बोले मेरठ : तकनीक और संसाधन मिलें तो रफ्तार पकड़े जिंदगी की गाड़ी
Meerut News - मेरठ में सड़क किनारे काम करने वाले मैकेनिकों की संख्या 5000 से अधिक है, लेकिन नई तकनीकों के कारण उनके काम में कमी आई है। वे चाहते हैं कि उन्हें आधुनिक तकनीक की ट्रेनिंग मिले और सरकारी योजनाओं का लाभ...
मेरठ। शहर की सड़कों के किनारे और नुक्कड़ पर आपको एक शेड या खोखे में बैठा हुआ मैकेनिक दिख जाता है। वाहनों को ठीक करते हुए काले हुए उसके हाथ, चेहरे पर मेहनत की लकीरें और आंखों में उसके परिवार भविष्य नजर आता है। जो टूटी बाइक को फिर से दौड़ने लायक बना देता है, बेकार हुई गाड़ी को चालू कर देता है, समझो जंग लगी मशीनों में जान फूंक देता है। लेकिन आजकल शहर में कई जगह पर वही हुनरमंद हाथ खाली बैठे दिखते हैं। बदलते समय में उनकी मेहनत और हुनर कुछ नयापन चाहते हैं। मेरठ शहर की सड़कों के किनारे, हाईवे और चौराहों के आसपास टू व्हीलर की मरम्मत करने वाले सैकड़ों मैकेनिक नजर आते हैं।
जो बाइक, स्कूटर, स्कूटी और मोपेड को ठीक करके अपने परिवार की रोजी रोटी का जुगाड़ करते हैं। वहीं कुछ जगहों पर फोर व्हीलर ठीक करने के लिए कार गैराज और उसमें काम करने वाले मैकेनिक के साथ डेंटिंग पेंटिंग करने वाले कारीगर भी मौजूद रहते हैं। मेरठ जिले की बात की जाए तो कुल मिलाकर टू-व्हीलर और फोर व्हीलर करीब 5 हजार से ज्यादा मैकेनिक मौजूद हैं। नई तकनीकों से लैस गाड़ियों के चलते खाली-खाली नजर आते हैं। पहले जहां गाड़ियों की मरम्मत की ज़रूरत हर दिन पड़ती थी, अब सर्विस सेंटर और कंपनी के वॉरंटी सिस्टम ने लोकल मैकेनिक की जगह ले ली है। हर कोई सीधे ब्रांडेड सर्विस सेंटर का रुख करता है, चाहे खर्चा ज्यादा हो, लेकिन गाड़ी की गारंटी मिल जाती है। ऐसे में ये मैकेनिक भी बेहतर तकनीक की ट्रेनिंग और सरकारी सुविधाएं चाहते हैं। ताकि भविष्य में खुद को मजबूत कर सकें। हाथों के हुनर को मिले तकनीक का साथ स्कूटी मैकेनिक सुरेश, बाइक मिस्त्री दीपक कुमार, हनी और मोहित का कहना है कि जब से इलेक्ट्रिक स्कूटी और वाहन आए हैं, तब से काम में धीमापन आया है। जहां पहले बड़ी संख्या में गाड़ियां मरम्मत के लिए आती थीं उनकी संख्या कम हो गई है। वहीं फोर व्हीलर की मरम्मत का काम करने वाले बृजेश कुमार, शाने आजम और फोर व्हीलर के पार्ट्स बेचने वाले अनिल वासम का कहना है कि नई तकनीकों से लैस गाड़ियां अब कंप्यूटराइज्ड हैं, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, सेंसर, कोडिंग वाले इंजन हैं। इन सबके लिए पारंपरिक मैकेनिक के पास ना तो उपकरण हैं और ना ही वो प्रशिक्षण, जो आज की ज़रूरत है। अगर ट्रेनिंग और अन्य सुविधाएं दी जाएं तो मैकेनिक खुद को अपडेट कर सकता है। नई टेक्नोलॉजी ने बढ़ाई टेंशन मोहम्मद शाहिद अली और इमरान का कहना है कि पहले रजनबन क्षेत्र में आबू नाले के किनारे गैराजों पर गाड़ियां खड़ी करने की जगह नहीं मिलती थी, लोगों को कई-कई दिनों तक का समय दिया जाता था। लेकिन अब गाड़ियां सही कराने के लिए बहुत कम आती हैं। सभी में नई टेक्नोलॉजी है, पांच साल तक कंपनी देखरेख करती है, इसके बाद भी अगर गाड़ी खराब होती है तो लोग कंपनी में ही ले जाते हैं। ऐसे में रोजगार पर काफी असर पड़ा है। श्रम विभाग में हो रजिस्ट्रेशन टू-व्हीलर और फोर व्हीलर गाड़ियों का काम करने वालों का कहना है कि अभी भी देशभर में लाखों मैकेनिक ऐसे हैं, जिनका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। वे ना तो किसी सरकारी योजना का लाभ ले पाते हैं, ना ही बीमा जैसी सुविधा उनके पास होती है। इन्हें श्रम विभाग में रजिस्टर किया जाए, तो सरकार इन्हें योजनाओं में शामिल कर सकेगी। ट्रेनिंग से आत्मनिर्भर बनने की आस गैराज में काम करने वाले लाखन सिंह, सेंसर पाल और अकील अहमद का कहना है कि मैकेनिक चाहते हैं कि उन्हें समय के साथ बदलने का मौका दिया जाए। सरकार से उम्मीद करते हैं, कि उन्हें आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाए, ताकि वे भी नए मॉडल की गाड़ियों को समझ सकें, उनके इंजन को खोल सकें और डिजिटल स्कैनर का इस्तेमाल कर सकें। अगर सरकारी स्तर पर प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाएं, जहां हमें मुफ्त या कम शुल्क में ट्रेनिंग दी जाए, तो ना सिर्फ रोजगार पा सकेंगे, बल्कि दूसरे युवाओं को भी प्रशिक्षित कर सकेंगे। वर्कर्स के रूप में मिले पहचान मैकेनिकों का कहना है कि सरकार अगर हम लोगों को भी ‘वर्कर्स के रूप में पहचान दे और योजनाओं का हिस्सा बनाए, तो न केवल हमारी जिंदगी सुधरेगी, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। हर रोज़ सुबह अपनी दुकान खोलने वाला मैकेनिक उम्मीद करता है, कि आज कुछ गाड़ियां आएंगी, च्चों के लिए कुछ ले जा सकेंगे। उसकी ये उम्मीद तब पूरी होगी जब सरकार और टेक्नोलॉजी साथ मिलकर उन्हें नया रास्ता दिखाएंगे। योजनाओं के बारे में नहीं जानकारी मैकेनिकों का कहना है कि उन्हें गाड़ियों के पार्ट्स और टेक्निकल जानकारी है, लेकिन सरकारी योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अगर सरकार कैंप लगाकर या किसी अन्य माध्यम से उन्हें इसकी जानकारी उपलब्ध कराए, तो वे लाभ उठा सकते हैं। मजदूरों और श्रमिकों के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना, बीमा योजनाएं और कौशल विकास कार्यक्रम। लेकिन इनका लाभ तभी मिल सकता है, जब इन मैकेनिकों को इन योजनाओं तक पहुंच मिले। अगर इन योजनाओं के बारे में जानकारी हो तो ये मैकेनिक छोटी-मोटी लोन योजनाओं, बीमा लाभ, और ट्रेनिंग से जुड़ सकते हैं। बीमा सुविधा मिलने से उनका भविष्य, उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है। सुझाव पुराने ग्राहकों से रिलेशन बनाए रखें, उन्हें सर्विस रिमाइंडर दें ऑटोमेटिक ट्रांसमिशन जैसी टेक्नोलॉजी को समझें, ट्रेनिंग लें सभी गाड़ियों के स्पेयर पार्ट्स की जानकारी और सही सामान रखें सरकारी सुविधाओं के बारे में जानकारी लें, रजिस्ट्रेशन कराएं लेबर डिपार्टमेंट में रजिस्ट्रेशन कराएं, सरकारी सुविधाएं मिलें शिकायतें ग्राहकों की कमी और काम का उतार-चढ़ाव रहता है आजकल नई गाड़ियों की टेक्नोलॉजी समझना मुश्किल है स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता नहीं होना, नकली की समस्या कुछ जगहों पर ग्राहकों का विश्वास नहीं जीत पाते सरकारी सुविधाओं और ट्रेनिंग की जानकारी नहीं होना इन्होंने कहा अब पहले जैसा काम नहीं रहा है, कभी रजनब नाले के किनारे गाड़ियों की लाइन लगा करती थी, किसी मैकेनिक को समय नहीं होता था, लेकिन आज खाली नजर आता है। -बृजेश कुमार मैकेनिकों को नई तकनीक की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, इसके लिए सरकार कुछ ऐसी व्यवस्था करे, ताकि नई सभी गाड़ियों की मरम्मत मैकेनिक सही तरीके से कर सकें। -सुरेश कुमार हमें भी सरकारी सुविधाएं मिलें और तकनीक की जानकारी भी मिलनी चाहिए, ताकि नई गाड़ियों को बेहतर तरीके से ठीक किया जा सके, और रोजगार चलता रहे। -अक्षय कुमार सरकारी सुविधाओं की जानकारी किसी को नहीं है, अगर श्रम विभाग या संबंधित अधिकारी कैंप के जरिए लोगों को जागरूक करें तो वाहन मैकेनिक भी लाभ उठा सकते हैं। -दीपक कुमार अब पहले जैसा मेहनताना भी नहीं मिलता, पहले जहां एक गाड़ी ठीक करने के अच्छे खासे पैसे मिलते थे, अब तो वह भी नहीं मिलते, कारीगर को कुछ कमाई नहीं होती है। -मोहित जो नई तकनीक से लैस गाड़ियां हैं उनके पार्ट्स भी बाहर नहीं मिलते हैं, इसके लिए कंपनी में ही उनकी व्यवस्था होती है, ऐसे में ज्यादातर लोग कंपनी में ही गाड़ी ले जाते हैँ। -हनी सिंह यहां मैकेनिकों को काम के अलावा सरकारी योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है, सरकार ऐसी कोई व्यवस्था करे कि इनका भी रजिस्ट्रेशन हो और सुविधाएं मिले। -शाने आजम त्योहारों के समय कई बार ज्यादा काम मिल जाता है लेकिन बाकी दिनों में बहुत कम रहता है। कभी-कभी ग्राहक भरोसा नहीं करता या बड़े सर्विस सेंटर को प्राथमिकता देता है। -लाखन सिंह नई तकनीकों से लैस गाड़ियां अब कंप्यूटर से चलती हैं, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, सेंसर, कोडिंग वाले इंजन हैं, इन सबके लिए पारंपरिक मैकेनिक के कम जानकारी होती है। -सेंसरपाल इलेक्ट्रोनिक गाड़ियों के पार्ट्स मार्केट में कम उपलब्ध हैं, ऐसे में कोई गाड़ी ठीक होने को नहीं आती, वह सीधे शोरूम ले जाई जाती है, इससे मैकेनिक का काम घट जाता है। -अनिल वासम समय के साथ मैकेनिकों को बदलने का मौका दिया जाए। सरकार से उम्मीद करते हैं, कि मैकेनिकों को भी आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाए, ताकि नई टेक्नोलॉजी को समझ सकें। -अकील अहमद हम भी चाहते हैं कि हमारा भी रजिस्ट्रेशन श्रम पोर्टल पर हो, सरकारी सुविधाएं और अन्य व्यवस्था हमें भी उपलब्ध हो। स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं मिलें और ई-श्रम कार्ड बने। -शाहिद अली मैकेनिकों को नई तकनीक की जानकारी मिलती चाहिए, ताकि हमारे पास आने वाली सभी गाड़ियों को हम सही कर सकें, इसके साथ ही सरकारी सुविधाओं का लाभ भी मिले। -शम्मी नई टू-व्हीलर गाड़ियों, कारों में सेंसर, ईसीयू, ऑटोमेटिक ट्रांसमिशन जैसी टेक्नोलॉजी आने से सामान्य मैकेनिक के लिए उन्हें ठीक करना कई बार मुश्किल हो जाता है। -इमरान
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