बोले प्रयागराज : नौकरी की चाह में छोड़ा परिवार-हुए बीमार, फिर भी गुनहगार
Prayagraj News - उन्नाव में हाल ही में एक सड़क हादसे में तीन शिक्षिकाओं की मौत से शिक्षकों में सदमा है। शिक्षिकाओं का कहना है कि लंबी दूरी तय करने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है और समय पर स्कूल पहुंचने का दबाव...
प्रयागराज, प्रमुख संवाददाता। उन्नाव में पिछले दिनों सड़क हादसे में परिषदीय स्कूल की तीन शिक्षिकाओं की मौत से लाखों शिक्षक सदमे में हैं। स्कूल आने-जाने के दौरान आए दिन होने वाली इस प्रकार की घटनाएं उस हकीकत को सामने रखती है जिससे प्रदेश के पांच लाख से अधिक परिषदीय शिक्षक हर दिन दो-चार होते हैं। प्रयागराज में भी दो महीने पहले स्कूटी से स्कूल जा रही शिक्षिका की सड़क हादसे में जान चली गई थी। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान की ‘बोले प्रयागराज शृंखला के तहत रविवार को उन शिक्षिकाओं का दर्द समझने की कोशिश की गई जो लंबी दूरी तय करके पढ़ाने जाती हैं। शिक्षिकाओं का कहना है कि नौकरी के लिए परिवार को समय नहीं दे पातीं। लंबे समय तक गाड़ी में सफर करने के कारण अधिकांश शिक्षिकाओं को सर्वाइकल, स्पांडलाइटिस जैसी बीमारी ने घेर रखा है। फिर भी स्कूल पहुंचने में पांच मिनट की देरी पर विभागीय अफसर हमारे साथ गुनहगारों जैसा सलूक करते हैं। एक तरफ से 75 किलोमीटर तक का सफर तय करके स्कूल पहुंचने के दौरान जाम, गाड़ी खराब होने या किसी दूसरे कारण से पांच मिनट की देरी होने पर भी नोटिस दिया जाता है।
जिले के अंदर आठ साल से ओपन ट्रांसफर और समायोजन न होने से दूरदराज के इलाके में फंसे शिक्षक शहर के नजदीक नहीं आ पा रहे। शिक्षकों का कहना है कि उनका पद जिला कैडर होने के बावजूद वर्षों से सुदूर ब्लॉक में फंसे अध्यापकों को कोई पूछने वाला नहीं है। 2017 से अब तक चार बार हुए अंतर जनपदीय स्थानांतरण के चलते दूसरे जिलों से आए शिक्षक-शिक्षिकाओं को जिला मुख्यालय के अपेक्षाकृत करीब विद्यालय में तैनाती दे दी गई जबकि जिले के अंदर पहले से सेवारत वरिष्ठ शिक्षक तबादले का इंतजार कर रहे हैं। मार्च 2009 के बाद से नियुक्त सहायक अध्यापकों की 16 साल बाद भी पदोन्नति नहीं हो सकी है। पदोन्नति होने पर भी स्कूल बदलने पर थोड़ी दूरी कम हो सकती है लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण न तो तबादला हो रहा है और न ही पदोन्नति। शिक्षिकाओं का कहना है कि उनकी तैनाती के नियम में बदलाव करते हुए रोटेशन की व्यवस्था लागू होनी चाहिए जिससे बारी-बारी से सभी शिक्षकों को दूर के स्कूलों में तैनाती दी जा सके। महिला शिक्षक संघ की जिलाध्यक्ष अनुरागिनी सिंह कहती हैं कि अफसरों को शिक्षिकाओं के साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। हम पूरी निष्ठा के साथ अपने काम को करना चाहते हैं। यही कारण है कि प्रतिदिन भोर में तीन-चार बजे उठ जाते हैं ताकि समय से स्कूल पहुंच सकें। इसी हड़बड़ी में कई बार हादसे होते हैं और शिक्षिकाओं की मौत हो जाती है। तीन साल में टोल टैक्स 300 से साढ़े तीन हजार हो गया है।
समस्या :
-सड़क मार्ग से 100 से 150 किमी का सफर प्रतिदिन तय करना पड़ता है, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
-सुबह स्कूल पहुंचने के तनाव के कारण स्वयं एवं परिवार पर ध्यान नहीं दे पा रहीं हैं।
-पांच मिनट की देरी पर भी दंड का भागी बनना पड़ता है, अधिकारी सुनने को तैयार नहीं होते।
-प्रभारियों के सामने छुट्टी की समस्या रहती है, रविवार को भी सरकारी कार्यों के लिए जाना पड़ता है।
-रोडवेज बसों का स्टॉपेज न होने के कारण प्राइवेट वाहनों का प्रयोग करना पड़ता है जो बेहद कष्टदायी है।
-कई बार रविवार या अवकाश के दिन सरकारी काम से बुला लिया जाता है जिससे परिवार को समय नहीं दे पाती।
सुझाव
-स्थानांतरण नीति में बदलाव कर शिक्षिकाओं को कम दूरी के विद्यालयों में स्थानांतरित किया जाए।
-भय के वातावरण को दूर कर मानवीय मूल्यों के आधार पर कार्रवाई से तनाव से मुक्ति मिल सकेगी।
-कभी जाम अथवा विशेष कारणों से कुछ विलंब होने पर मानवीय आधार पर दंडात्मक कार्रवाई न हो।
-प्रभार देने के कार्य में इस प्रकार व्यवस्था हो कि एक ही शिक्षिका पर बोझ न पड़े।
-सरकारी बसों के स्टॉपेज इस प्रकार हों कि शिक्षिकाएं उसका प्रयोग कर सकें।
-छुट्टी पर सरकारी काम से बुलाया जाए तो प्रतिकर अवकाश (ईएल) भी दिया जाए।
इनका कहना है
अधिकारी कहते हैं कि वह 6.30 बजे पहुंच सकते हैं तो शिक्षक क्यों नहीं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमें रोज लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, कोई एक दिन नहीं। कभी देर हो जाए तो कार्रवाई तय है। इससे शिक्षकाएं बेहद तनाव में रहती हैं।-अनुरागिनी सिंह
अपने घर सुलेमसराय से प्रतिदिन 60 किमी दूर प्रतापपुर स्थित स्कूल तक का सफर बेहद भारी पड़ता है। स्कूल पहुंचने की हड़बड़ी में न तो खानपान पर ध्यान दे पाते हैं न ही स्वास्थ्य पर। परिवार पर भी उतना ध्यान नहीं दे पाते जितना देना चाहिए।-कविता त्रिपाठी
सुबह सात बजे स्कूल पहुंचने के लिए साढ़े पांच बजे घर छोड़ना पड़ता है। कभी-कभी देर हो जाए तो अधिकारी सुनने को तैयार नहीं होते। अत्यधिक तनाव के बीच रोज 70- 80 किमी सफर करने के कारण कमर व गले में दर्द बना रहता है।-मोनिका द्विवेदी
रोजाना लम्बे सफर के कारण हड्डियों में समस्या आ गई है। रीढ़ की हड्डी में हमेशा दर्द रहता है। गर्दन हिलाने में भी परेशानी होती है। किसी तरह कुशन लगाकर सफर तय करते हैं। हमेशा बेल्ट लगाकर रखना पड़ता है बिना उसके काम नहीं चल पाता।-नीलिमा सिंह
अल्लापुर में आवास है और मांडा ब्लाक में तैनाती, 60-65 किमी की दूरी तय करके किसी तरह स्कूल पहुंचते हैं। सुबह तीन बजे उठकर अपने काम निपटाने होते हैं ताकि पांच बजे घर छोड़ सकें। बारह साल से रोज यह समस्या झेल रहे हैं।-संगीता सिंह
रोज करीब 130 किमी आने जाने के कारण कमर दर्द की समस्या पैदा हो गई है। सर्वाइकल का इलाज चल रहा है। स्कूल पहुंचने में जरा सी देरी बड़ा अपराध हो जाता है। सुबह उठते ही मानसिक दवाब में रहते हैं। हमें तो इन्ही परिस्थितियों में काम करना है।-प्रतिभा यादव
रोज तीन-चार साधन बदलते हैं तब कहीं स्कूल पहुंच पाते हैं। अल्लापुर में घर है वहां से रोज मांडा जाना पड़ता है। साल में मिलने वाले 14 सीएल में इजाफा किया जाना चाहिए और ट्रांसफर नीति ऐसी बने कि शिक्षिकाओं को राहत मिल सके।-माया गिरि
शंकरगढ़ के स्कूल में तैनाती के कारण महेवा में घर बनवा लिया। समय पर स्कूल पहुंचने की हड़बड़ी के कारण हमेशा दुर्घटना का भय बना रहता है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में दिक्कतों के कारण अपने साधन से जाने लगी पर पास होने के बावजूद टोल पर पैसे कट जाते हैं।-उर्वशी श्रीवास्तव
रोजाना सड़क से 120 किमी का सफर करना पड़ता है। नारी बारी के स्कूल में सुबह सात बजे पहुंचना होता है। यह दूरी कम हो जाए और पास के किसी विद्यालय में ट्रांसफर हो जाए तो राहत मिले। ट्रांसफर के लिए आवेदन किया लेकिन सुनवाई नहीं हुई।-नूपुर गुप्ता
मऊआइमा के विद्यालय में पिछले 12 वर्ष से प्रभारी हूं। बम्हरौली से 55 किमी दूर स्कूटी से मऊआइमा जाना बेहद थकाऊ होता है। एक साल में 12 बार दुर्घटना हो चुकी है, कई जगह फैक्चर हुआ, लेकिन मजबूरी में स्कूटी चलानी पड़ती है।-अनुपमा प्रताप
घर करेली और विद्यालय प्रतापपुर में है। रोज सौ किमी का सफर तय करते हैं। स्कूल समय से पहुंचने के दबाव और तनाव के कारण शुगर, हाई ब्लडप्रेशर, थॉयराइड जैसी बीमारियों ने घेर लिया है। पास के किसी स्कूल में तबादला हो तो राहत मिले।-कहकशां अनवार
मरम्मत के लिए 22 अप्रैल से फाफामऊ पुल बंद हो रहा है। स्टील ब्रिज खोला नहीं जाएगा। पीपा पुल पर जाम लगता है। अस्थायी पुल पर सुरक्षा का खतरा भी रहता है। इन परिस्थितियों में समय से झलवा से मऊआइमा स्कूल पहुंचना मुश्किल होता है।-अमृता सिंह
आधा समय तो स्कूल आने जाने में ही निकल जाता है। स्कूल पहुंचने का इतना दबाव रहता है कि नाश्ते का भी होश नहीं रहता। 37 किमी दूर स्कूल पहुंचने के लिए 7.5 किमी खेत-खिलहान से गुजरना पड़ता है। हमारे खिलाफ कार्रवाई से पहले समस्या तो सुनिए।-सुधा शुक्ला
प्रीतमनगर से कोरांव एक तरफ 110 किमी जाने के लिए सुबह 3:30 बजे उठना पड़ता है। 5:30 बजे घर से निकलते हैं फिर भी कई बार समय से नहीं पहुंच पाते। सात साल से ओपन ट्रांसफर नहीं हुआ जिससे थोड़ा पास आने की गुंजाइश बन पाती।-प्रतिभा सिंह
प्रतिदिन 80 किमी दूर स्कूल जाना होता है। सर्वाइकल की समस्या हो गई है। मानसिक तनाव बना रहता है। यदि सरकार की ओर से बस चलवाई जाए तो छोटी गाड़ी से दुर्घटना का खतरा कम हो जाएगा। टोल टैक्स से छूट मिलनी चाहिए।-अन्नू गोयल
छह घंटे की ड्यूटी बारह घंटे की हो जाती है। सड़क से प्रतिदिन करीब 150 किमी की दूरी तय करने से कई बीमारियां हो गई है। हर ब्लॉक के लिए सरकारी बस चलनी चाहिए और किराया तय हो जिससे प्राइवेट गाड़ी वालों की लूट पर लगाम लगे।-जया त्रिपाठी
तेलियरगंज से जंघई 65 किमी दूर जाना पड़ता है। नौकरी के साथ घर संभालना संभव नहीं हो पाता। स्कूल 20 किमी दूर होना चाहिए। सफर के कारण शरीर में दर्द, तकलीफ आम समस्या है। रोजाना चार-पांच घंटे तो सफर में ही बीत जाता है।-ज्योति विश्वकर्मा
घर से 30-35 किमी दूर स्कूल होना चाहिए। तैनाती में रोटेशन की व्यवस्था लागू हो ताकि सबको बारी-बारी से आसपास स्कूल की सुविधा मिल सके। एक से दूसरे ब्लॉक में ओपन ट्रांसफर भी शुरू होने पर करीब के स्कूल में तैनाती की उम्मीद बनेगी।-रूपसी जायसवाल
बोले जिम्मेदार
स्कूल पहुंचने से 15 मिनट पहले आने का नियम है लेकिन तीन साल में किसी ऐसे टीचर पर कार्रवाई नहीं की जो इस मार्जिन टाइम में न पहुंचा हो। खंड शिक्षाधिकारियों को भी घड़ी देखकर कार्रवाई न करने के निर्देश दिए हैं। यदि किसी भी कारण से स्कूल पहुंचने में देरी हो रही है तो उसका ठोस सबूत अपने पास मोबाइल में रखें। जाम वगैरह लगे तो जीपीएस ऑन करके फोटो खींच लीजिए, देरी पर स्पष्टीकरण दें तो सुनवाई जरूर होगी। अपनी समस्या सीधे हमसे बताएं, सही बात होगी तो कोई कुछ नहीं करेगा। समय से उपस्थिति के लिए कठोरता भी जरूरी है छूट देने पर स्थितियां बिगड़ेगी कुछ लोग नाजायज लाभ लेने की कोशिश करेंगे। रही बात तबादला या पदोन्नति नीतिगत विषय है जिस पर मेरे स्तर से निर्णय नहीं हो सकता।
प्रवीण कुमार तिवारी, बेसिक शिक्षा अधिकारी
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।