Unique Stick Holi Celebration in Gokul A 500-Year Tradition of Love and Devotion लाला कूं चोट न लग जावै, सो होगी छड़ीमार, Mathura Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsMathura NewsUnique Stick Holi Celebration in Gokul A 500-Year Tradition of Love and Devotion

लाला कूं चोट न लग जावै, सो होगी छड़ीमार

Mathura News - गोकुल में होली का उत्सव 500 वर्षों से मनाया जा रहा है। यहां गोपियाँ भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के साथ छड़ीमार होली खेलती हैं। इस परंपरा में श्रद्धा और भक्ति के साथ गोपिकाएँ छोटी छड़ियों से बालकृष्ण...

Newswrap हिन्दुस्तान, मथुराMon, 10 March 2025 03:33 AM
share Share
Follow Us on
 लाला कूं चोट न लग जावै, सो होगी छड़ीमार

ब्रज में चालीस दिन तक चलने वाली होली के अलग-अलग रंग हैं। बरसाना और नंदगांव में जहां लाठियों के साथ हुरियारिनें भगवान श्रीकृष्ण व गोपों के साथ होली खेलती हैं, वहीं गोकुल में गोपियां भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के साथ छड़ी लेकर होली खेलती हैं। गोपियां का भाव रहता है कि बालकृष्ण को कहीं होली में चोट न लग जाए, इसलिए वे सिर्फ अपनी छड़ी से उनको स्पर्श करती हैं। समय कितना ही क्यों न बदल गया हो, लेकिन गोकुल की होली में आज भी द्वापर युगीन परंपरा साकार दिखती है। यहां टेसू के फूलों से बने रंग के साथ गोप-गोपियां होली खेलतीं हैं। मुरलीधर घाट पर परंपरगत छड़ी मार होली अपने आप में सबसे अलग है। गीराज भगवान श्रीकृष्ण की नगरी गोकुल में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भव्य दिव्य तरीके के साथ विश्व प्रसिद्ध छड़ीमार होली का आयोजन मुरलीधर घाट पर होता है। संपूर्ण देश की होली के साथ ही मथुरा-वृंदावन, बरसाना, नंदगांव, दाऊजी सहित पूरे ब्रज की होली देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। ब्रज की होली देखने के लिए दूर-दूर से दर्शक आते हैं। कान्हा की नगरी गोकुल में होली खेलने का अंदाज बिल्कुल ही अलग है। यहां रंग, अबीर-गुलाल के अलावा फूल, लड्डू, और छड़ी से होली खेली जाती है। ब्रज में गोकुल ही एक जगह ऐसी है, जहां छड़ी से मार खाकर भी लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं।

बरसाने की लड्डू होली के सात समूचे ब्रज में होली का उत्सव शुरु हो जाता है। बरसाना और नंदगांव में जहां गोपियों के हाथ में लाठियां होती हैं, वहीं गोकुल में गोपियां छड़ी लेकर होली खेलती है। गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण का बचपन गुजरा था। माखन चोरी जैसी नटखट लीलाएं भी भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल में ही थीं। गोकुलवासी भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप में ही पूजा करते हैं। जहां भगवान को माखन-मिश्री का भोग लगाया जाता है, वहीं उनको पालने में भी झुलाया जाता है। इसी तरह होली आने पर गोकुलवासी बालस्वरूप में ही भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के साथ होली खेलते हैं। यही वजह है कि यहां गोपियों के हाथ में छड़ी होती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को छड़ीमार होली खेली जाती है। इस बार 11 मार्च को गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाएगी। छड़ीमार होली खेलने की शुरुआत नंद किले के नंदभवन में ठाकुर जी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर की जाती है। हर साल होली खेलने वाली गोपियां 15 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं।पौराणिक कथा के अुनसार कान्हा जी बचपन में बड़े ही नटखट थे और वे गोपियों को काफी परेशान भी करते थे। गोपियां कृष्णजी को सबक सिखाने के लिए उनके पीछे छड़ी लेकर भागा करती थीं। गोपियां छड़ी का इस्तेमाल कान्हा जी को सिर्फ डराने के लिए करती थीं। कहते हैं कि इसी परंपरा की वजह से गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है, जिसमें लट्ठ की जगह छड़ी का प्रयोग किया जाता है। बाल गोपाल को चोट न लग जाए इसलिए लट्ठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। कहते हैं कि छड़ीमार होली कृष्ण के प्रति प्रेम और भाव का प्रतीक है। हिन्दुस्तान समाचार पत्र द्वारा आयोजित संवाद में गोकुलवासियों ने इस होली के प्रति अपनी भावनाएं प्रकट कीं।

भगवान श्रीकृष्ण की नगरी में आयोजित होने वाले छड़ीमार होली में नगर समस्त समाज की महिलाओं को होली खेलने का मौका मिलता है। यहां की महिलाएं लाला को बाल स्वरूप में देखकर होली खेलती हैं। यहां की होली में नृत्य-गीत और संगीत होता है, बालकृष्ण के साथ गोपियां भावपूर्ण तरीके से होली खेलती हैं। -गीता खंडेलवाल

भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के साथ छड़ीमार होली खेलने का सौभाग्य यहां गोकुल में मुझे मिला। ब्रज की होली में गोकुल की होली का बड़ा ही महत्व है। यह हर किसी के नसीब नहीं होती है। ठाकुरजी की इच्छा के बिना कोई भी उनके साथ होली नहीं खेल सकता। मेरी जिंदगी में इस होली का विशेष महत्व है। -रीति शर्मा

गोकुल की होली में बालकृष्ण स्वरूप पालकी में बैठकर पूरे नगर का भ्रमण करते हुए मुरलीधर घाट पर पहुंचते हैं। यहां ब्रज की नारी उनके साथ छड़ीमार होली खेलती हैं। होली खेलने के दौरान साक्षात् भगवान के बाल रूप के दर्शन दिखाई देते हैं। इस होली में मस्ती के साथ-साथ पग-पग पर श्रद्धा और भक्ति लोगों को भाव-विभोर कर देती है

-सीमा शर्मा

गोकुल की छड़ीमार होली में 111 गोपिकाएं बाल कृष्ण लाल के साथ होली खेलती हैं। इस होली में महिलाएं लहंगा, फारिया के साथ पारंपरिक वेशभूषा में अपने अपने घरों से छोटी छड़ी बनाकर लाती है, जिसका प्रयोग होली के दौरान लाला पर मारने के काम आती हैं। गोकुल की छड़ी मार होली में आज भी प्राचीन परंपरा का निर्वहन हो रहा है। -

प्रभा दीक्षित

योगिराज भगवान श्रीकृष्ण की नगरी में करीब 500 वर्षों से होली खेली जा रही है। गोकुल की छड़ीमार होली पूरे ब्रजमंडल में अद्वितीय है, यहां बाल कृष्ण लाल सखियों के साथ होली खेलते हुए नगर भ्रमण करते हुए शाम को मंदिर में पहुंचते हैं, जहां उनको विधि-विधान के साथ मंदिर में विराजमान किया जाता है।

-छनियां पुजारी

योगिराज भगवान श्रीकृष्ण की नगरी में करीब 500 वर्षों से होली खेली जा रही है। गोकुल की छड़ीमार होली पूरे ब्रजमंडल में अद्वितीय है, यहां बाल कृष्ण लाल सखियों के साथ होली खेलते हुए नगर भ्रमण करते हुए शाम को मंदिर में पहुंचते हैं, जहां उनको विधि-विधान के साथ मंदिर में विराजमान किया जाता है।

-छनियां पुजारी

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।