दालमंडी: रजामंदी या बगैर अधिग्रहण ध्वस्तीकरण नहीं
Varanasi News - इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दालमंडी में सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए ध्वस्तीकरण पर भवन मालिकों को राहत दी है। डीएम ने हलफनामा दाखिल कर आश्वासन दिया है कि रजामंदी या अधिग्रहण के बिना ध्वस्तीकरण नहीं होगा।...

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दालमंडी में प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए ध्वस्तीकरण पर भवन मालिकों को बड़ी राहत दी है। डीएम सत्येंद्र कुमार ने हलफनामा दाखिल कर इस बात का भरोसा दिया है कि रजामंदी या अधिग्रहण किए बगैर ध्वस्तीकरण नहीं होगा। कोर्ट ने इसके अनुसार आदेश देते हुए इस मामले में दाखिल याचिकाएं निस्तारित कर दीं। न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने दालमंडी की भवनस्वामी शहनाज़ परवीन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सरकार ने स्पष्ट किया कि जब तक राज्य सरकार किसी संपत्ति का विधिसम्मत अधिग्रहण नहीं करती, उचित मुआवजा नहीं देती तथा रजामंदी से हस्तांतरण नहीं करा लेती, तब तक वहां कोई भी निर्माण ध्वस्त नहीं किया जाएगा।
याचिका में बिना मुआवजा दिए ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने की मांग की गई थी। डीएम ने हलफनामे में बताया कि दालमंडी क्षेत्र की सड़क को चौड़ा और मजबूत करने की योजना है, जिसके लिए अनुमानित बजट 22059.46 लाख रुपये है। हलफनामे में यह भी कहा गया कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया या तो आपसी सहमति से होगी या 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत। साथ ही इसके लिए किसी भी व्यक्ति को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा। ---------------------------------------------------------- ज्ञानवापीः वादमित्र की दलील, वक्फ बोर्ड हिन्दू पर लागू नहीं वाराणसी। अपर जिला जज (चौदहवां) संध्या श्रीवास्तव की कोर्ट में ज्ञानवापी के 1991 के मूलवाद में लोहता के मुख्तार अंसारी की पक्षकार बनने की निगरानी अर्जी पर गुरुवार को सुनवाई हुई। अर्जी के विरोध में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बहस की। वादमित्र ने दलील दी कि निगरानीकर्ता ज्ञानवापी को वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति बताते हुए पक्षकार बनने का समर्थन कर रहा है, जो गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया है। वक्फ बोर्ड हिन्दू पर लागू नहीं हो सकता है। इसलिए निगरानीकर्ता का कोई विधिक अधिकार नहीं है। लोअर कोर्ट भी इसे खारिज कर चुका है, जो विधि सम्मत है। अर्जी में 1936 के मुकदमे के जिस आदेश का हवाला दिया गया है, कहीं से उचित नहीं है। उक्त मुकदमा में पक्षकार मुस्लिम ही थे। वादमित्र की बहस रखते हुए कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 27 मई की तिथि तय की है।
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