Labor Day Struggles of Workers in Bulandshahr for Better Welfare and Registration :::बोले बुलंदशहर::: सिर्फ मजदूर दिवस पर आती है हमारी याद, सालभर झेलना पड़ता है कष्ट, Bulandsehar Hindi News - Hindustan
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:::बोले बुलंदशहर::: सिर्फ मजदूर दिवस पर आती है हमारी याद, सालभर झेलना पड़ता है कष्ट

Bulandsehar News - -शहर में तीन स्थानों पर सुबह के समय भूखे पेट को भरने की तलाश में आते हैं मजदूर:::बोले बुलंदशहर::: हमकों सिर्फ मजदूर दिवस पर किया जाता है याद,सालभर झेल

Newswrap हिन्दुस्तान, बुलंदशहरThu, 1 May 2025 03:37 AM
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:::बोले बुलंदशहर::: सिर्फ मजदूर दिवस पर आती है हमारी याद, सालभर झेलना पड़ता है कष्ट

बुलंदशहर। एक मई को आज मजदूर दिवस है। इस दिवस पर मजदूरों के उत्थान के बारे में जगह-जगह पर गोष्ठी आयोजित होंगी। लेकिन, शहर के तीन स्थानों पर भूखे पेट को भरने की आस में विभिन्न स्थानों से आने वाले मजदूरों की हालत काफी दयनीय है। इनका कहना है कि घरों में काम कराने से लेकर अन्य कामों में हमारी सहायता ली जाती है। लेकिन,मजदूर दिवस को छोड़ दिया जाए तो सालभर उनके कष्टों के बारे में कोई भी जानकारी करने के लिए नहीं आता है। यदि मजदूरों को भी श्रम विभाग में पंजीकरण का लाभ मिले और हमें भी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले तो हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुधरे।

इसे अधिकारियों का उदासीनता रवैया कहे या फिर जनप्रतिनिधियों की अनदेखी कि हमें किसी भी योजना का लाभ अभी तक नहीं मिल सका है। ऐसे में हमारे सामने कई प्रकार की दिक्कत खड़ी हो गई हैं। बुलंदशहर जिले में तीन लाख कामगारों का श्रम विभाग में पंजीकरण है। शहर के नुमाइश मैदान, साठा मोहल्ला और शहर में स्थित काली नदी पुल के निकट अग्रसेन चौक पर सुबह दिन निकलते ही मजूदरों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है। इन स्थानों पर बेलदार से लेकर मकान व विभिन्न सन्ननिर्माण से जुड़े श्रमिक आकर मजदूरी की तलाश करते हैं। यह कामगार सिर्फ दो वक्त की रोजी-रोटी मिलने के कारण ही शहर के तीनों स्थानों पर आते हैं। कभी-कभी तो स्थिति ऐसी होती है कि जिन कामगारों को काम नहीं मिल पाता, तो वह निराश होकर अपने घर लौट जाते हैं। मजदूरों का कहना है कि तीन स्थानों पर उनका स्थान अस्थाई है। पूरे जिले में मजदूरों के मिलने का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। ऐसे में कुछ मजदूरों का तबका साठा, तो कुछ नुमाईश ग्राउंड तो कुछ तबका काली नदी पुल के निकट बैठता है। तीनों ही स्थानों पर बैठने की कोई व्यवस्था जिला प्रशासन और नगर पालिका की ओर से नहीं की गई है। ऐसे में जब मजदूरों को काम नहीं मिलता है तो वह आसपास की दुकानों के बाहर बैठ जाते हैं। जिस पर दुकानदार उनसे अभद्रता करते हैं और उन्हें अपने प्रतिष्ठान के बाहर से भगा देते हैं। जिस कारण उन्हें काफी परेशानी होती है। इस समय प्रचंड गर्मी का दौर चल रहा है। जैसे-जैसे सूर्यदेव सिर पर चढ़ते हैं, वैसे ही मजदूर भूखे पेट को भरने की आस में छांव की तलाश में इधर-उधर भटकते हुए दिखाई पड़ते हैं। मजदूरों का कहना है कि उन्हें श्रम विभाग द्वारा संचालित योजनाओं की समय पर जानकारी नहीं मिलती। क्योंकि जब वह लोग विभाग में पंजीकरण कराने जाते हैं, तो उन्हें कई प्रकार की कागजी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसमें काफी समय खर्च होता है। विभाग को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि जहां पर मजदूरों की बड़ी संख्या में आवाजाही होती हैं, वहां पर कैंप लगाकर उनका पंजीकरण कराया जाए। ताकि अधिक से अधिक मजदूरों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। इसके लिए अधिकारियों को पहल करनी चाहिए। ऐसा होने से सभी मजदूरों का विभाग में पंजीकरण होगा और उन्हें और उनके परिवार को सरकार की योजनाओं का लाभ भी मिल सकेगा। मजूदरी भत्ता बढ़ना चाहिए मजदूरों का कहना है कि श्रम विभाग के अधिकारियों को मजदूरों का भत्ता बढ़ाना चाहिए। क्योंकि बेलदारी के दाम अभी भी पांच सौ रुपये हैं। पांच सौ रुपये में घर का खर्चा चलाना मुश्किल होता है। इसके अलावा अन्य मजदूरों को सात सौ रुपये के हिसाब से दिन का खर्चा मिलता है। ऐसे में यदि मजदूरी भत्ता बढ़ जाएगा तो परिवार का पालन-पोषण करने में आसानी होगी। इसके लिए कई बार मजदूरों की ओर से श्रम विभाग के अधिकारियों को लिखित शिकायती पत्र दिया गया। उसके बाद भी अभी तक मजदूरों के भत्ते में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई। ऐसे में उन मजदूरों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है जो बिना काम के अपने घर को लौट जाते हैं। यदि मजदूरों की पेंशन शुरू हो जाएगी तो इससे काफी हद तक परेशानी भी दूर हो जाएगी। इसलिए उन्होंने सरकार से मजदूरों की पेंशन चालू करने का अनुरोध किया है। सिर ढंकने की तो हो कम से कम व्यवस्था मजदूरों का कहना है कि नगर पालिका और प्राधिकरण के अधिकारियों को शहर में कम से कम एक स्थान मजदूरों के लिए चिंहित करना चाहिए। जहां पर उनके बैठने, उठने की व्यवस्था हो। साथ ही वहां पर पेयजल की भी बेहतर सुविधा होनी चाहिए। इसके अलावा वहां पर शौचालय की भी व्यवस्था हो। नुमाई मैदान में हैंडपंप तो लगे हुए हैं। लेकिन इनमें से चलता बामुश्किल एक ही है। ऐसे में मजदूरों को भीषण गर्मी में प्यास बुझाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। बरसात के दिनों में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। क्योंकि बरसात के दिनों में काम भी मिलना मुश्किल हो जाता है। इसलिए कम से कम जहां पर मजदूर बैठें तो वहां पर टीनशैड की भी व्यवस्था होनी चाहिए। ------- सिर्फ मजदूर दिवस पर ही हमें किया जाता है याद मजदूरों का कहना है कि उन्हें मजदूर दिवस के बारे में पता तो हैं, लेकिन इसका क्या फायदा। क्योंकि भूखे पेट को भरने के लिए मजदूरी की आवश्यकता होती है। मजदूर सुबह जब घर से निकलता है तो वह इसी आस में निकलता है कि कम से कम मजदूरी मिल जाए तो परिवार का खर्चा चल सके। ऐसे में यदि मजदूरी नहीं मिलती है तो काफी निराशा हाथ लगती है। ऐसे में मजदूरों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। ताकि यदि किसी मजदूर को मजदूरी नहीं मिली तो कम से कम वह पेंशन के भरोसे रहकर अपना और परिवार का खर्चा तो चला सकता है। ------- श्रम विभाग की योजनाओं का मिलना चाहिए लाभ कामगारों का कहना है कि श्रम विभाग में पंजीकृत मजदूरों को ही सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। ऐसे में दिहाड़ी मजदूरों का ना तो विभाग में पंजीकरण हो पाता है और ना ही उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ मिल पाता है। विभाग के अधिकारियों को यह प्रयास करना चाहिए कि जहां पर मजदूर वर्ग बैठता है वहां पर कैंप लगाया जाए। ताकि अधिक से अधिक मजदूर अपना पंजीकरण करा सकें और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सकें। सरकार की योजनाओं का लाभ मिलने से परिवार का भरण-पोषण आसानी से हो सकेगा। ------- हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी नाममात्र की मिलती है मजदूरी शहर के तीनों स्थानों पर मजदूरी करने के लिए शहर से गांव तक के सैकड़ों मजदूर आते हैं। वह आढ़ती से लेकर बाजार की विभिन्न दुकानों और गोदामों पर सुबह से शाम तक हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। कई मजदूर तो यहां पर ऐसे भी हैं तो अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए पल्लेदारी तक करते हैं। जो दिनभर मेहनत करने के बाद 25 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से भारी-भरकम वाहनों में बोरों को चढ़ाने और उतारने का काम करते हैं। दिनभर कड़ी मेहनत करने के बाद भी मजदूरी नाममात्र की मिलती है। जिससे उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। इसलिए मजदूर बढ़नी चाहिए। ------ मजदूरों का भी होना चाहिए बीमा कामगारों का कहना है कि मजदूर गरीब तबके से आता है। वह और उसका परिवार बीमा कराने में असमर्थ होते हैं। ऐसे में सरकार को मजदूरों का बीमा कराना चाहिए। इससे फायदा यह होगा कि यदि परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाता है तो कम से कम बीमे की मदद से उसका इलाज तो हो सकता है। हालांकि सरकार की ओर से आयुष्मान कार्ड बनाए जा रहे हैं, लेकिन बहुत ही कम संख्या में मजदूरों को इस योजना का लाभ मिल सका है। इसलिए अधिक से अधिक मजदूरों के आयुष्मान कार्ड भी बनने चाहिए। ------- कामगारों के मन की बात जानिए हमें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ चाहिए। इसलिए श्रम विभाग में हमारे पंजीकरण होने चाहिए। ताकि काम नहीं मिलने पर इन योजनाओं का लाभ तो मिले। -राजकुमार गिने-चुने कामगारों के ही आयुष्मान कार्ड बने हैं। ऐसे में परिवार के किसी सदस्य को यदि गंभीर बीमारी हो जाए तो उसका उपचार कराना असंभव हो जाता है। -डालचंद जिला प्रशासन के अधिकारियों को कामगारों के बीमे करने चाहिए। बीमा होने से कामगारों को काफी राहत मिलेगी। क्योंकि न्यूनतम मजदूरी मिलने से परिवार का खर्चा बामुश्किल चल पाता है। -नीतू पूरे शहर में तीन स्थानों पर मजदूरों के मिलने की व्यवस्था है। लेकिन तीनों ही स्थानों पर ना तो शुद्ध पेयजल उपलब्ध है और ना ही कामगारों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था। -प्रेमपाल कामगारों का भत्ता बढ़ना चाहिए। अभी तक बेलदारों को महज पांच सौ रुपये मिलते हैं। यह भी तब जब वह दिनभर अपना शरीर तोड़कर मजदूरी करता है। -सुनील कामगारों को नियमित रूप से काम मिलने का प्रावधान बनाना चाहिए। ऐसा होने से मजदूर वर्ग को सबसे ज्यादा सुविधा होगी। इसके लिए नीति बनानी चाहिए। -बाशिद कामगारों को अक्सर काम के दौरान चोट लगने का खतरा बना रहता है। यदि कामगारों का स्वास्थ्य बीमा होना शुरू होगा तो इससे काफी लाभ मिलेगा। -जगत सिंह अक्सर मजदूर आराम करने के लिए आसपास बनी दुकानों के बाहर बैठ जाते हैं। ऐसे में दुकानदार उनसे अभद्र व्यवहार करते हैं। इसमें सुधार होना चाहिए। -आरिफ जिस स्थान पर मजदूर बैठते हैं, वहां पर शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में मजदूरों को खुले में लघुशंका आदि करनी पड़ती है। पर्याप्त संख्या में शौचालय बनने का प्रावधान होना चाहिए। -वीरेंद्र भूखे पेट को भरने के लिए सुबह से शाम तक इंतजार करना पड़ता है। गर्मी के दिनों में दोपहर होते ही काम नहीं मिलने पर यह वर्ग घर की ओर निकल पड़ता है। कम से कम काम मिलने की व्यवस्था जिला प्रशासन के अधिकारियों को करनी चाहिए। -ललित मजदूरों को नियमित रूप से यदि रोजगार मिलने लगेगा तो इससे काफी हद तक उनके साथ होने वाली परेशानियों को दूर किया जा सकेगा। -प्रेमपाल सिंह कामगारों का कोई संगठन नहीं है। इसलिए इस वर्ग की समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है। यदि अधिकारियों के पास मदद मांगने जाते हैं तो काफी दिक्कत होती है। -विजय सिंह ------ सुझाव: 1.श्रम विभाग के अधिकारियों को कैंप लगाकर पंजीकरण करने चाहिए। 2.जिन स्थानों पर कामगार मिलते हैं, वहां पर उनके बैठने का उचित प्रबंध होना चाहिए। 3.मजदूरों के लिए भी शुद्ध पेयजल और शौचालय की व्यवस्था होने से लाभ मिलेगा। 4.कामगारों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को अधिक से अधिक कैंप लगाने चाहिए। 5.सरकारी योजनाओं का अधिक से अधिक इस वर्ग को लाभ मिलना चाहिए। शिकायत: 1.जिन कामगारों का श्रम विभाग में पंजीकरण नहीं है, उनके लिए कैंप लगाकर पंजीकरण करने चाहिए। 2.मजदूरों के लिए बैठने और उठने की सुगम व्यवस्था हो। 3.शुद्ध पानी और शौचालय की व्यवस्था भी होनी चाहिए। 4.स्वास्थ्य ठीक रहे, इसलिए समय-समय पर लगने चाहिए स्वास्थ्य शिविर। 5.सरकारी योजनाओं का लाभ देने के साथ उनका बीमा भी कराया जाए। ---------- कोट: श्रम विभाग समय-समय पर कैंप लगाकर कामगारों का पंजीकरण करने का काम करता है। मजदूर दिवस पर तहसील स्तर पर कामगारों को हित लाभ देने की तैयारी है। शहर में जिन कामगारों का पंजीकरण नहीं हैं, विभाग के अधिकारियों को भेजकर उनका पंजीकरण कराकर योजनाओं का लाभ दिया जाएगा। -पल्लवी अग्रवाल, सहायक श्रमायुक्त, बुलंदशहर --------- प्रस्तुति: गौरव शर्मा, फोटो : विश्वास सांगवान

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