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Jaunpur News - मानदेय बढ़े, हमें हमारा हक और सम्मान मिले सुबह नल में पानी आने
मानदेय बढ़े, हमें हमारा हक और सम्मान मिले सुबह नल में पानी आने के साथ लोगों की दिनचर्या शुरू हो जाती है, पर कभी सोचा है कि वे कौन लोग हैं, जो अलसुबह ट्यूबवेल चालू कर देते हैं? वे हैं नलकूप ऑपरेटर। सबसे पहले जागते हैं, ताकि किसी को दिनचर्या के पालन में पानी की दिक्कत न हो। इन ऑपरेटरों को न छुट्टी मिलती है, न ओवरटाइम का पैसा। महीने भर की जगह 26 दिनों की तनख्वाह मिलती है। पीएफ, ईएसआइसी के लाभ से वे वंचित हैं। सरकारी कर्मचारियों की तरह काम करते हैं, लेकिन उनकी कोई गिनती नहीं होती। वे चाहते हैं कि उन्हें उनका हक और सम्मान मिले।
नगर क्षेत्र में 213 ट्यूबवेल ऑपरेटर शहर में जल आपूर्ति की जिम्मेदारी संभालते हैं। हर दिन, हर घर, नल से जल पहुंचाने वाले ये लोग अपनी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। नगर के लालडिग्गी स्थित नगरपालिका परिषद परिसर में ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान ट्यूबवेल ऑपरेटरों ने कहा कि हमारी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा रहा है। चंद्रभान सिंह ने बताया कि महीने भर की ड्यूटी के बाद भी चार दिन की तनख्वाह काट ली जाती है। न छुट्टी है न समय पर वेतन। पीएफ कटता है, लेकिन जमा नहीं होता। ईएसआईसी की किस्तें जाती हैं, पर इलाज की सुविधा नहीं मिलती है। सरकार ने मानदेय बढ़ाने की घोषणा की, पर अभी पुराना मानदेय मिल रहा है। गोपीनाथ मिश्रा ने कहा, पहले व्यवस्था थी कि चार दिन की छुट्टी ली जा सकती है, भले ही उसका पैसा न मिले, लेकिन अब वह छुट्टी खत्म कर दी गई। अब न आराम मिलता है, न पूरा पैसा दिया जाता है। काम लगातार करना है पर भुगतान घट गया है। आदित्य दुबे ने कहा कि सरकार को हमारी समस्या दूर करनी चाहिए शिवम गुप्ता ने कहा कि हम लोग सरकारी कर्मचारी जैसा ही काम करते हैं, लेकिन गिनती में नहीं आते। हमें भी सम्मान चाहिए। पीएफ कटौती का हिसाब नहींः हर ऑपरेटर की जुबान पर गंभीर समस्या पीएफ की थी। संजय कुमार सिंह ने बताया कि पहले जिन निजी कंपनियों के माध्यम से नगर पालिका ने ऑपरेटरों की तैनाती कराई थी, उन्होंने करीब 12 महीने तक पीएफ काटा, लेकिन जमा नहीं किया। मौजूदा कंपनी ने भी छह महीने का पीएफ नहीं दिया है। कहा कि हमारा पैसा हर महीने कट रहा है, लेकिन ऑनलाइन स्टेटमेंट में कुछ दिखता ही नहीं। साल भर हो गया, अब तक एक भी किस्त जमा नहीं हुई। ऐसे में न वर्तमान सुरक्षित है न भविष्य। पीएफ का पैसा मजाक बन गया है। पुराना मानदेय मिल रहाः सरकार ने अप्रैल 2025 से ट्यूबवेल ऑपरेटरों का मासिक मानदेय 13,000 रुपये करने की घोषणा की है लेकिन ज्यादातर ऑपरेटरों को अभी 9,000 रुपये प्रतिमाह ही मिल रहे हैं। प्रियेश गुप्ता ने कहा कि नये मानदेय की कॉपी कहीं नहीं दिखती। जब भी पूछो तो जवाब मिलता है कि फाइल चल रही है। मेडिकल सुविधा नहींः अजय कुमार पांडेय ने कहा कि स्वास्थ्य बीमा के नाम पर ईएसआइसी के तहत ऑपरेटरों के वेतन से हर महीने 74 रुपये काटे जा रहे हैं, लेकिन न किसी को कार्ड मिला, न मेडिकल सुविधा। कहा कि अगर बीमार पड़ जाएं तो प्राइवेट डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। ईएसआइसी कार्ड बनना चाहिए पर हमें तो उसका नंबर भी नहीं मिला है। कई ऑपरेटरों को यह भी नहीं पता कि उनका नाम पंजीकृत हुआ है या नहीं। ठेकेदार की दया पर जिंदगीः नगरपालिका में ट्यूबवेल ऑपरेटरों की नियुिक्त निजी कंपनियों के माध्यम से होती है। इन कंपनियों को ‘वर्क ऑर्डर दिया जाता है। ऑपरेटरों की मानें तो नियुक्ति के नाम पर ठेकेदार से लेकर बाबू तक की जेब गर्म करनी पड़ती है। इस व्यवस्था में पारदर्शिता लगभग शून्य है। अगर कोई शिकायत करे तब अनुशासन के नाम पर निकालने की धमकी दी जाती है। हर वक्त हाजिर रहने का दबावः राजकुमार जायसवाल ने कहा कि 24 घंटे सातों दिन रहने का दबाव होता है। ट्यूबवेल की मोटर बंद हो जाए, पानी सप्लाई रुके या किसी पाइप लाइन में लीकेज हो, सबसे पहले ट्यूबवेल ऑपरेटर को बुलाया जाता है, लेकिन हमारे पास न जरूरी टूलकिट है, न वाहन। सब कुछ खुद ही देखना पड़ता है, वह भी बिना किसी अतिरिक्त भत्ते के। कहा कि कई बार रात 12 बजे भी कॉल आता जाता है कि मोटर बंद हो गई है, चलो देखो। ट्यूबवेल खस्ताहालः ऑपरेटरों ने बताया कि ट्यूबवेलों की मशीनें, वायरिंग और पैनल बॉक्स काफी पुराने हो चुके हैं। नियमित रखरखाव न होने से आए दिन मोटर जल जाती है, तब पानी सप्लाई ठप हो जाती है। मशीन खराब होने पर पानी न आए तब पूरा मोहल्ला ऑपरेटर पर ही गुस्सा उतरता है. जबकि इसकी जिम्मेदारी पालिका या ठेकेदार की है। प्रस्तुति : कमलेश्वर शरण/गिरजा शंकर मिश्र कोट किसी को फर्क नहीं पड़ता कि हम भी बिना छुट्टी हर दिन लगातार काम करते हैं। ओवरटाइम का तो कोई नाम ही नहीं। चंद्रभान सिंह हम लोगों को आज भी पुराना मानदेय ही मिलता है। विभाग में मानदेय की फाइलें अटकी हैं। गोपीनाथ मिश्रा सुरक्षा नहीं है और कोई अधिकार भी नहीं हैं। सिर्फ जिम्मेदारी है जो दिन-रात निभानी पड़ती है। संजय कुमार सिंह हर महीने पीएफ किस्त काट ली जाती है लेकिन वह खाते में जमा नहीं होता। ऐसे में न वर्तमान सुरक्षित है न भविष्य। प्रियेश गुप्ता ईएसआइसी मद में पैसा कटता है पर बीमारी के इलाज की सुविधा नहीं मिलती। हेल्थ कार्ड नहीं बना है। अजय कुमार पांडेय अगर हम लोग बीमार भी पड़ जाएं तब भी ड्यूटी पर जाना हमारी मजबूरी बन चुकी है। राजकुमार जायसवाल ट्यूबवेल की मशीनें खराब होती हैं या पैनल जल जाते हैं तो जिम्मेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ता। आदित्य दुबे ठेके पर काम है, ऊपर से भ्रष्टाचार इतना कि नौकरी पाने से पहले ही जेब खाली करनी पड़ती है। शिवम गुप्ता हमारे बिना शहर प्यासा रह जाएगा, फिर भी हम हर नीति में आखिरी पायदान पर रखे जाते हैं। अजय खत्री न तो हमारी बात जनप्रतिनिधि सुनते हैं, न नगर पालिका के अधिकारी। कोई गंभीरता से नहीं लेता। विनय कुमार हम काम सरकारी कर्मचारी की तरह ही करते हैं, लेकिन सुविधाएं मजदूरों से भी कम मिलती हैं। इससे परेशानी होती है। देवेंद्र गुप्ता न तो हम अधिकारी हैं, न तो मजदूर माने जाते हैं। हम कहीं दर्ज ही नहीं हैं। हमारी समस्याएं सुनीं जाएं। शिवकुमार साहू सुझाव ट्यूबवेल ऑपरेटरों को ठेकेदारी प्रथा से बाहर निकालकर नगरपालिका के कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया जाए। सरकार की ओर से निर्धारित 13,000 रुपये मानदेय तत्काल प्रभाव से लागू हो और मानदेय समय पर दिया जाए। पीएफ, ईएसआइसी का ऑनलाइन ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया जाए। इसके साथ ही हर कटौती का रिकॉर्ड सार्वजनिक होना चाहिए। साप्ताहिक अवकाश, अतिरिक्त समय का भत्ता और सुविधाएं मिलनी चाहिए। पहचान के लिए यूनिफॉर्म और आईडी कार्ड दिए जाएं। ट्यूबवेल की मशीनों और उपकरणों का नियमित रखरखाव किया जाए। ऑपरेटरों को जरूरी टूलकिट और वाहन मुहैया कराया जाए। शिकायतें पूरी ड्यूटी के बाद भी 26 दिन का मानदेय मिलता है। चार दिन की तनख्वाह काट ली जाती है। वह भी समय पर नहीं मिलता। पीएफ की राशि काटी जाती है पर जमा नहीं होती। ईएसआइसी के पैसे कटते हैं लेकिन कोई कार्ड या सुविधा नहीं मिलती। 24 घंटे सातों दिन हाजिर रहने का दबाव रहता है लेकिन न छुट्टी है, न अतिरिक्त भत्ता। ओवरटाइम का तो कोई नाम ही नहीं। हाल ही में सरकार ने मानदेय बढ़ाकर 13,000 रुपये प्रतिमाह निर्धारित किया है, लेकिन मात्र 9,000 रुपये मिल रहे हैं। हम सरकारी कर्माचारी की तरह काम करते हैं, लेकिन हमें कभी गिनती में नहीं लिया जाता है। कोई सुरक्षा भी नहीं है। बोले जिम्मेदार : समस्याओं का समाधान 10 जून तक हो जाएगा आउटसोर्स कर्मचारियों के भुगतान के लिए जारी नए शासनादेश की प्रति शासन से मंगवाई गई है। दस जून तक ट्यूबवेल आपरेटरों की इस समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। नए मानदेय के भुगतान के लिए ठेकेदार से भी बात की जा रही है। जी. लाल, अधिशासी अधिकारी, नगरपालिका
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