बोले गोरखपुर: पूर्वाग्रह खत्म करे समाज, सुरक्षित वातावरण के साथ मिले सम्मान
Gorakhpur News - गोरखपुर में महिला चिकित्सकों को चिकित्सा क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें लैंगिक भेदभाव, लंबे ड्यूटी घंटे, और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन साधने में कठिनाई होती है।...
Gorakhpur news: चिकित्सा का क्षेत्र सेवा, समर्पण और संवेदनशीलता का क्षेत्र है। इन तीनों विशेषताओं में महिलाएं सबसे आगे हैं। जब महिला चिकित्सा क्षेत्र में कदम रखती है, तो वह न केवल मरीजों की बीमारियों से लड़ती है, बल्कि कई सामाजिक पूर्वाग्रहों और चुनौतियों से भी जूझती है। इस द्वंद्व में उसे अपनी पहचान, सम्मान, अधिकार के साथ परिवार का साथ पाने के लिए कई मोर्चों पर जंग लड़ना पड़ता है। आपके चहेते समाचार पत्र ‘हिन्दुस्तान ने ‘बोले गोरखपुर में महिला चिकित्सकों से उनकी दुश्वारियों पर चर्चा की। इस दौरान उनका दर्द छलक उठा। गोरखपुर। पूर्वीं र्वी यूपी के चिकित्सा क्षेत्र में महिला चिकित्सकों की अहम भूमिका है।
आधी आबादी के प्रसव, पोषण समेत दूसरी बीमारियों के इलाज की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा महिला डॉक्टर ही उठा रही हैं। एम्स और बीआरडी मेडिकल कालेज में महिला चिकित्सक इलाज के साथ प्रशासनिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रही हैं। अस्पताल में लंबी ड्यूटी के घंटे, नाइट शिफ्ट्स, पारिवारिक व प्रशासनिक जिम्मेदारियां, समाज की अपेक्षाएं उसके रास्ते को कठिन बना देते हैं। उनमें थकावट, नींद की कमी और डिप्रेशन हो जाता है। इसके बावजूद जिले की महिला चिकित्सक हार नहीं मानतीं। होता है लैंगिक भेदभाव : समाज में महिला चिकित्सकों से समानता का व्यवहार नहीं होता। कई बार पुरुष सहकर्मी के साथ ही मरीज व तीमारदार भी महिला डॉक्टर की क्षमताओं पर सवाल उठाते हैं, या उन्हें कम आंकते हैं। दंतरोग विशेषज्ञ डॉ. सुश्रेया त्रिपाठी ने इसे सहजता से स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि महिला चिकित्सकों की क्षमता पर मरीज सवाल उठाते हैं। जब दांत को उखाड़ना हो तो वह अक्सर पुरुष चिकित्सक को बुलाने का आग्रह करते हैं। कठिन है कार्य और निजी जीवन में संतुलन: महिला चिकित्सकों के लिए सबसे ज्यादा दुश्वारी अस्पताल में ड्यूटी के लंबे घंटे, नाइट शिफ्ट्स और इमरजेंसी काल के बीच समन्वय का होता है। इसके चलते परिवार, बच्चों और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाना बहुत कठिन हो जाता है। डॉ. बबिता शुक्ला ने कहा कि महिला चिकित्सक की ड्यूटी 24 घंटे की है। वह मरीज के लिए चिकित्सक, परिवार में पति व दूसरों के लिए पत्नी व बहू और बच्चों के लिए मां व शिक्षक की भूमिका निभा रही है। इनमें अक्सर संतुलन बिगड़ जाता है। बच्चों को गोद में लेकर करना पड़ता है इलाज: दोहरी जिम्मेदारियों के बीच संतुलन साधने में काफी कठिनाइयां होती हैं। दोहरी जिम्मेदारियों के बीच संतुलन साधने में काफी कठिनाइयां होती हैं। कई बार करियर या परिवार में से किसी एक को प्राथमिकता देनी पड़ती है। नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. कीर्ति मित्तल ने बताया कि ऐसा कई बार हुआ है कि मैने गोद में अपने बच्चे को लेकर मरीज के आंखों की जांच की। परामर्श दिया। बच्चे जब छोटे हों तो वह मां के ही गोद में रहते हैं। उन्हें भी नहीं छोड़ सकते और मरीज को भी नहीं। सताती है सुरक्षा की चिंता: महिला चिकित्सक के सामने सुरक्षा सबसे अहम मुद्दा है। देर रात ड्यूटी या ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग के दौरान सुरक्षा एक बड़ी चिंता रहती है। अस्पतालों में अक्सर तीमारदार हमलावर हो जाते हैं। डॉ. वंदना ने बताया कि मेडिको लीगल मामले में तीमारदार दबाव बनाते हैं। पुलिस भी प्रेशर देती है। डॉ. आकांक्षा ने बताया कि आए दिन अस्पतालों में महिला चिकित्सकों पर हमले हो रहे हैं। मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट का तीमारदारों पर कोई असर नहीं है। करियर ग्रोथ में है चुनौतियां: महिला डॉक्टरों को उच्च पदों (जैसे चिकित्सा अधीक्षक, विभागाध्यक्ष) तक पहुंचने के लिए पुरुष डॉक्टरों की तुलना में अधिक संघर्ष करना पड़ता है। पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से वे अतिरिक्त कोर्स, ट्रेनिंग या रिसर्च प्रोजेक्ट्स में भाग नहीं ले पातीं। जिससे ग्रोथ प्रभावित होती है। झोलाछाप बने हैं संकट: डॉ. प्रतिभा और डॉ. मिनाक्षी गुप्ता ने बताया कि महिलाओं के लिए बड़ा संकट गांव में फैले झोलाछाप हो गए हैं। उनसे इलाज कराने के बाद गर्भवती की हालत बिगड़ जाती है। सामान्य बीारी होने पर भी वह महिलाओं की बच्चेदानी को निकाल दे रहे हैं। वह इसकी सर्जरी तक कर दे रहे हैं। परिवार का दबाव: परिवार और समाज से जल्दी शादी करने या करियर छोड़ने का दबाव भी महिला डॉक्टरों पर पड़ता है। डॉ. आशा सिंह ने कहा कि फैमिली का सपोर्ट पूरी तरह नहीं मिलता। पति के करियर पर परिवार का ज्यादा तवज्जो होता है। बहू या बेटी के करियर पर परिजन ध्यान ही नहीं देते। उसे खुद ही आगे आना पड़ता है। इससे परिवार में रूसवाईयां बढ़ती है। इंटरनेट से मिल रहा अधकचरा ज्ञान डॉ. योगिता भटिया और डॉ. अरूणा छापड़िया ने कहा कि इंटरनेट से मिल रहे अधकचरे ज्ञान ने मुसीबत बढ़ा दी है। मैटफार्मिन दवा डायबिटीज के मरीजों को दी जाती है। इसी दवा का उपयोग महिला के अंडाशय में बनने वाले गांठों को गलाने में भी किया जाता है। इसका परामर्श देने पर आए दिन मरीजों के तीमारदार ओपीडी के उलझ रहे हैं। वह गूगल से सर्च कर डॉक्टर को ही गलत साबित करते हैं। मार्केटिंग स्किल में पीछे हैं महिलाएं डॉ. प्रीति मल्ल ने स्वीकार किया चिकित्सा क्षेत्र के मार्केटिंग स्किल में महिलाएं पीछे हैं। वह अपने पुरुष सहकर्मी या पति पर निर्भर हैं। व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में पुरुष चिकित्सक दूसरे चिकित्सक को रिझाने के तमाम जतन करते हैं। प्रलोभन देते हैं। समाज उन्हें नजरअंदाज करता हैं। महिला चिकित्सक ऐसा करें तो वह समाज की नजर में गिर जाएगी। शिकायतें महिला डॉक्टरों के साथ समाज में होता है लैंगिक भेदभाव महिलाओं की क्षमता को कम आंका जाता है। लापरवाही का आरोप लगाकर हमलवार होते हैं मरीज। परिवार व कार्यस्थल के बीच संतुलन साधना जरूरी। काम के दबाव में खुद की सेहत को नजरअंदाज करना सुझाव कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देना महिला डॉक्टरों के लिए सुरक्षित और सहयोगी वातावरण बनाना लचीले कार्य घंटे और मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाएं मिले परिवार और समाज का सहयोग मिले। मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना और जरूरत पड़ने काउंसलिंग लेना बोले जिम्मेदार महिलाएं अब आगे आ रही हैं। गायनी में 95 फीसदी डॉक्टर महिलाएं हैं। एनेस्थीसिया, रेडियोलॉजी, चर्मरोग, बालरोग, पैथोलॉजी, सोशल व प्रिवेंटिव मेडिसिन में महिलाएं पुरुषों को टक्कर दे रहीं हैं। -डॉ. प्रतिभा गुप्ता, अध्यक्ष, आईएमए खुद को ही प्रूव करना पड़ता है। मरीज जल्दी भरोसा नहीं करते। उनके लिए समय का पहिया तेजी से चलता हैं। जिम्मेदारियों के कारण 24 घंटे भी कम पड़ते हैं। समाज को यह समझाना होगा। -डॉ. मीनाक्षी गुप्ता, पूर्व सचिव, फाग्सी बोलीं महिला चिकित्सक महिलाओं को दोयम दर्जे पर रखना समाज की मानसिकता है। डॉक्टर समुदाय इसी समाज का हिस्सा है। ऐसे में रोजाना इस प्रकार भेदभाव देखने को मिलता है। -डॉ. मीना अग्रवाल घर के पुरुषों पर बच्चों को संभालने का तनाव नहीं हैं। वह अस्पताल और मरीज को ज्यादा समय देते हैं। इस वजह से वह चिकित्सा क्षेत्र में जल्दी सफलता पा रहे हैं। -डॉ. विभा सिंह पुरुषों से महिलाओं की दक्षता कम नहीं होती। वह मृदुभाषी, संवेदनशील, सहज और सहृदय होती हैं। दिक्कत सिर्फ टाइम मैनेजमेंट की होती है। यही सबसे बड़ी चुनौती है। -डॉ. सीमा शाही नेत्ररोग में तो मरीज अक्सर पुरुष डॉक्टर को तरजीह देते हैं। हम दोनों नेत्ररोग विशेषज्ञ हैं। यहां पर लैंगिंक भेदभाव दिखता है। दोनों की सुपर स्पेशियलिटी अलग-अलग हैं। -डॉ. कीर्ति मित्तल महिला से अपेक्षा की जाती है कि वह सुपर डॉक्टर, सुपर मॉम, सुपर बहू और सुपर टीचर बने। वहीं परिवार पुरुषों से ऐसी अपेक्षा नहीं करता। -डॉ. बबिता शुक्ला फैमिली का सपोर्ट बड़ा इश्यू है। वह अक्सर महिला चिकित्सकों को नहीं मिलता, जबकि उनकी पढ़ाई भी पुरुष चिकित्सकों के समान होती है। महिलाएं भी थकती हैं। -डॉ. आशा सिंह डॉक्टर जिन नहीं होता। मानो वह छूमंतर कहे और मरीज ठीक हो जाए। झोलाछाप केस बिगाड़कर भेजते हैं। तीमारदार मरीज को तुरंत ठीक करने का दबाव बनाते हैं। -डॉ. अरुणा छापड़िया मरीजों को पुरुषों की ताकत पर ज्यादा भरोसा होता है। जबकि महिला दंतरोग विशेषज्ञ ज्यादा दक्ष होती हैं। प्रैक्टिस के शुरूआती दिनों में रोजाना इस भेदभाव को सहना पड़ा था। -डॉ. मोनिका मिश्रा ऐसा अक्सर होता है कि मरीज ओपीडी में मुझसे इलाज करवाते हैं। दांत निकलवाने के लिए पुरुष डॉक्टर को बुलाने की मांग करते हैं। जबकि यह एक टैक्टिकल स्किल हैं। -डॉ. सुश्रेया त्रिपाठी पुरुष व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा मे दूसरों को पछाड़ने में साम, दाम, दंड, भेद में दक्ष होते हैं। वहीं महिलाएं इसमें पीछे हैं। वे संकोच करती हैं। समाज के रडार पर भी हैं। -डॉ. प्रीति मल्ल चुनौतियों से पार पाने के लिए सबसे जरूरी है, स्वयं पर विश्वास करना। निरंतर सीखते रहना, समय का सही प्रबंधन करना और मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना सबसे बड़ी ताकतें हैं। -डॉ. नीलम सिंह परिवार और समाज का यह कर्तव्य है कि वे महिला डॉक्टरों को बराबरी का सम्मान दें। सुरक्षित वातावरण प्रदान करें। संघर्ष के बाद ही सफलता की रोशनी खिलती है। -डॉ. प्रीति पाण्डेय
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