्फ एक नए राष्ट्र को जन्म दिया बल्कि भारतीय सेना ने अपनी वीरता और साहस के दम पर पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। जब हम उस ऐतिहासिक विजय को याद करते हैं तो भारतीय सैनिकों का जज्बा हमें उत्साह से भर देता है। यह सिर्फ एक युद्ध नहीं था बल्कि मानवीय भावनाओं, देशभक्ति और अदम्य साहस की अद्वितीय घटना साबित हुई। मंगलवार/बुधवार की रात एक बजे के बाद भारतीय सेना ने जब ‘ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक की और इसकी खबर मिली तो पूरे जिले में देशभक्ति का ज्वार उमड़ पड़ा।
आम अवाम खुशी से झूम उठा तो पूर्व सैनिकों की बूढ़ी हड्डियों मेें जान आ गई। उन्होंने कहा कि मौका मिले तो इस उम्र में भी हम देश सेवा को तैयार है। ‘हिन्दुस्तान ने ‘बोले बस्ती अभियान के तहत पूर्व सैनिकों व लोगों से बात की तो एयर स्ट्राइक से मिला सुकून उनके चेहरों पर साफ दिखा। वर्ष 1971 का युद्ध लड़ने वाले वीर सैनिक बोेल पड़े...पाकिस्तान को फिर जवाब मिला है। वर्ष 1971 की लड़ाई सिर्फ एक सैन्य संघर्ष नहीं थी बल्कि भारतीय सेना के साहस और देशभक्ति का सबूत थी। इस युद्ध की गाथा हर भारतीय के दिल में दर्ज हो गई। इस युद्ध ने पड़ोस में एक स्वतंत्र राष्ट्र को जन्म दिया। साथ ही भारतीय सेना गौरव और सम्मान दिलाया। उस युद्ध में लड़ने वाले वीर सैनिकों की आंखों में आज भी वही जोश बरकरार है, जो उन्होंने युद्ध के मैदान में दिखाया था। आज भी उनके जख्म उन दिनों की कहानियां सुनाते हैं। कभी गर्व की, कभी दर्द की, कभी देश के लिए अटूट समर्पण की। मंगलवार/बुधवार की रात में भारतीय सेना के जवानों ने एक बार फिर देश की अवाम का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। पहलगाम में पयर्टकों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकवादियों को ऐसा जवाब दिया कि वे वर्षों तक भुला नहीं पाएंगे। जिस तरह वर्ष 1971 में हुए युद्ध में हमारे वीर जवानों ने दुनिया को दिखा दिया था कि हमारी तरफ आंख उठाने वाले कभी देखने लायक नहीं रह जाएंगे उसी तरह एयर स्ट्राइक कर जवानों ने फिर बता दिया कि पर्यटकों पर गोलियां बरसाने वाले चैन से जी नहीं पाएंगे। उन्हें पालने-पोसने वाले देश अपनी गलती पर वर्षों तक पछताएंगे। भारतीय सैनिक देश्न के जवानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। 1971 की लड़ाई के दौरान जब भारत और पाकिस्तान आमने-सामने थे, तब सिर्फ सीमाएं नहीं, देश के गांव-गांव और कस्बे-कस्बे भी एक भावनात्मक रणभूमि बन चुके थे। दूरदराज के इलाकों में कोई मोबाइल था न टीवी, लेकिन देशभक्ति की गूंज हर गली में सुनाई देती थी। पचवस गांव की बुजुर्ग महिला शांति सिंह (75 वर्ष) पत्नी स्व. सूबेदार चंद्रबली सिंह और सुमन सिंह (70 वर्ष) पत्नी सुरेन्द्र बहादुर सिंह ने पुरानी यादों को साझा करते हुए बताया कि बस्ती जैसे जिले के छोटे कस्बों और गांवों में लोगों का सबसे बड़ा सूचना माध्यम रेडियो था। जैसे ही आकाशवाणी पर ‘समाचार शुरू होता, लोग बड़ी खामोशी से रेडियो के इर्द-गिर्द बैठ जाते थे। गांव के बुजुर्ग बताते थे कि कैसे हर खबर के साथ उनकी सांसें थम सी जाती थीं। जीत की खबर पर गांव तालियों और देशभक्ति नारों से गूंज उठता था। गोरखपुर में आर्मी कैंप होने के कारण पूर्वांचल के गांवों में भी हवाई हमलों का अंदेशा था। पचवस की पुष्पा सिंह (69 वर्ष) पत्नी धर्मवीर सिंह और सरोज सिंह (67 वर्ष) पत्नी अमरेंद्र बहादुर सिंह ने बताया कि गांव के प्रधान और स्कूल शिक्षक मिलकर ब्लैकआउट की तैयारी करवाते थे। रात में लालटेन बुझा दी जाती थी। पूर्व सैनिकों ने कहा कि तब के युद्ध पर मिली जीत पर हमें आज भी गर्व है पर पहलगाम की घटना के बाद हुए एयर स्ट्राइक ने जो सुकून दिया है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। लोगों ने कहा कि इस एयर स्ट्राइक ने पाकिस्तान के गुरूर को ऐसा जख्म दिया है जिसे वह कभी भर नहीं पाएगा। जब भी भारत की तरफ बुरी नजर उठाएगा उसकी रूह तक कांप जाएगी। गैलेंट्री अवार्ड पचवस की बढ़ाते हैं शान बस्ती। पचवस गांव के सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर रंजीत सिंह ने बताया कि मेरे भाई मेजर एके सिंह का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। एनडीए कैडेट्स को ग्लाइडिंग सिखाते वक्त एक दुर्घटना में उनका एक पैर खराब हो गया था। इसके बावजूद उन्होंने 1980 में मुंबई से पाल नौका में वर्ल्ड टूर करके रिकॉर्ड दर्ज किया था। मेजर एके सिंह की लिखी किताब Beygnd Horizions काफी पढ़ी जाती है। द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हुए सिपाही इसी गांव के तालुकेदार सिंह का नाम इंडिया गेट पर शहीदों के नाम के साथ दर्ज है। 1971 के युद्ध में पंजाब के आदमपुर में एयरफोर्स के फ्रंट बेस पर बमबारी के बीच एयरक्राफ्ट ठीक करने के लिए विंग कमांडर अमरनाथ सिंह को विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा गया है। इसके अलावा कई गैलेंट्री अवॉर्डस पचवस की शान बढ़ा रहे हैं। पचवस के मेजर अशोक कुमार सिंह को कीर्ति चक्र, सेना मेडल, यश भारती पुरस्कार, राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार भी मिल चुका है। पचवस के सबसे पहले सैनिक नायक ताल्लुकदार सिंह थे। ताल्लुकदार सिंह द्वितीय विश्व युद्ध मे म्यांमार के सेमरा द्वीप पर 1944 में लड़ाई-लड़ते हुए शहीद हुए थे। पचवस के हर घर में बुना जाता है सैनिक बनने का सपना बस्ती, वरिष्ठ संवाददाता। गोरखपुर-लखनऊ हाईवे के किनारे पचवस गांव चार पीढ़ियों से सैनिक पैदा कर रहा है। यहां का बच्चा होश संभालते ही सेना की वर्दी पहनने के सपने देखने लगता है। द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हुए गांव के पहले सैनिक का नाम इंडिया गेट पर शहीदों की सूची में दर्ज है तो सन् 1949 में ही यह गांव कमीशंड अफसर दे चुका है। पुरुष ही नहीं, गांव की बेटी-बहू भी सेना की वर्दी पहन मोर्चे पर डटी हैं। अब तक यहां के 150 से ज्यादा लोग सेना में सेवा दे चुके हैं या दे रहे हैं। जो रिटायर हो गए हैं, वे नई पीढ़ी की रगों में देशसेवा का जज्बा भर रहे हैं। हर्रैया तहसील के पचवस गांव में 400 परिवार हैं और करीब 2250 आबादी है। यहां के युवाओं की अलसुबह दौड़ और कसरत से शुरू होती है। सबका मकसद सेना में भर्ती होना है। युवाओं के जोश ने इस गांव को ‘सैनिक गांव के रूप में मशहूर कर दिया है। पचवस इंटर कॉलेज के पूर्व प्रिसिंपल राजीव सिंह बताते हैं कि बच्चा पैदा होने के बाद ही मां-बाप उसे फौजी बनाने का सपना बुनने लगते हैं। ग्राम प्रधान शैलेंद्र सिंह के मुताबिक पचवस में सिपाही से लेकर एडमिरल रैंक तक के अफसर देश की सुरक्षा कर चुके हैं। इस समय छह बड़े अफसर, चार जेसीओ, लांस नायक और हवलदार मिलाकर गांव के करीब 24 लोग देश की हिफाजत कर रहे हैं। जेपी सिंह ब्रिगेडियर और दिनेश सिंह नौसेना में कमोडोर के पद पर तैनात हैं। कर्नल केशरी ने पचवस को बनाया ‘फौजियों का गढ़ पचवस के युवाओं में सेना की वर्दी का नशा कर्नल केशरी सिंह ने भरा। 1971 में सैनिक भर्ती बोर्ड का चेयरमैन बनने के बाद उन्होंने गांव में सेना भर्ती के लिए प्रशिक्षण शुरू कराया। इसकी जिम्मेदारी सेवानिवृत्त और अवकाश पर गांव आने वाले सैनिकों को दी। डिग्री कॉलेज के मैदान में सुबह-शाम अभ्यास करने वाले युवाओं की तादाद जुटती है। कर्नल केशरी सिंह ने1965, 1971 की लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने 1971 के युद्ध में हुसैनीवाला में पाक सेना से मोर्चा लिया था। पाकिस्तानी सेना को उनकी ब्रिगेेड ने पीछे धकेल दिया था। सूबेदार रंजीत सिंह ने बताया कि पचवस गांव के पहले शहीद तालुकदार सिंह थे। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सेना के तरफ से युद्ध लड़ा था। पति की शहादत के बाद बेटे को भी भेजा फौज में बस्ती। कारगिल में बारूदी सुरंग के हमले में पति की शहादत के बाद निर्मला ने अपने बड़े बेटे अमित यादव को 2010 में देशसेवा के लिए फौज में भेज दिया। पति को याद कर निर्मला की आंखे नम हो गईँ। उन्होंने कहा कि शहीद सैनिक की पत्नी होने का उन्हें गर्व है। पति की गैर मौजूदगी में निर्मला ने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर शिक्षित किया। निर्मला के पिता भी सेना में थे। ‘ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर निर्मला ने भारतीय सेना और पीएम मोदी का आभार जताया। पचवस की बेटियां भी बेटों से कम नहीं : पचवस गांव की बेटी सुष्मिता सिंह सेना में कैप्टन के पद पर सेवा दे रही हैं। सुष्मिता के पिता सेवानिवृत्त कर्नल अभय सिंह भी सेना में रह चुके हैं। पचवस के रहनेवाले संजय सिंह की पत्नी प्रतिभा भी सेना में मेजर के पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा गांव की कई बेटियां जूनियर कमीशंड आफिसर (जेसीओ) की तैयारी कर रही हैं। सुष्मिता की मां लाबोनी सिंह पीएनबी में सीनियर मैनेजर रह चुकी हैं। बोले पूर्व सैनिक पाक में मौजूद आतंकियों के ठिकाने ध्वस्त करके सेना का मनोबल ऊंचा है। सेना ने उम्मीद के अनुरूप काम किया है। जब आतंकियों के ठिकाने पहले से पता होते हैं तो सरकार को पहले ही हमला कर ध्वस्त कर देना चाहिए। एके सिंह, रि.कर्नल आंतकी हमला देश की अस्मिता पर हमला था। इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए था। पूरा देश इसकी उम्मीद कर रहा था। सेना ने इस उम्मीद को पूरा किया और पाक में कड़ी कार्रवाई की है। आरके यादव, पूर्व सैनिक अब वह समय आ गया है कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए। भारतीय सेना अब मुंहतोड़ जवाब दे रही है। हमारी मांग है कि पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया जाए, जिससे वे हिमाकत नहीं कर सकें। रोहन सिंह आतंक पर भारतीय सेना ने ठोस कार्रवाई की है। ऐसी कार्रवाई आगे भी जारी रहनी चाहिए, जिससे आतंकवादियों के कैंपों का सफाया किया जा सके। भारत को आतंकवाद को समाप्त करने की कार्रवाई करना चाहिए। अमरेंद्र सिंह भारत की इस कार्रवाई से आतंक पर चोट पहुंची है। पहलगाम हमले के बाद जनता आतंकियों के खिलाफ ऐसी ही कार्रवाई का इंतजार कर रही थी। भारतीय सेना ने रणनीति बनाकर सटीक कार्रवाई की है। चंद्रप्रकाश सिंह इस कार्रवाई से देश में भारतीय सेना की जय-जयकार हो रही है। पाक में घुसकर भारतीय सेना ने अपनी मारक क्षमता का प्रदर्शन किया है। बॉर्डर पर पाक का मुंहतोड़ जवाब दे रही हैे। प्रभाकर सिंह भारतीय सैनिकों का मनोबल ऊंचा है। सरकार की छूट मिलते ही पाकिस्तान में तिरंगा लहराने में देर नहीं लगेगी। केंद्र को ऐसी रणनीति बनानी चाहिए, जिससे भविष्य में पाक हिमाकत नहीं करे। आशीष सिंह इस कार्रवाई से सेना ने देश को भरोसा दिला दिया है कि वह आम जनता की सुरक्षा में पूरी तरह से तत्पर है। देश के किसी व्यक्ति पर आंच आने से पहले सेना उसको मुंहतोड़ जवाब देगी रवि चौहान बेटा सेना में लेफ्टिनेंट होकर देशसेवा कर रहा है। भारतीय सेना ने देश के गौरव को बढ़ाया है। युद्ध हुआ तो पाक को भारतीय सेना एक सप्ताह के युद्ध में घुटने टेकने को मजबूर कर देगी। जय सिंह भारतीय सेना ने आतंकियों के ठिकाने पर हमला करके पाक को चेतावनी दी है। अगर पाक नहीं सुधरा तो सेना लाहौर पर तिरंगा लहराने की ताकत रखती है। भारत पाक का मुंहतोड़ जवाब देगा। शैलेन्द्र सिंह भारतीय सेना का अटैक स्वागत योग्य है। यदि केंद्र सरकार और शासन-प्रशासन मुझे कोई जिम्मेदारी देता है तो इसे सहर्ष स्वीकार करते हुए एक बार फिर से मैदान में उतरने को तैयार हूं। प्रदीप कुमार यादव पहलगाम और पुलवामा हमारी गलती नहीं है। यह पाक की हिमाकत थी, जिसका जवाब अब सेना दे रही है। शुरुआत पाकिस्तान ने की है, समाप्त करने का काम भारतीय सेना करेगी। राम निवास तिवारी पूर्व सैनिक भारत सरकार के साथ हैं। वे भारतीय कार्रवाई का पूरा समर्थन करते हैं। भारतीय सेना पूरे जज्बे के साथ पाकिस्तान को सबक सिखाने का काम कर रही है। इसके लिए हम भी तैयार हैं। रामजी गौड़ यह लड़ाई तब तक जारी रहनी चाहिए, जब तक आंतकवाद व आतंवादियों का सफाया नहीं हो जाता है। आंतकवाद को समाप्त करने के बाद इस लड़ाई का अंत हो, जिससे भविष्य सुरक्षित रहे। उमाशंकर हमें खुशी हुई कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों ने पर हमला किया। आतंकवादी मारे गए हैं। यह पहलगाम का बदला है, जहां पर निर्दोष पर्यटकों को धर्म पूछ-पूछकर मारा गया था। विजय पाल पूर्व सैनिकों की जुबानी युद्ध की कहानी मैंने 1962 चीन, 1965 पाकिस्तान और 1971 की लड़ाई लड़ी है, तीनों बार मोर्चे पर डटा रहा। लड़ाई आमने-सामने की होती थी जिसमें जनहानि की आशंका काफी रहती थी। एक चूक पर जान चली जाती थी। लेकिन हम सभी ने हौंसले से लड़ाई लड़ी। पाकिस्तान की जमीन पर कब्जा की, लेकिन छोड़ा गया। 1971 की लड़ाई में एक नया देश बना और विश्व का मानचित्र बदल गया। अब लड़ाई नए हथियार से है। आधुनिक विमानों से है। लेजर से गाइडेड मिसाइल चल रही हैं। पाकिस्तान हमारे कम्पटीशन में कहीं नहीं है। भारत का पाकिस्तान पर हमला काबिले-तारीफ है। यह निर्दोष पर्यटकों के मौत का बदला है। भारत ने कहा था कि हम बदला लेंगे और ले भी लिया। डॉ. आरजी सिंह, रिटायर्ड सेनाधिकारी 1971 भारत-पाक युद्ध का मैं भागीदार था। पाकिस्तानी सेना ने पहले मुजफ्फराबाद सीमा से आक्रमण कर चार भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया था। इसको जीतने के लिए सेनाधिकारियों ने निर्देश दिया। चार दिसंबर 1971 को चौथी बटालियन महार रेजिमेंट को जिम्मेदारी मिली। सैनिकों के साथ रणनीति बनाकर पाकिस्तानी सेना पर आक्रमण किया गया। उसी आक्रमण में दो भारतीय चौकियों को अपने कब्जे में ले लिया। तीन दिन बाद फिर से हुए आक्रमण में हमारी ब्रिगेड ने फिर से सभी भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया। हमारी बटालियन कश्मीर के लीपा वैली के तंगधार व माझिल सेक्टर में तैनात थी और यहां पर पाकिस्तानी जमीन पर कब्जा किया था। शमशेर बहादुर सिंह, रिटायर्ड कर्नल भारतीय सैनिकों ने वीरता से पाकिस्तान से हुए सभी युद्धों में भारतीय तिरंगा लहराया है, लेकिन विजेता सैनिकों को दर्द भी मिलता रहा है। जिस जमीन को भारतीय सैनिक जीतते थे, उसे लौटा दिया जाता था। 1971 के युद्ध में उनकी यूनिट ने 150 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया था। 1971 के युद्ध में जम्मू के वेस्टर्न सेक्टर के सतवारी नवा पिंड एक्शन एरिया में पाकिस्तानी सैनिकों के बिग्रेड ने 10 दिसंबर को भारतीय पोस्ट पर हमला बोलकर कब्जा कर लिया। नवा पिंड गांव को भी कब्जे में ले लिया। जवाबी मोर्चे पर पहुंची भारतीय सेना की आठवीं आर्टिलरी बटालियन के हवलदार पृथ्वी सिंह के नेतृत्व में वापस कब्जा कर उन्हें लौटा दिया था। आंतकवाद के खात्मे तक लड़ाई जारी रहे। अलगू सिंह, रिटायर्ड, सूबेदार भारतीय सेना के हौंसले बुलंद हैं। अब भारत सरकार ने भी अनुमति दे दी है। ऐसे में पाकिस्तान को तबाह होने से कोई नहीं बचा सकता है। पाकिस्तानी सेना से 1971 की लड़ाई में मेरी बटालियन सिलीगुड़ी के 33वीं कोर हेडक्वार्टर में तैनात थी। युद्ध के लिए ब्रिगेडियर वाईपी देसाई के साथ प्लान बनाया गया। इस प्लान पर चलकर भारतीय सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान के युद्ध में विजय पताका फहराया था। बेहतर रणनीति के साथ भारतीय सैनिक पाकिस्तानी सैनिकों पर टूट पड़े थे। इस युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों का मनोबल तोड़कर लाखों पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण को मजबूर कर दिया था। अब भारतीय फौज काफी आधुनिक है। वह पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर देगी। रंजीत सिंह, रिटायर्ड सूबेदार
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