कोर्ट की टिप्पणी, अभियुक्तों ने रिश्तों और विकास का कत्ल किया
Hathras News - कोर्ट की टिप्पणी, अभियुक्तों ने रिश्तों और विकास का कत्ल कियाकोर्ट की टिप्पणी, अभियुक्तों ने और विकास का कत्लकोर्ट की टिप्पणी, अभियुक्तों ने और विकास

हाथरस,कार्यालय संवाददाता। दो मासूम बहनों की हत्या के मामले में कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेख किया है कि अभियुक्तगण द्वारा कारित अपराध विरल से विरलतम अपराधी की श्रेणी में आता है। अभियुक्तगण कठोर दण्ड के अधिकारी हैं। विद्यायन व न्याय की मंशा दोषसिद्ध अभियुक्तगण को मृत्युदण्ड का ही भागी बनाती है। दो मासूम बच्चियों की जघन्य हत्याकांड को लेकर बुधवार को एडीजे एससीएसटी एक्ट कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। इस वारदात को देखने वालों की रुह कांप उठी थी। दोनों बहनों की निर्मम हत्या की गयी। पूरे परिवार को मौत की नींद सुला देने का पूरा प्लान था,लेकिन शिक्षक दम्पति किसी तरह से बच गये, लेकिन दोनों ने काफी समय तक अलीगढ़ के अस्पताल में जिंदगी और मौत से जंग लड़ी, लेकिन पुलिस ने मुठभेड़ में आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया।
दोनों आरोपियों को बुधवार को पेशी पर लाया गया। दोपहर को एडीजे रामप्रताप सिंह ने फैसला सुनाया। उन्होंने अपने आदेश में उल्लेख किया है कि अभियुक्तगणों द्वारा रिश्तों और विश्वास का कत्ल करने के साथ-साथ मात्र कुछ रुपयों के लालच में आकर वीरांगना की अबोध बच्चियों की गर्दनों पर कई कई जानलेवा चोटे पहुंचाकर बर्बतापूर्वक निर्मम हत्या की गयी है। वीरांगना के पति छोटेलाल की गर्दनों पर भी अनके चोंटें पहुंचाकर जान से मारने की कोशिश की गयी है। अभियुक्तगण कम आयु होने के कारण ही कुछ रुपयों के लालच में जनपद फतेहपुर से जनपद हाथरस आकर यह घृणित व जघन्य घटना कारित की गयी है। अभियुक्तगणों की ओर से ऐसा कोई भी विश्वास करने का कारण प्रस्तुत नहीं किया गया है कि वे समाज में पुन: रुपयों के लालच में नहीं आएंगे और इस प्रकार की अथवा अन्य किसी प्रकार की कोई घटना कारित नहीं करेंगे। इसके अतिरक्त अभियुक्तगणों को कम आयु होने का आधार उनकी सजा को कम नहीं कर सकता है। कोर्ट ने उच्चतम न्यायलय की विधि व्यवस्था दीपकराय आदि बनाम स्टेट ऑफ बिहार (2013) 10 एससीसी 421 में अभिनिर्धारित किया है कि अभियुक्त की कम आयु सजा कम करने का एक मात्र आधार नहीं हो सकता है। इसलिए अभियुक्तगण के पक्ष में कोई भी उपशमनकारी परिस्थिति नहीं है तथा अभियुक्तगण द्वारा कारित अपराध विरल से विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है। अभियुक्तगण कठोर दण्ड के अधिकारी हैं। विधायन व न्याय की मंशा दोषसिद्ध अभियुक्तगण को मृत्युदण्ड का ही भागी बनाती है। कोर्ट ने धारा 103(1), 3(5) के अंतर्गत मृत्यु दण्ड की सजा और बीस-बीस हजार रुपये का अथर्दण्ड लगाया है। अर्थदण्ड जमा न करने पर एक-एक साल का सश्रम कारावास भुगतना होगा। इतना ही नहीं दोषसिद्ध अभियुक्तगणों को गर्दन में फांसी लगाकर फंदे पर तब तक लटकाया जाये जब तक कि उनकी मृत्यु न हो जाये। दोनों अभियुक्त विकास और लालूपाल को धारा 61(2) में मृत्युदण्ड की सजा और बीस-बीस हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। अभियुक्तगण को धारा 109 ,3(5) के अतंर्गत दस-दस साल के सश्रम कारावास की सजा और दस-दस हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाया है। अर्थदण्ड अदा न करने पर दो-दो माह का अतिरक्त सश्रम कारावास भुगतना होगा। धारा 4/25 में एक-एक साल की सजा और एक-एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। अर्थदण्ड जमा न करने पर एक-एक माह का अतिरक्त सश्रम कारावास भुगतना होगा। अभियुक्तगणों पर अधिरोपित उपरोक्त अर्थदण्ड की समस्त धनराशि में से आधी धनराशि प्रस्तुत प्रकरण की मृतकाओं के माता पिता को वसूली के उपरांत नियमानुसार देय होगी। मृत्यु दण्ड का निष्पादन उच्चतम न्यायालय से दण्डादेश की पुष्टि होने तक स्थगित रहेगा।
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