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बोले गोंडा: सुरक्षा का नहीं ख्याल, खटारा टेम्पो से स्कूल पहुंचाए जा रहे नौनिहाल

Gonda News - गोंडा जिले में 764 स्कूली वाहनों में से 106 वाहन बिना फिटनेस के चल रहे हैं। अभिभावक और स्कूल प्रबंधक बच्चों की सुरक्षा को लेकर लापरवाह हैं। खराब और जर्जर वाहनों से बच्चों को स्कूल लाया जा रहा है,...

Newswrap हिन्दुस्तान, गोंडाThu, 10 April 2025 04:55 PM
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 बोले गोंडा: सुरक्षा का नहीं ख्याल, खटारा टेम्पो से स्कूल पहुंचाए जा रहे नौनिहाल

नंबर गेम - 764 स्कूली वाहन बच्चों को लाने व ले जाने के लिए परिवहन विभाग में हैं रजिस्टर्ड

- 106 से अधिक रजिस्टर्ड स्कूली वाहनों ने अभी तक नहीं बनवाया है फिटनेस

बच्चों के स्कूल आने-जाने में सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा जा रहा है। बच्चे खटारा वाहनों से स्कूल पहुंच रहे हैं। जर्जर टेम्पो व बिना ब्रेक के ई-रिक्शा से उन्हें स्कूल पहुंचाया और स्कूल से लाया जा रहा है। वैसे जिले में स्कूली वाहनों के नाम पर 764 स्कूली वाहनों का रजिस्ट्रेशन भी है, जिनमें 106 स्कूली वाहन बिना फिटनेस के ही सड़कों पर फर्राटा भर रहे हैं। संभागीय परिवहन विभाग ने कई बार फिटनेस न लेने वाले वाहनों के विरुद्ध नोटिस भी जारी की लेकिन ऐसे वाहन संचालकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। परिवहन विभाग नोटिस पर नोटिस जारी कर रहा है लेकिन बिना फिटनेस वाहनों वाले संचालकों के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। विभाग भी छिटपुट कार्रवाई करके अपने कर्तव्यों से इति श्री कर ले रहा है, जिसके कारण खतरों के बीच बच्चे स्कूल जा रहे हैं।

गोण्डा। प्रतिमाह हजारों की फीस, हजारों की कॉपी-किताब के साथ ही पढ़ाई पर दसों हजार रुपए पानी की तरह खर्च करने वाले अभिभावक बच्चों के स्कूल पहुंचाने वाले वाहनों को लेकर लापरवाह बने हुए हैं। यही नहीं स्कूल के प्रबंधक भी खतरों के बीच स्कूल पहुंचने वाले बच्चों की इस स्थिति पर आंखें मूंदे हुए हैं। वहीं परिवहन विभाग स्कूल के प्रबंधन के रसूख कोतवाली देखते हुए कार्रवाई का डंडा चलाने में कोताही बरत रहा है। जिसके कारण से बच्चों को खतरों का सामना करना पड़ रहा है। टूटे-फूटे, हीलते-कांपते खटारा टेम्पो व ई-रिक्शा से बच्चे पढ़ने जाने को मजबूर हैं।

नगर व ग्रामीण दोनों क्षेत्र में विद्यालयों बच्चे पुरानी मैजिक, टेपों व स्कूली बसों से भरकर लाए और छुट्टी के बाद ले जाए जाते हैं। कहीं-कहीं यह वाहन स्कूल की ओर से संचालित किए जाते हैं तो कहीं लोग खुद ही संचालित करते हैं । कई वाहन तो इतने जर्जर दिखते हैं कि उनकी बगल से गुजरने से भी डर लगता है। इन वाहनों में केवल चालक के ही सहारे बच्चे होते हैं। स्कूली वाहन के लिए मानक पूरा करने को कौन कहे इन वाहनों में आग बुझाने व प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं रहती। कई वाहनों में तो स्कूल प्रबंधक व प्रधानाचार्य का नंबर भी नहीं लिखा होता और महिला सहायक तो किसी स्कूल बस में दिखाई नहीं देती।

मानक की अनदेखी कर फर्राटा भर रहे स्कूली वाहन

स्कूली वाहन मानक की अनदेखी कर सड़क पर धड़ल्ले से फर्राटा भर रहे हैं। परिवहन विभाग की गाइडलाइन के अनुसार वाहनों का रंग पीला होना चाहिए। जिससे दूसरे वाहन चालकों को स्कूल बस की जानकारी हो सके। स्कूल बस की स्पीड 50 किमी. प्रति घंटा से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। स्कूली बस में जीपीएस सिस्टम होना जरूरी है, ताकि अभिभावकों को बच्चों की लोकेशन की पूरी और सही जानकारी हर मिनट मिल सके। वाहन में ड्राइवर के साथ कंडक्टर होना अनिवार्य है लेकिन ज्यादातर वाहन में ऐसा नहीं होता है। गाइडलाइन की अनदेखी कभी भी देखी जा सकती है।

स्कूल प्रबंधनों के साथ बैठक भी बेनतीजा : बच्चों को खतरों से दूर रखने के लिए संभागीय परिवहन विभाग के अफसर स्कूली वाहनों के मुद्दे पर अक्सर स्कूल प्रबंध तंत्र के साथ बैठक करते हैं और मानक के अनुसार स्कूली वाहनों के संचालन की सीख देते हैं। लेकिन यह सीख सिर्फ बैठक तक ही सीमित होती है। बैठक के बाद स्कूल प्रबंधन सारी बातें भूल जाता है। बैठक की बात वह एक कान से सुनता है और दूसरे कान से निकाल देता है। वहीं अभिभावक पढ़ाई-लिखाई पर तो ध्यान देता है लेकिन बच्चा स्कूल कैसे पहुंच रहा है, इसको लेकर लापरवाह ही नजर आता है। जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़िए यहां शहर के स्कूलों में भी बच्चे खराब टेम्पो से स्कूल लाए ले जाए जा रहे हैं। स्कूल खुलने और बंद होते समय स्कूल के बाहर इसका नजारा कभी भी देखा जा सकता है। यही नहीं कई वाहनों में तो बच्चे लटककर भी आते-जाते देखे जा सकते हैं।

नोटिस पर नोटिस, 106 स्कूली वाहनों ने नहीं लिया फिटनेस

जिले के 106 स्कूली वाहन बिना फिटनेस के ही दौड़ रहे हैं। ऐसे वाहनों के विरुद्ध नोटिस पर नोटिस जारी की गई लेकिन वह फिटनेस लेने परिवहन विभाग के आफिस नहीं पहुंचे। वैसे जिले में कुल 764 स्कूली वाहन ही परिवहन विभाग में रजिस्टर्ड हैं। बताया तो यह भी जा रहा है यह स्कूली वाहन ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में बच्चों को लाने और ले जाने का कार्य कर रहे हैं। परिवहन विभाग भी ऐसे वाहनों पर कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।

फिटनेस के लिए यह है जरूरी : पंजीकरण, प्रदूषण प्रमाण पत्र, फिटनेस प्रमाण पत्र, चालक का डीएल, ड्राइवर का पुलिस वैरीफिकेशन, वाहन पर मोबाइल नंबर, पुलिस हेल्पलाइन नंबर दर्ज है या नहीं, अग्निशमन यंत्र, वाहन में जीपीएस, सीसीटीवी कैमरा एवं स्पीड कंट्रोल डिवाइस होना जरूरी है।

सड़कों पर चलने वाले वाहन ही बने स्कूल वाहन : सड़कों पर सवारी ढोने वाले आम वाहन ही स्कूली वाहन बन गए हैं। सड़कों पर टैक्सी में चल रहीं गाड़ियां भी बच्चों को स्कूल पहुंचा रहीं हैं। होता यह है कि स्कूल के समय में यह वाहन सवारियां न भरकर बच्चों को स्कूल पहुंचाने के काम में लग जाते हैं। कई सड़कों पर ऐसे वाहनों का नंबर लगता है। नंबर न होने पर वह स्कूली वाहनों के रूप में काम करते हैं लेकिन कभी-कभी तो ऐसा करना खतरे का सबब भी बन जाता है। नंबर लगाने की जल्दी में बच्चों की सुरक्षा को धता बताते हुए यह वाहन अधिक गति से सड़कों पर चलते हैं, जिसके कारण दुर्घटना की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

टैम्पों के बीच में तिपाई डालकर बैठाए जाते हैं बच्चे : खराब टेम्पों में मानक से अधिक स्कूली बच्चे बैठाए जा रहे हैं। टेम्पों के बीच में तिपाई डालकर बच्चों को बैठा लिया जाता है। जिससे कभी-कभी अचानक ब्रेक लगाने पर आपस में लड़कर चोटिल भी हो जाते हैं। इसके बावजूद भी बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने की व्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा है।

प्रस्तुति : प्रदीप तिवारी / सच्चिदानंद शुक्ल, फोटो : पंकज तिवारी पिंटू

सुझाव

1. स्कूलों में बच्चों के सुरक्षित आवागमन की व्यवस्था आवश्यक है।

2. बच्चों को पढ़ाई लिखाई से ज्यादा उनकी सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की जरूरत है।

3. स्कूल संचालक बच्चों को टेंपो और ई रिक्शा से लाते हैं, इस पर कार्रवाई होनी चाहिए।

4. जिला प्रशासन खटारा स्कूल वाहनों पर कड़ी कार्रवाई करे।

5. परिवहन विभाग ऐसे स्कूल संचालक के खिलाफ ठोस कार्रवाई करे।

शिकायत

1. खटारा व जर्जर वाहनों से बच्चे स्कूल पहुंचाए जा रहे हैं, भूसे की तरह उन्हें भरा जाता है।

2. बच्चों की सुरक्षा को लेकर स्कूल संचालक लापरवाही बरतते हैं, सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते।

3. बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अविभावक शिकायत करते है लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है।

4. मानकों की अनदेखी करने वाले स्कूल संचालकों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

5. फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं लेने वाले स्कूल संचालकों को नोटिस जारी करने के साथ समयावधि खत्म होने पर वाहनों को जब्त किया जाए।

स्कूली वाहनों के लिए यह है मानक

- इमरजेंसी गेट बसों के पीछे हों, मिनी बस में आग बुझाने के लिए 2-2 किलो के दो सिलेंडर होने चाहिए।

- बच्चे खिड़की से मुंह बाहर न निकाल पाए इसके लिए शीशों पर 5 से 7 ग्रिल होनी अनिवार्य हैं।

- एसी बसों में शीशे बंद होने के चलते ग्रिल की जरूरत नहीं है लेकिन बाकी के मानक पूरे करने अनिवार्य हैं.

- स्कूली बसों को सिर्फ 40 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलाया जा सकता है।

बोले लोग

गांव से लेकर शहर तक स्कूल संचालक बच्चों को लेकर लापरवाही बरतते हैं। इन स्कूलों के संचालकों के वाहनों की नियमित निगरानी होनी चाहिए। इससे काफी सुधार होगा।

- कुलदीप मिश्रा

जिले के सभी स्कूलों के वाहनों का आरटीओ से प्रमाण पत्र जारी हो।अभिभावक संतुष्ट रहे कि ठीक स्कूल वाहन में बच्चो को विद्यालय भेजा जा रहा है। बिना मानक के वाहनों से बच्चों को स्कूल न भेजा जाए।

- सुनील दुबे

जिले से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल वाहन बिना मानक के चल रहे हैं। वाहन के अन्दर बच्चों को बेतरतीब ढंग से बिठाया जाता है। ज्यादातर स्कूल वाहनों में यही स्थिति देखने को मिल रही है।

- अंकित सोनी

सभी स्कूलों को मोटर अधिनियम का पालन करना चाहिए। सुरक्षा के साथ स्कूल वाहन में बच्चो को लाने और छोड़ने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्कूल वाहन चालक को आरटीओ की तरफ से एक निर्धारित वर्दी और आईडी की भी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।

- विकास सिंह

बच्चों को विद्यालय लेकर आने जाने वाले वाहन चालकों को वाहन सावधानी पूर्वक चलाना चाहिए। वाहन में अधिक बच्चों को न बैठाएं । वाहन के साथ एक अतिरिक्त व्यक्ति को रखें जो वाहन चलते समय बच्चों पर ध्यान रखें।

- महेश चौबे

टैम्पों जैसे असुरक्षित संसाधनों का प्रयोग कर विद्यालय संचालकों द्वारा बच्चों को विद्यालय में पठन पाठन के लिए लाया और ले जाया जाता है। जिला प्रशासन संज्ञान में लेकर कार्रवाई करनी चाहिए।

- रजनीकांत तिवारी

फोटो 57 डॉ प्रभाकर पांडेय

परिवहन विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों व जिला प्रशासन को बच्चों को विद्यालय लाने व ले जाने वाले सुरक्षित वाहनों का प्रयोग करने के लिए निर्देशित करना चाहिए, जिससे बच्चे सुरक्षित विद्यालय आ जा सके।

- डॉ प्रभाकर पांडेय

स्कूलों में बच्चों को लाने व ले जाने के लिए केवल बस का प्रयोग करना चाहिए। जिससे बच्चे सुरक्षित आ जा सकें। छोटे वाहनों एवं बैटरी रिक्शा पर बच्चों को लाने व ले जाने के लिए प्रतिबंध लगाना चाहिए।

-अर्पित दुबे

विद्यालयों में सुरक्षित ट्रांसपोर्टिग की व्यवस्था न होने के कारण गांव के ही परिषदीय विद्यालय में बच्चे पढ़ने के लिए विवश हैं। यही नहीं विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षकों की तैनाती न होने के चलते बच्चों का भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।

- ब्रजेश शुक्ला

विद्यालय संचालक द्वारा बच्चों को विद्यालय लाने व ले जाने के लिए बस का प्रयोग करना चाहिए। विद्यालय संचालक को यह ध्यान देना चाहिए कि वाहन चालक किसी भी प्रकार का नशा न कर रहा हो।

- रमेश जायसवाल

स्कूल संचालक बच्चों को छोटी गाड़ियों में ठूंसकर भरते हैं। इसके लिए कड़े कदम उठाए जाएं और ऐसी स्थिति में स्कूल संचालक के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

- अमित तिवारी

बच्चे हाथ-पैर गाड़ी के बाहर ना निकालें, इसके लिए वाहन चालक विशेष ध्यान रखें। बच्चे वाहन से बाहर शरीर का अंग निकालने पर घटना घट सकती है। जिसका पूर्ण रूप से ध्यान रखें।

- नवनीत पाठक

गांव से लेकर शहर तक स्कूल संचालक बच्चों को लेकर लापरवाही बरतते हैं। इन स्कूलों के संचालकों के वाहनों की नियमित निगरानी होनी चाहिए। इससे काफी सुधार होगा।

-शिवांश दुबे

ग्रामीण क्षेत्रों में निजी स्कूल संचालक खटारा वाहन चलवाते हैं। बच्चों को तीन पहिया वाहन से स्कूल लाया जाता है, जो नियमों के खिलाफ है। इन स्कूलों को वाहन चलवाने के नियम बनाने की आवश्यकता है।

-आगमन दुबे

बोले अफसर

-स्कूली वाहनों की भी अभियान चलाकर चेकिंग की जाती है। उनके विरूद्ध भी कड़ी कार्रवाई की जा रही है। पीटीओ व आरआई को बिना फिटनेस के स्कूली वाहनों के विरुद्ध अभियान चलाने के लिए निर्देशित किया गया है।

- उमाशंकर यादव, संभागीय परिवहन अधिकारी प्रशासन

- 106 स्कूली वाहनों ने फिटनेस नहीं लिया है। ऐसे स्कूली वाहन सड़क पर मिलते ही चालान की कार्यवाही की जाती है। कई बार नोटिस दी गई है। अब वाहनों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने की चेतावनी दी गई है। जल्द ही ऐसे वाहनों के विरुद्ध अभियान चलाया जाएगा।

- शैलेंद्र त्रिपाठी, पीटीओ, परिवहन विभाग

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