चार्जशीट प्रकरण : नगर कोतवाली से भी नष्ट हो चुका वर्ष 1999 का रिकॉर्ड
Bulandsehar News - नगर क्षेत्र में 25 साल पहले हुए लाखे हत्याकांड में चार्जशीट गायब हो गई है। रिकॉर्ड नष्ट होने के कारण पुलिस को केस की पुन: विवेचना में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। न्यायालय में चार्जशीट दाखिल...

नगर क्षेत्र से करीब 25 साल पहले हुए लाखे हत्याकांड में चार्जशीट गायब होने के मामले में पुलिस की परेशानी बढ़ती जा रही हैं। नगर कोतवाली से भी करीब 15 साल पुराना अधिकांश रिकॉर्ड नष्ट कराया जा चुका है। ऐसे में नगर कोतवाली पुलिस के पास चार्जशीट की दूसरी कॉपी होने की उम्मीद भी दम तोड़ चुकी है। उधर, न्यायालय में चार्जशीट दाखिल किए जाने पर रिसीविंग दी जाती है। उस रिसीविंग को भी 15 साल बाद नष्ट कर दिया जाता है। ऐसे में न्यायालय में चार्जशीट रिसीव कराई गई थी अथवा नहीं, इसकी भी जानकारी नहीं मिल पा रही है।
बहरहाल, पुलिस अधिकारी अब केस की पुन: विवेचना समेत अन्य बिंदुओं पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, ताकि केस में अभियोजन की कार्रवाई पूर्ण कराई जा सके। यह है मामला 22 मई 1999 को लाखे सिंह की गोली मारकर हत्या की घटना हुई थी। इस घटना में मृतक के पोते कैलाश का नाम सामने आया था। 29 मार्च 2000 को विवेचक द्वारा जांच कर आरोप पत्र सीओ कार्यालय में दाखिल कर दिया गया था। आर्म्स एक्ट में चार्जशीट न्यायालय पहुंच गई, किंतु हत्या से संबंधित चार्जशीट का कोई अतापता नहीं चल सका। अभियोग की केस डायरी न्यायालय में दाखिल न होने के कारण जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा बार-बार पत्राचार किया गया। सीओ कार्यालय एवं न्यायालय में उक्त अभियोग की केस डायरी की जानकारी न होने के संबंध में एसएसपी बुलंदशहर द्वारा 17 जनवरी 2025 को जांच के आदेश किए गए। जांच में वर्ष 2000 में सीओ कार्यालय में तैनात पुलिसकर्मी रामधन सिंह नागर(सेवानिवृत उपनिरीक्षक) निवासी गौतमबुद्धनगर, कृष्णवीर सिंह(सेवानिवृत उपनिरीक्षक) निवासी गाजियाबाद और उपनिरीक्षक अशोक कुमार(वर्तमान में थाना अरनियां) की लापरवाही सामने आई। नगर कोतवाली में तीनों आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 409 के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है। चार्जशीट की कॉपी भी नहीं मिली किसी भी घटना में विवेचना के बाद मोहर्रिर अथवा खुद विवेचक द्वारा सीओ कार्यालय में चार्जशीट प्रेषित कर दी जाती है। कुछ साल पहले तक चार्जशीट में हाथ से पर्चे लिखे जाते थे। इसमें कार्बन कॉपी का प्रयोग करते हुए दो कॉपी तैयार की जाती थी। इसमें मुख्य चार्जशीट सीओ कार्यालय में जमा करा दी जाती है, जबकि दूसरी कॉपी को थाना-कोतवाली में रिकॉर्ड में रखा जाता है। चूंकि इस घटना को करीब 25 साल हो चुके हैं। ऐसे में नगर कोतवाली में भी हत्या जैसे मामले की चार्जशीट की कॉपी मौजूद नहीं है। बताया जाता है कि एक निर्धारित अवधि के बाद उच्चाधिकारियों की अनुमति से करीब 15 साल पुराने रिकॉर्ड को नष्ट कर दिया जाता है। हालांकि नष्ट होने वाले रिकॉर्ड का भी एक रजिस्टर में पूरा उल्लेख रहता है। पुलिस रिकॉर्ड में नहीं है रिसीविंग न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कराने के बाद उसकी रिसीविंग सीओ कार्यालय के मुंशी को दी जाती है। यह रिसीविंग भी पुलिस के पास नहीं है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि करीब 15 साल बाद रिसीविंग को नष्ट कर दिया जाता है। इस केस को 25 साल से अधिक वक्त बीत चुका है। ऐसे में रिसीविंग भी नष्ट हो चुकी है। अब होगी पुन: विवेचना? हत्या जैसे संगीन मामले में चार्जशीट दाखिल न होने से पुलिस की परेशानी बढ़ गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष कुमार राघव का कहना है कि अगर कोई कुछ साल पुराना मामला होता तो उसमें पुन: विवेचना कराना संभव होता है। करीब 25 साल पुराने मामले में वादी, गवाहों के बयान, फोरेंसिक जांच रिपोर्ट समेत अन्य बिंदुओं पर पुन: विवेचना करना बहुत मुश्किल है। जानकारों की मानें तो पुलिस अधिकारियों द्वारा पुन: विवेचना समेत अन्य तरीकों के बारे में विधिक राय ली जा रही है।
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