Divine Narration of Krishna-Rukmini Wedding and Sudama s Tale at Itawa Bhagwat Katha श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनकर श्रद्धालु हुए भाव-विभोर, Etawah-auraiya Hindi News - Hindustan
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श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनकर श्रद्धालु हुए भाव-विभोर

Etawah-auraiya News - इटावा। संवाददाता बकेवर के पूरावली में श्रीमद्भागवत कथा मे कथावाचक महंत जानकी दास

Newswrap हिन्दुस्तान, इटावा औरैयाMon, 7 April 2025 09:22 AM
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श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनकर श्रद्धालु हुए भाव-विभोर

इटावा। संवाददाता बकेवर के पूरावली में श्रीमद्भागवत कथा मे कथावाचक महंत जानकी दास महाराज ने श्रीकृष्ण-रुक्मणी के विवाह, सुदामा चरित्र एवं परीक्षित मोक्ष की कथा का वर्णन किया। श्रीकृष्ण के विवाह का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणी के साथ संपन्न हुआ। रुक्मणी को हरण कर विवाह किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं।और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती हैं। रुक्मणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो बहुत प्रभावित हुईं और मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया।रुक्मणी का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। इसीलिए श्रीकृष्ण ने हरण कर रुक्मणी से विवाह किया।कार्यक्रम के दौरान कलाकारों द्वारा कृष्ण-रुक्मणी विवाह से जुड़ी मनोहारी झांकी प्रस्तुत की गई। जिसे देख पूरा पंडाल श्रीकृष्ण के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। भजन गीतों से सुरों में सभी श्रोता झूमने लगे।

कथा व्यास ने कहा कि भगवान पर अटूट विश्वास होना चाहिए, यदि अटूट विश्वास है तो भगवान हर स्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। तदोपरांत सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया। उन्होंने बताया कि सुदामा जी जितेंद्रिय एवं भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते। गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा जी से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश है। उनसे जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राम्हण आया है। कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते । मित्र की महिमा बताते हुए महंतजी ने बताया कि "जे न मित्र दु:ख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी। निज दु:ख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दु:ख रज मेरु समाना ।। उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सुदामा जी को सिंहासन पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा जी विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं लेकिन सुदामा जी अपनी फूंस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं। इस लिए कहा गया है कि जब जब भक्तों पर विपदा आई है प्रभु उनका तारण करने जरुर आए हैं। अगले प्रसंग में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई, जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है।

इस अवसर पर परीक्षित सर्वेश कुमारी अरविंद सिंह सुरेश चंद्र यादव गायत्री देवी वीरेंद्र सिंह यादव , कांति देवी नीलम यादव नरेंद्र सिंह ओम कुमार व मालती देवी रिया यादव मनीष यादव समाजसेवी शिव शंकर यादव गंभीर सिंह यादश मौजूद रहे।

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