2 साल में 2 बार गर्भवती, जानें मेटरनिटी लीव के लिए कुछ शिक्षिकाओं को क्यों लेनी पड़ी कोर्ट की शरण?
यदि शिक्षिकाएं दो साल में दो बार गर्भवती होती हैं तो उन्हें स्थानीय स्तर पर मेटरनिटी लीव नहीं दी जाती है। ऑनलाइन आवेदन में भी अनुमन्य नहीं है, दिखाकर रिजेक्ट कर दिया जाता है। आगरा में ऐसी कुछ शिक्षिकाएं कोर्ट तक पहुंच गईं।

केस 1-आगरा के ताजगंज स्थित कॉलेज में शिक्षिका ने दो वर्ष में मेटरनिटी लीव के लिए आवेदन किया। लेकिन ऑनलाइन आवेदन में अनुमन्य नहीं है, दिखाकर छुट्टी नहीं दी। शिक्षिका ने कोर्ट का सहारा लिया। इसके बाद छुट्टी मान्य की गई।
केस 2-आगरा के बमरौली स्थित सरकारी स्कूल की शिक्षिका को शादी के चार साल बाद बेटी हुई। इसी बीच दो साल के भीतर दोबारा गर्भवती हुई। उन्होंने मेटरनिटी लीव के लिए आवेदन किया तो कहा गया अनुमन्य नहीं है। दो बार कोर्ट जाने के बाद छुट्टी दी गई।
ये केस महज उदाहरण हैं। साल में ऐसे सैकड़ों मामले आते हैं। अभी कुछ दिन पहले फर्रुखाबाद की शिक्षिका ने भी कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद छुट्टी स्वीकृति हुई। शिक्षा विभाग ने शिक्षिकाओं को दो साल में दो बार मां बनने पर ही रोक लगा दी है। यदि शिक्षिकाएं दो साल में दो बार गर्भवती होती हैं तो उन्हें स्थानीय स्तर पर मेटरनिटी लीव नहीं दी जाती है। ऑनलाइन आवेदन में भी अनुमन्य नहीं है, दिखाकर रिजेक्ट कर दिया जाता है। शिक्षिकाएं कोर्ट तक पहुंच गई हैं।
सरकारी और गैरसरकारी कामकाजी महिलाओं को मातृत्व अवकाश का विशेष अधिकार है। शासन के आदेशानुसार दो बच्चों के जन्म के लिए महिलाओं को छह महीने का मातृत्व अवकाश देय है। शिक्षा विभाग में अधिकारियों ने मनमानी के तहत दो बच्चों के जन्म में दो वर्ष के समय की आवश्यकता तय कर प्रति वर्ष सैकड़ों शिक्षिकाओं को परेशान किया जाता है। इस संबंध में कई शिक्षिकाओं ने हाईकोर्ट की शरण ली। हर मामले में न्यायालय ने अधिकारियों की मनमानी को नियमविरुद्ध माना। दो वर्ष के भीतर गर्भवती होने पर पुनः मातृत्व अवकाश देने के स्पष्ट आदेश किए हैं। इसके बावजूद नया प्रकरण आते ही संबंधित शिक्षिका का वेतन रोककर उसे परेशान किया जाता है। जिले में 12073 शिक्षकों में 70 प्रतिशत महिलाएं हैं। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अनुसार, महिला कर्मचारियों को अपने पहले और दूसरे बच्चे के लिए 26 सप्ताह का सवेतन मातृत्व अवकाश मिलता है। भले ही वे दो साल के अंदर फिर से गर्भवती हो जाएं।
प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राठौर का कहना है कि दो साल में दो बार गर्भवती से संबंधित मामले आते हैं। इस संबंध में शासन में पत्र देकर स्पष्ट आदेश निर्गत करने की मांग की है। ताकि सभी शिक्षिकाएं अपना अवकाश ले सकें। किसी महिला कार्मिक के गर्भवती होने के समय को भी अपने स्तर से नियंत्रित करवाने का प्रयास करते हैं। जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत है।
वहीं प्रदेश कोषाध्यक्ष मुकेश शर्मा ने बताया कि शिक्षक सम्मेलन में इस मुद्दे को शामिल किया गया था। उप्र माध्यमिक शिक्षक संगठन की ओर से शासन स्तर पर पत्र भी लिखे गए हैं। इसमें मेटरनिटी लीव और ड्रेस कोड की समस्या को उजागर किया गया था। मां बनना हर महिला का अधिकार है। शासनादेश के अनुसार छुट्टी का प्रावधान है।
क्या बोले डीआईओएस
डीआईओएस चंद्रशेखर ने कहा कि मेटरनिटी लीव में किसी भी तरह की परेशानी न हो। इसका विशेष ख्याल रखा जाता है। दो साल वाले मामले में जिन शिक्षिकाओं के कागजात पूरे नहीं होते हैं। उसमें ही अनुमन्य लिखा जाता है। अन्यथा छुट्टी दी जाती हैं।