लोहिया व केजीएमयू शुरू करेगा बोन मैरो ट्रांसप्लांट
Lucknow News - विश्व थैलसीमिया दिवस 8 मई को थीम---थैलसीमिया के लिए एक साथ: समुदायों को एकजुट करना,

लोहिया संस्थान और केजीएमयू में थैलेसीमिया मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो सकेगा। इसकी कवायद तेज हो गई है। लोहिया संस्थान में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए अलग वार्ड बनाया जा रहा है। जल्द ही ट्रांसप्लांट के लिए दूसरे संसाधन जुटाए जाएंगे। गुरुवार को थैलेसीमिया जागरूकता दिवस है। लोहिया संस्थान में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होगा। इससे थैलेसीमिया मरीजों को राहत मिलने की उम्मीद है। निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने बताया कि लोहिया में अभी किडनी ट्रांसप्लांट हो रहा है। अब दूसरे चरण के तहत थैलेसीमिया मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा उलपब्ध कराई जाएगी। इसके लिए 20 बेड का अलग से वार्ड बनाया जा रहा है।
जरूरी संसाधन जुटाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि किडनी, लीवर और बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन के लिए एक केंद्र बनाने के प्रस्ताव को सरकार द्वारा मंजूरी दी गई है। इसके लिए 18.22 करोड़ रुपये की धनराशि की मंजूरी दी गई है। हिमैटोलॉजी विभाग के तहत ट्रांसप्लांट की सुविधा मरीजों को मुहैया कराई जाएगी। ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुब्रत चन्द्रा ने बताया कि अभी थैलेसीमिया के 250 मरीज पंजीकृत हैं। छह बेड पर मरीजों को डे केयर में भर्ती किया जा रहा है। प्रतिदिन 12 से अधिक बच्चों को बिना डोनर खून चढ़ाया जा रहा है। जरूरी दवाएं मुहैया कराई जा रही हैं। केजीएमयू के हिमैटोलॉजी विभाग में थैलेसीमिया मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट होगा। इसकी तैयारी अंतिमदौर में है। कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने बताया कि शुरूआत मरीज के बहन या भाई से बोनमैरो लेकर प्रत्यारोपित किया जाएगा। मरीज के बोन मैरो में थैलेसीमिया से पीड़ित कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए कीमोथेरेपी या विकिरण का उपयोग भी किया जाएगा। सफल ट्रांसप्लांट के बाद मरीज सामान्य जीवन जीने की संभावना बढ़ जाती है। समय-समय पर चढ़ाया जाता है खून केजीएमयू बाल रोग विभाग के डॉ. निशांत वर्मा ने बताया कि थैलेसीमिया एक स्थायी आनुवांशिक रक्त विकार है। जिसमें लाल रक्त कणों में हीमोग्लोबिन नहीं बनता है। मरीज एनीमिया की चपेट में आ जाता है। जान बचाने के लिए मरीज को समय-समय पर खून चढ़ाया जाता है। लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से शरीर को कम ऑक्सीजन मिलती है, जिससे थकान और कमजोरी होती है। हीमोग्लोबिन की कमी से मरीज का शरीर पीलापन का शिकार हो जाता है। तीन से चार फीसदी माता-पिता इसके वाहक हैं। देश में हर साल 10 से 15 हजार बच्चे थैलेसीमिया की गंभीर बीमारी के साथ जन्म ले रहे हैं। सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र 120 दिनों की होती है। लेकिन इस बीमारी के कारण आयु घटकर 20 दिन रह जाती है। जिसका सीधा प्रभाव हीमोग्लोबिन पर पड़ता है। लक्षण थकान, कमजोरी त्वचा का पीलापन सांस लेने में तकलीफ तिल्ली का बढ़ना थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की वृद्धि और विकास में देरी चेहरे की हड्डियों में समस्या अस्थि मज्जा में समस्या गहरे रंग का मूत्र अपरिपक्व लाल रक्त कोशिकाएं बार-बार संक्रमण: पीलिया बढ़े हुए अंग
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