बोले बिजनौर : कपड़ा कारोबार की उड़ान को कोन डाइंग यूनिट की जरूरत
Bijnor News - उत्तर भारत के नहटौर में कपड़े का कारोबार 1980 से 2010 तक बहुत प्रगति पर था, लेकिन अब यह घटकर केवल 10-20% रह गया है। बांग्लादेश और चीन की प्रतिस्पर्धा के चलते व्यवसाय में कमी आई है। यदि कोन डाइंग यूनिट...

उत्तर भारत में कपड़े का बड़ा हब नहटौर होता था। 1980 के दशक 2010 तक में नहटौर कपड़ा कारोबार का एक अपना बड़ा वजूद था। शासन की पॉलिसी या बढ़ती महंगाई एवं कारोबार में हुए आधुनिक परिवर्तन के बाद कपड़ा कारोबार धीरे-धीरे सिमटता चला गया। कपड़ा कारोबार इतना विस्तृत था कि बड़ी-बड़ी देश और विदेश की कंपनियां से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फैब्रिक, स्टॉल आदि का कारोबार होता था। जो आज सिमटकर 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक रह गया है। वर्तमान समय में कपड़े में बांग्लादेश और चीन प्रतिस्पर्धा के दौर में आगे बढ़े हैं। नहटौर से कपड़ा भारत के अलग-अलग हिस्सों के अलावा अमेरिका डेनमार्क, इटली, फ्रांस आदि यूरोपियन कंट्री में ट्रांसपोर्टर के मा के द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जाता था। यदि कपड़ा कारोबारी को बिजली, ऋण सब्सिडी एवं कोन डाइंग यूनिट आदि की सुविधा मिले तो कपड़ा कारोबार फिर से अपने खोये स्वर्णिम काल को पुन: प्राप्त कर लेगा।
कपड़े का नाम सुनते ही पश्चिमी यूपी ही नहीं उत्तर भारत में नहटौर का नाम शीर्ष पर था। जो धीरे-धीरे आधुनिकता और समय के साथ पिछड़ता चला गया। जिसके लिए अनेक कारण गिनाए जा सकते हैं लेकिन थोड़ी सी प्रशासनिक अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की इच्छा शक्ति हो तो यह कपड़ा कारोबार फिर से अपने पुन: शीर्ष पर आ जाएगा। जो क्षेत्र के विकास और तरक्की में बड़ा सहायक भी होगा साथ ही साथ रोजगार के भी नए बड़े अवसर पैदा होंगे। नहटौर के कपड़ा कारोबारियों का मानना है कि जिले में यदि कोन डाइंग यूनिट लग जाए तो कपड़े का वर्तमान कारोबार से कई गुना अधिक कारोबार बढ़ जाएगा। हेंक डाइंग पुराने दौर की बात बन गयी है। वर्तमान दौर कोन डाइंग का है।
एक दौर में नहटौर नगर व क्षेत्र में पाँच सौ से अधिक कपड़े कारोबार से जुड़ी हुई छोटे लघु उद्योग संचालित थे जिसे करीब पचास से एक लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता था। आर्थिक तौर पर भी यह कपड़ा कारोबार करीब प्रतिवर्ष एक हजार करोड़ से अधिक का होता है। नहटौर नगर और क्षेत्र पहले पावरलूम से कम काम होता था। वर्तमान समय में आधुनिकता के हिसाब से इंपॉर्टेंट मशीन, सुपर एक्सेल जैसी मशीन की जरूरत है। जिसके लिए सरकार के सहयोग की आवश्यकता है।
क्या है कोन डाइंग यूनिट?
कोन डाइंग यूनिट एक ऐसी प्रणाली है जो यार्न (सूत) को रंगने के लिए प्रयोग की जाती है। इस प्रक्रिया में, यार्न को शंकु (कोन) के रूप में रखा जाता है और फिर उसे रंग बाथ में डुबो दिया जाता है। रंग बाथ में रंग को यार्न के धागों में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है, जिससे यार्न को रंग दिया जाता है। कोन डाइंग यूनिट का उपयोग विभिन्न प्रकार के यार्न, जैसे कॉटन, विस्कोस, और सिल्क को रंगने के लिए किया जा सकता है।
शिफ्ट हो गया कारोबार
1980 के दशक में नहटौर का कपड़ा कारोबार को खादर के कारोबार से जाना जाता था कारोबारी रईस अहमद, अरशद अहमद, हाजी अफाक अहमद, नदीम अहमद, जैनुलाब्दीन ने बताया की 2010 तक कारोबार काफी अच्छी स्थिति में था। लेकिन बढ़ती महंगाई व संसाधनों के अभाव में धीरे-धीरे कारोबार सिकुड़ता चला गया। नहटौर में विशेष तौर पर फैब्रिक और स्टॉल का काम सर्वाधिक होता आज चंद फैक्ट्रियां काम कर रही है। यहां का कारोबार धीरे-धीरे लुधियाना, अमृतसर दिल्ली एनसीआर आदि स्थानों पर शिफ्ट हो गया। कारोबार के कम होने का दूसरा कारण इंपोर्टेड मशीनों का न होना, समय के हिसाब से मशीनों में परिवर्तन न होना भी रहा। इसमें महंगाई भी एक मुख्य कारण रही। पहले बिजली सस्ती थी वर्तमान में काफी महंगी दर पर बिजली खरीदी जा रही है। इसके अलावा सही रूप में बिजली उपलब्ध नही हो रही है। साथ ही जीएसटी एवं अन्य टैक्स भी बुनकरों पर लगे हैं।
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सुझाव--------
- इंडस्ट्रीयल एरिया क्षेत्र चिन्हित किया जाये।
- सरकारी विभागों में उपयोग आने वाले कपड़े में प्राथमिकता दी जाये।
- शासकीय सहायता दिलाई जाये।
- इंस्पेक्टर राज खत्म किया जाये, ऋण सुविधा शून्य से चार प्रतिशत की ब्याज दी जाये।
- बिजली कम दर पर दी जाये।
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शिकायत------
- विद्युत आपूर्ति सही रूप में न मिलना।
- कोन डाइंग यूनिट स्थापना को लेकर प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई न होना।
- सरकार की ओर से सब्सिडी की प्रत्यक्ष रूप से उपलब्धता न होना।
- बुनकरों के लिए विशेष सुविधा न मिलाना।
- कपड़े के कारीगरों के लिए प्रशिक्षण न मिलाना।
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