नहीं दे सकते अभिमत, समझौते में शामिल थे नियामक आयोग अध्यक्ष
Lucknow News - - विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने दिलाई वर्ष 2020 में हुए समझौते की याद

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने नियामक आयोग के अभिमत देने पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। संघर्ष समिति ने कहा है कि वर्ष 2020 में संघर्ष समिति और सरकार के बीच हुए समझौते पर मौजूदा नियामक आयोग अध्यक्ष के दस्तखत हैं। लिहाजा वह अब इस मामले में बतौर नियामक आयोग अध्यक्ष कैसे अपनी राय दे सकते हैं? संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि संघर्ष समिति के साथ 6 अक्टूबर 2020 को वित्त मंत्री सुरेश खन्ना व तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की मौजूदगी में लिखित समझौता हुआ था। तब मौजूदा नियामक आयोग अध्यक्ष पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष थे।
समझौता पत्र में लिखा है, 'पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव वापस लिया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी अन्य व्यवस्था का प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान व्यवस्था में ही विद्युत वितरण में सुधार हेतु कर्मचारियों एवं अभियंताओं को विश्वास में लेकर सार्थक कार्यवाही की जाएगी। कर्मचारियों एवं अभियंताओं को विश्वास में लिए बिना उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थान पर कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।' ऐसी स्थिति में अब अरविंद कुमार को निजीकरण के प्रस्ताव पर कोई भी राय देने का नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं है। संघर्ष समिति ने कहा कि विद्युत नियामक आयोग में सदस्य संजय सिंह पावर कॉरपोरेशन के कर्मचारी रह चुके हैं। उन्हें भी इस मामले में राय नहीं देनी चाहिए। आयोग में कोई विधि सदस्य नहीं है। कोरम ही पूरा नहीं है। आंदोलन तेज करने का फैसला आज! रविवार को भी संघर्ष समिति का नियमानुसार कार्य आंदोलन जारी रहा। सभी परियोजना कार्यालयों पर विरोध सभाएं हुईं। संघर्ष समिति सोमवार शाम से आंदोलन तेज करने का फैसला ले सकती है। संघर्ष समिति ने कोर कमेटी की बैठक बुलाई है।
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