बोले बुलंदशहर: अभिभावकों को चाहिए महंगे कोर्स से निजात
Bulandsehar News - बुलंदशहर जिले में नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत के साथ ही अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है। स्कूलों में यूनिफार्म, स्टेशनरी और किताबों की बढ़ती कीमतें उन्हें आर्थिक बोझ में डाल रही हैं। अभिभावकों का कहना है...
जिले के सभी स्कूलों में नवीन शैक्षिक सत्र शुरू हो चुका है। जब नया सत्र शुरू होता है तो बच्चों की यूनिफार्म, स्टेशनरी और किताबों की खरीदारी अभिभावकों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन जाती है। एक ओर शिक्षा जरूरी है तो दूसरी ओर, उससे जुड़ी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे परिवार जहां दो या तीन बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं, उनके अभिभावकों को यूनिफार्म और किताबों पर ही हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में अभिभावकों की जेब जहां खाली हो रही है, वहीं बच्चों की पीठ पर पुस्तकों का भार बढ़ता ही जा रहा है। अभिभावकों ने स्टेशनरी और किताबों के बढ़ते दामों पर अंकुश लगाने की आवाज को बुलंद किया है। उनका कहना है कि स्कूलों और बुक डिपो के बीच होने वाले कमीशन के चक्कर में उनकी जेब ढीली हो रही है।
बुलंदशहर जिले में सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों की संख्या करीब 150 के आसपास है। जबकि यहां पर आईसीएसई बोर्ड का एक स्कूल संचालित हो रहा है। इन सभी स्कूलों में हजारों की संख्या में बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। सभी स्कूलों में अप्रैल माह शुरू होते ही नवीन सत्र शुरू हो चुका है। स्कूलों की ओर से सभी बच्चों को नया सिलेबस भी लिखकर दे दिया गया है। सिलेबस से लेकर यूनिफार्म, स्टेशनरी की खरीदारी करने के लिए अभिभावकों की कतार बुक डिपो पर लग रही है। स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे मध्यम आय वर्गीय परिवारों के होते हैं। जिनके अभिभावकों के लिए इन स्कूलों का हर नया सत्र चिंतित करने वाला होता है। इसके पीछे एक ओर जहां हर छात्र-छात्रा से प्रतिवर्ष लिया जाने वाला एडमिशन शुल्क होता है तो वहीं दूसरी ओर, लगातार महंगी होती जा रही कॉपी-किताबें, स्टेशनरी और यूनिफॉर्म भी अभिभावकों की जेब खाली करते हैं।
मध्यमवर्ग से ताल्लुक रखने वाले अभिभावकों का कहना है कि निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यवसाय का रूप दे दिया है। एक ओर जहां हर साल प्रतिबंध के बावजूद बच्चों से नई कक्षा में आने पर एडमिशन शुल्क वसूला जा रहा है। वहीं, दूसरी ओर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) से इतर निजी पब्लिकेशंस की अन्य गैर-जरूरी ऐसी किताबें भी बच्चों के कोर्स में जोड़ दी जाती हैं, जिनके कोर्स में होने या न होने से पढ़ाई पर किसी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसके पीछे केवल चंद निजी स्कूल संचालकों की कमीशनखोरी की लत होती है, जो स्कूलों को व्यवसाय का रूप दे चुके हैं। साल-दर-साल पढ़ाई के यह लगातार बढ़ते जा रहे खर्च मध्यमवर्गीय अभिभावकों का कई महीने का बजट बिगाड़ देते हैं। लेकिन शासन-प्रशासन के साथ ही जनप्रतिनिधि भी इस परंपरा पर रोक लगाने में विफल हो रहे हैं। स्कूल संचालकों की इसी मंशा के चलते बच्चों के बस्ते लगातार भारी होते जा रहे हैं। जो मासूमों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं। अभिभावकों ने सरकार से निजी स्कूल संचालकों की इस मनमानी पर प्रभावी अंकुश लगाए जाने के साथ ही इस परंपरा को खत्म किए जाने की खातिर कड़ी शिक्षा नीति बनाए जाने की मांग की है।
निर्धारित दुकान से कॉपी-किताबें लेने को मजबूर अभिभावक
निजी स्कूल संचालकों की मनमानी एनसीईआरटी से इतर कोर्स में अन्य किताबें भी जोड़ने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उनके द्वारा अभिभावकों को हर साल बच्चों के लिए कॉपी-किताबें लेने के लिए एक निर्धारित दुकान से ही लेने के लिए भी बाध्य किया जाता है। अभिभावकों का कहना है कि इस मंशा को मूर्तरूप देने के लिए बच्चों के कोर्स में हर साल निजी पब्लिकेशंस की ऐसी किताबें जोड़ दी जाती हैं, जो उनके द्वारा निर्धारित दुकानों पर ही मिलती हैं। वहीं, अभिभावकों पर इन्हीं दुकानों से कोर्स व कॉपी-किताबें लेने का दबाव भी बनाया जाता है। ऐसे में अभिभावक चाहकर भी निजी स्कूल संचालकों द्वारा निर्धारित की गई दुकानों से अलग अन्य किसी दुकान से ये कोर्स व कॉपी-किताबें नहीं ले पाते और मजबूरन इस लूटतंत्र का हिस्सा बनकर रह जाते हैं।
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महंगाई का प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र पर पड़ रहा
शिक्षा की महंगाई का सबसे बड़ा प्रभाव छात्र-छात्राओं पर पड़ता है। गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना कठिन हो गया है। कई परिवार अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए कर्ज तक लेते हैं या अपनी संपत्ति बेचते हैं। इस वजह से छात्र-छात्राओं पर मानसिक दबाव बढ़ जाता है और वह अपनी शिक्षा में पूरी तरह से ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। दूसरी ओर, शिक्षा की महंगाई देश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे पर भी प्रभाव डालती है। जब केवल कुछ ही परिवार उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं, तो समाज में असमानता बढ़ती है। शिक्षा का अधिकार सभी को समान रूप से मिलना चाहिए, लेकिन महंगी होती शिक्षा इस अधिकार को सीमित कर देती है। इससे समाज में विभाजन और भेदभाव बढ़ता है, और समाज में अवसरों की समानता खत्म हो जाती है।
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बच्चों के भारी बैग कर रहे स्वास्थ्य प्रभावित
वर्तमान में बच्चों के स्कूल बैग बहुत भारी हो गए हैं। यह समस्या खासकर छोटे बच्चों के लिए अधिक गंभीर है, इससे उनकी सेहत पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। बच्चों को एक दिन में बहुत सारी किताबें और नोटबुक्स लेकर स्कूल जाना पड़ता है, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। अभिभावकों का सुझाव है कि स्कूलों को बच्चों के बैग का वजन कम करने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव करना चाहिए। आवश्यक विषयों और किताबों को ही शामिल किया जाए, ताकि बच्चों का बैग हल्का हो सके। इसके अलावा, डिजिटल माध्यमों का उपयोग बढ़ाया जाए, ताकि बच्चों को भारी किताबों का बोझ न उठाना पड़े।
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निजी स्कूल और बुक डिपो के बीच होता है कमीशन का खेल
शिक्षा की महंगाई समाज और देश के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। यह सिर्फ एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि समाज के विकास और भविष्य को प्रभावित करने वाली समस्या है। अभिभावकों का कहना है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार, सरकारी संस्थानों का उन्नयन और निजी संस्थानों में पारदर्शिता की दिशा में काम करना चाहिए। वर्तमान में निजी स्कूल और बुक डिपो संचालकों के बीच कमीशन का खेल होता है। जिसमें अभिभावकों को पिसना होता है। अभिभावकों का कहना है कि अगर हम शिक्षा की महंगाई को रोकने में सफल होते हैं, तो यह न केवल हमारे बच्चों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक बेहतर भविष्य की ओर कदम होगा।
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अभिभावकों का दर्द जानिए
निजी स्कूलों की फीस हर साल बढ़ने से समस्या आती है। स्कूलों द्वारा हर वर्ष अलग नाम से एडमिशन शुल्क वसूला जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में एनसीईआरटी की किताबों को ही लागू करना चाहिए।
-महेश चंद शर्मा
स्कूल संचालकों द्वारा हर साल कोर्स में निजी पब्लिकेशंस की महंगी किताबें जोड़ दी जाती हैं। जिससे कोर्स बेवजह महंगा कर दिया जाता है। इसका सीधा असर अभिभावकों की जेब पर ही पड़ता है।
-पवन तेवतिया
निजी स्कूलों द्वारा बच्चों के नई कक्षा में आने पर हर साल अलग से एडमिशन शुल्क वसूला जाता है। इस पर सरकार को सख्त एक्शन लेकर कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही सरकार को कड़ी शिक्षा नीति भी बनानी चाहिए।
-विक्रांत
निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को सख्ती के साथ लागू करना चाहिए। इसके लिए सरकार को अलग से सख्त नियम बनाने चाहिए। ताकि अभिभावकों का बजट खराब ना हो।
-जेपी शास्त्री
निजी स्कूलों की फीस और कोर्स की साल दर साल बढ़ती महंगाई मध्यम वर्गीय परिवारों का बजट बिगाड़ रही है। सरकार को इस पर रोक लगाकर कड़ी शिक्षा नीति बनानी चाहिए।
-अबरार अंसारी
निजी शिक्षण संस्थानों की फीस पर निगरानी रखनी चाहिए और अनावश्यक शुल्क कम करना चाहिए। ताकि महंगी शिक्षा पर अंकुश लग सके।
-विकास
यदि स्कूल अभिभावकों से अच्छी खासी फीस ले रहे हैं तो उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों का व्यक्तित्व विकास, नैतिक शिक्षा भी उतना ही मजबूत हो।
-हरि मोहन माथुर
इस वर्ष किताबें बदल गई हैं। कम से कम तीन साल बाद किताबों को बदलना चाहिए। थर्ड क्लास का सेट ही करीब छह हजार रुपये से अधिक का मिला है।
-सतेंद्र
महंगी फीस और किताबों से अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। कम से कम स्कूलों को पांच साल में सिलेब्स को बदलने पर विचार करना चाहिए।
-प्रशांत वर्मा
बच्चों के बस्ते का वजन उनके वजन से ज्यादा हो रहा है। समय की मांग के अनुसार ही सिलेब्स होना चाहिए। जरूरी विषयों पर ही पढ़ाई कराई जानी चाहिए।
-धर्मेंद्र
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सुझाव:
1.बच्चों को भारी बैग से निजात दिलाने के लिए जरूरी विषयों की किताबें मंगवाई जाए।
2.कम से कम पांच साल के बाद फीस बढ़ोत्तरी पर होना चाहिए विचार।
3.शिक्षक और अभिभावकों के बीच महीने में कम से कम फीस और अन्य चीजों को लेकर होना चाहिए संवाद।
4.अभिभावकों की जेब पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार को रोकने के लिए उन्हें कहीं से भी कोर्स खरीदने की मिले अनुमति।
5.कड़ी शिक्षा नीति को बनाकर निजी स्कूलों की मनमानी रोकी जा सकती है।
शिकायत:
1.बच्चों को भारी बैग से निजात दिलाने की दिशा में उठाया जाए कदम।
2.फीस बढ़ोत्तरी की समस्या से अभिभावकों की जेब पर पड़ रहा अतिरिक्त भार।
3.शिक्षक-अभिभावक संवाद की समस्या बड़ी जटिल हो रही है।
4.अभिभावकों को महंगे कोर्स कहीं से भी लेने की हो अनुमति।
5.निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए बनाई जाए कड़ी शिक्षा नीति।
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कोट:
यदि निजी स्कूल अभिभावकों पर उनके द्वारा बताए गए बुक डिपो से सिलेब्स खरीदने का दबाव बनाते हैं तो यह गंभीर बात है। इस मामले की जांच कराकर उचित कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
-डा.लक्ष्मीकांत पांडेय, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बुलंदशहर
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