Government Support and Training Boost Women s Self-Employment in Raebareli बोले रायबरेली: महिला स्वरोजगार, Raebareli Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsRaebareli NewsGovernment Support and Training Boost Women s Self-Employment in Raebareli

बोले रायबरेली: महिला स्वरोजगार

Raebareli News - रायबरेली में महिलाएं स्वरोजगार के जरिए आत्मनिर्भर बन रही हैं। हालांकि, उन्हें समय पर सरकारी सहायता और उचित प्रशिक्षण नहीं मिल रहा है। कई महिलाएं विभिन्न कुटीर उद्योगों से जुड़ी हैं, लेकिन मार्केटिंग...

Newswrap हिन्दुस्तान, रायबरेलीWed, 7 May 2025 05:26 PM
share Share
Follow Us on
बोले रायबरेली: महिला स्वरोजगार

समय पर सरकारी सहायता और प्रशिक्षण मिले तो बढ़े महिलाओं का स्वरोजगार रायबरेली, संवाददाता। स्वरोजगार की राह पर चल कर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रहीं हैं। सरकार भी इन गतिविधियों को बढ़ाने में मदद कर रही है। इसके बावजूद इस व्यवस्था का पर्याप्त लाभ इन महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है। जिले के प्रमुख कुटीर उद्योग जिनमें डेयरी उद्योग, मुर्गी पालन, वाशिंग पाउडर, जैविक खाद, सिलाई-कढ़ाई, मिठाई के डिब्बे, दोना पत्तल,ब्यूटी पार्लर, कपड़े से निर्मित सामान ,बैग आदि प्रमुख हैं। जिनसे जुड़कर महिलाएं आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं लेकिन इसके साथ बहुत सी दुश्वारियां हैं। जिनका सामना करना पड़ रहा है। इन लोगों को उचित परामर्श नहीं मिल पाता है और न ही समय पर सरकारी सहायता।

इन लोगों का बनाया सामान प्रचार प्रसार के अभाव में बाजार में सही ढंग से बिक्री नहीं हो पाता है। जागरुकता के अभाव में इन लोगों का व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। इस कारण बहुत से कुटीर उद्योग बंद होने की कगार पर हैं। ऐसे में इन लोगों को सरकार से उम्मीद है कि इनको प्रोत्साहन मिले और इनका व्यवसाय आगे बढ़ सके। इनकी समस्याओं को लेकर इन महिलाओं से बात की गई तो इन लोगों ने अपनी समस्याएं साझा की। जिले में गांव से लेकर शहर तक की महिलाएं स्वरोजगार से जुड़ी हुई हैं। यह लोग अपने उत्पाद बना कर स्वयं बाजार तक ले जाती हैं। इसमें इनको बहुत सी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। इसको लेकर आपके अपने हिन्दुस्तान अखबार ने इन स्वरोजगार से जुड़ी महिलाओं से बात की तो इन्होंने खुल कर अपनी समस्याएं साझा की। कुटीर उद्योग से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि उन्हें समय पर सरकारी सहायता नहीं मिलती अगर सहायता मिल जाए तो उनका व्यवसाय आगे बढ़ सके। वह भी अपनी गृहस्थी में, अपना सहयोग देना चाहती हैं। उनको कोई प्रोत्साहन देने वाला नहीं है न ही कोई ऐसी संस्था है जो उन्हें रोजगार के विषय में जागरुक कर सके। इसके साथ ही जो उत्पाद वह बना रही हैं उनको लेकर स्वयं उन्हें मार्केट में लेकर जाना पड़ता है। इसका प्रचार प्रसार न होने से बिक्री में भी असर पड़ता है। आय के सीमित साधन हैं ऐसे में वह लोग अपनी आय बढ़ाए कि प्रचार में धन खर्च करे। यह बड़ी दिक्कत है, प्रचार करने के लिए उनको एक मंच मिलना चाहिए। जिससे उनके उत्पादों के विषय में लोग जान सके और उनकी बिक्री प्रभावित न हो। कुटीर उद्योग के जरिए डिब्बा बनाने वाली महिलाओं का कहना है कि त्यौहार का सीजन आने पर तो काम अधिक मिल जाता है लेकिन सामान्य दिनों में बिक्री का संकट रहता है। इसको लेकर परेशानी यह रहती है कि हम लोगों के पास अपनी मार्केट बढ़ाने का जरिया नहीं है न ही पर्याप्त साधन। जिससे हम लोग अपने व्यवसाय को बढ़ा सकें। यही हाल दोना पत्तल बनाने वाली महिलाओं का है। वह भी अपने व्यवसाय के कम प्रचार- प्रसार और मार्केटिंग को लेकर परेशान हैं। इसमें उन्हें कोई सहायता मिल जाए तो और व्यवसाय बढ़ सकता है। इसी तरह गारमेंट्स के क्षेत्र समेत कई क्षेत्रों काम कर रही महिलाओं को निकल कर अपना सामान बेचने में दिक्कतें आ रहीं हैं। इन लोगों के लिए कच्चा माल तैयार करना तो आसान है लेकिन उसकी मार्केटिंग कठिन साबित हो रही है। प्रोडक्ट बनाकर महिलाओं ने पकड़ी सफलता की राह डलमऊ,संवाददाता। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़कर अपना परचम लहरा रही और आत्मनिर्भर बनने के लिए तरीके भी खोज रही । बरारा बुजुर्ग गांव की रेखा यादव की शादी दस वर्ष पहले हुई थी उस समय परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। आर्थिक तंगी के चलते वह काफी परेशान थी और एक रोज मन में विचार आया कि महिलाएं भी अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं। मन में स्वरोजगार की सोच आई, उन्होंने पड़ोस की दस महिलाओं को जोड़कर वर्ष 2020 में कृष्णा महिला स्वयं समय सहायता समूह का गठन किया। समूह की महिलाओं ने मिलकर 120 रूपये महीने बचत कर बैंक में खाता खुलवाया। ब्लॉक से संपर्क कर आजीविका मिशन के तहत शासन से पंद्रह हजार रिवाल्विंग फंड मिला। जिसके बाद कैश क्रेडिट लिमिट के माध्यम से डेढ़ लाख रुपए बैंक से स्वीकृत होने पर पंचायत भवन में ही आरसेटी के माध्यम से महिलाओं को प्रशिक्षण देने और टॉयलेट क्लीनर बनाने का काम शुरू किया । समूह की अध्यक्ष रेखा यादव ने बताया कि टॉयलेट क्लीनर की मांग बहुत अधिक है। अन्य कंपनियां के द्वारा बनाए गए मार्केट रेट से 30 प्रतिसत कम दरों पर उपलब्ध कराती हैं। जिससे गांव में बने सामुदायिक शौचालय में काफी मांग है और दुकानदारों ने भी संपर्क कर ऑर्डर दे रहे। जिससे समूह की हर महिलाओं अच्छी आमदनी हो रही। आजीविका मिशन के ब्लॉक प्रबंधक विवेक त्रिवेदी ने बताया कि समूह की महिलाएं कमाई कर परिवार का हाथ बटा रही हैं और आत्मनिर्भर भी बन रह ही हैं। क्या बोले जिम्मेदार महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के लिए जो भी सरकार की ओर से योजनाएं संचालित है उनका लाभ उन्हें दिया जा रहा है। महिलाओं का रुझान कढ़ाई, बुनाई, ब्यूटीशियन या फिर जिस उद्योग में है उसका प्रशिक्षण देने के साथ ही उद्योग स्थापित करने के लिए बैंकों से कर्ज और ब्याज दरों में छूट दिलाने का काम भी जिला उद्योग एवं उद्यमिता विकास केन्द्र की ओर से किया जा रहा है। परमहंस मौर्य, उपायुक्त उद्योग शिकायतें और सुझाव शिकायतें -स्वरोजगार से जुड़ी महिलाओं को सरकारी मदद आसानी से नहीं मिलती जिससे उन्हें कठिनाई होती है। -तैयार समान उन्हें दूर दराज ले जाने या बेचने में समस्या होती है । समय पर कोई मदद नहीं मिलती। -ऋण की प्रक्रिया जटिल है इससे सभी को इसका लाभ नहीं मिल पाता। -पर्याप्त प्रचार नहीं हो पाता इसलिए समान बेचने में दिक्कत आती है। -रोजगार से जुड़ी महिलाओं को असुरक्षा महसूस होती रहती है। सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। सुझाव -सभी को आसानी से सरकार की सहायता मिले ताकि उनका कार्य और आसान हो जाए। -परिवहन की व्यवस्था हो जिससे तैयार समान को आसानी से बाहर भेजा जा सके। -कुटीर उद्योग को लेकर महिलाओं में जागरुकता नहीं है। यदि जागरुक हो तो सभी अपने पैरों पर खड़ी हो कर अपनी गृहस्थी में हाथ बटा सकती हैं। -पर्याप्त प्रचार की आवश्यकता है।इससे समान बेचने में आसानी होगी। -रोजगार से जुड़ी महिलाओं की सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाएं। इनकी भी सुनें हम महिलाएं आत्मनिर्भर होकर काम कर रही हैं । परिवार को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करने का जिम्मा महिलाओं ने ले लिया है। हम सबकी मेहनत से अच्छी आमदनी हो रही है। अगर सरकार से और सहायता मिले तो हम लोग और व्यवसाय बढ़ा सकती हैं। रेखा यादव पति के निधन के बाद उनके चलाए गए मसाला व्यवसाय को हमने शुरू किया। जिसमे स्थानीय महिलाओं का साथ मिला, मेहनत से मसाला बनाकर बेचने से कुछ पैसे मिल जाते हैं। इस कार्य में सभी लोग सहयोग करते हैं। सरिता देवी चॉकलेट के व्यवसाय में अच्छी आमदनी हो रही है, शुरूआत में तो दिक्कत आई लेकिन अब व्यवसाय ठीक चल रहा है, अक्सर सुरक्षा को लेकर दिक्कतें होती हैं जिस पर स्थानीय प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। मनीषा रावत जब से रोजगार शुरू किया है तब से कई महिलाओं को इसके लिए प्रेरित करने का काम हुआ है, पहले बाहर निकलने में दिक्कत होती थी लेकिन अब रूटीन बन गया है। स्नेहलता हम लोगों की सरकार से मांग है कि हम कामकाजी महिलाओं के लिए कुछ आर्थिक सहयोग करे। ताकि हमारा काम और अच्छे से चल सके। इससे हमारा स्तर भी ऊपर उठ सके। गुंजन महिला भी आदमियों की तरह परिवार संभालने में सक्षम हो गई हैं । अब हम सभी अपने बच्चों का पालन आसानी से कर लेते हैं। इससे परिवार को चालने में आसानी होती है। पूजा डिब्बे बनाने में समय लगता है और लागत भी आती है । अधिक समय देने पर यदि ज़्यादा डिब्बे बन जाते हैं तो लाभ अधिक होता है। सावित्री परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था । जबसे हम लोगों ने ये काम शुरू किया है तबसे पैसे आने लगे हैं और जीवनयापन में भी मजबूती मिल रही है। शिवपति हम सभी कच्चा माल जिला मुख्यालय से से लाते हैं । फ़िर डिब्बे बनाकर आसपास की दुकानों पर बेचते हैं । यदि सरकार मदद करे तो मशीन भी लगाई जा सकती है ताकि ज़्यादा डिब्बे एक बार में बन पाए । रोशनी पिछले एक साल से यह काम कर रही हूँ । घर के काम निपटाने के बाद यहाँ समय देती हूँ और डिब्बे बनाती हूं । मुझे परिवार की मदद करना अच्छा लगता है। मैना महिलाएं भी पुरुषों से कम नही हैं। अब कंधे से कंधा मिलाकर चलना जानती है और अपने परिवार के लिए मेहनत करने से भी पीछे नहीं हटती। हम सभी डिब्बे बनाते है और पैसे कमाते हैं। भगवानदेवी हमे लगता है कि सरकार को भी हमारी मदद करनी चाहिए। ताकि हमारी मेहनत और सफल हो पाए और अच्छी आमदनी हो सके। सुमन अवस्थी दोना पत्तल बनाकर हम लोग उसे पास की दुकानों से लेकर शहर तक बेचते हैं उससे जो लाभ होता है उसी की हिस्सेदारी के रूप में हमें पैसे मिल जाते हैं। रेनू मुझे महिलाओं के साथ कार्य करना अच्छा लगता है । घर के कामों के साथ साथ हम लोग एक साथ मिलकर यहाँ काम करते हैं ताकि हमें आमदनी हो सके। कामिनी महिलाओं को मार्केटिंग में आती है दिक्कत रायबरेली, संवाददाता। स्वरोजगार से जुड़ी महिलाओं ने किसी तरह प्रशिक्षण प्राप्त कर अपना रोजगार तो कर लिया लेकिन अब उत्पाद बेचने में काफी मुश्किलें आ रही हैं। जिला उद्योग प्रोत्साहन, उद्यमिता विकास केंद्र, खादी ग्रामोद्योग तथा कौशल विकास संस्थान आदि प्रशिक्षण संस्थान महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यही नहीं स्वरोजगार स्थापित करने के लिए महिलाओं को बैंकों से कर्ज दिलाने में भी सहयोग कर रहे हैं। इसके बाद भी महिलाएं अपना उद्योग आसानी से स्थापित तो कर ले रही हैं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति में आशा के अनुरूप सुधार नहीं हो पा रहा है। इन महिलाओं को आशा है कि सरकार यदि उनकी आवश्यकता के अनुसार सहयोग प्रदान करें तो यह महिलाएं अन्य महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ सकती हैं। फिलहाल ऐसी महिलाएं अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर परिवार के आर्थिक स्तर को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हैं। स्वरोजगार से लिख रहीं हैं तरक्की की इबारत ऊंचाहार, संवाददाता।अब गांव की महिलाएं विभिन्न उत्पाद तैयार कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। जिससे श्रमिक महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। जिससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। क्षेत्र के सराय सहिजन की पूजा इस कड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। ये महिलाओ के साथ मिठाई का डिब्बा, लिफाफा, अगरबत्ती, धूपबत्ती, रजिस्टर फाइल, झाडू व एलईडी बल्ब आदि निर्मित कर बाजारों में बिक्री कर अच्छी कमाई कर रही हैं। इसके साथ ही 200-250 महिलाओं को भी रोजगार के अवसर भी मिले हैं। प्रीति दुबे ने बताया कि घर गृहस्थी संभालने वाली हम महिलाएं अब मजदूरी करने वाली महिलाओं को रोजगार देने में सक्षम हैं। रोजाना करीब 45 से 50 महिला श्रमिकों से विभिन्न उत्पाद बनाने का काम लिया जा रहा है। पिछले साल 236000 रुपए की लागत से विभिन्न उत्पाद बनाने का कार्य शुरू किया। मिठाई का डिब्बा बनाने वाली महिलाओं को प्रति डिब्बा बनाने पर 5-6 दिया जाता है। एक महिला 80 से 100 डिब्बे रोज बना लेती है। जिससे उसे करीब पांच सौ रुपए दिहाडी बनती है। इसी तरह एलईडी बल्ब के लिए प्रति पीस सात से 10 रुपए मिलते हैं। रोजाना करीब 45 से 50 ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। उत्पाद की महिलाओं द्वारा ही दुकानों पर बिक्री की जाती है। बतौर श्रमिक काम कर रही आसरा बानो, रीना, मंजू व कांती ने बताया कि वह सभी पहले खेतों पर मजदूरी करती थीं लेकिन उन्हें दिनभर काम करने पर बमुश्किल 200 रुपये ही मजदूरी मिल पाती थी। वह भी महीने में 15-20 दिन ही काम मिलता था। जिससे परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था। लेकिन अब उनकी कमाई दो गुनी से अधिक हो गई है। वहीं यहां रोजाना काम भी मिल रहा है। इससे सभी को लाभ होता है। वहीं महिला दिहाडी श्रमिकों को भी दिन बहुर रहे है। वही प्रीति दुबे ने बताया कि इस कार्य में उनके पिता अजय मिश्रा, व पति अंकुर दुबे का पूरा सहयोग मिल रहा है। रोजगार के बाद बेहतर हुई बच्चों की परवरिश और शिक्षा रायबरेली संवाददाता। महिलाओं के रोजगार से जुड़ने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति तो सुदृढ़ हुई है। बच्चों की परवरिश और शिक्षा में भी सुधार हुआ है। इन महिलाओं के बच्चे जो पहले सरकारी स्कूलों के भरोसे थे।अब अच्छे प्राइवेट स्कूलों में दाखिला लेकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कॉपी किताब से लेकर यूनिफॉर्म और अन्य शैक्षणिक सामग्री यह महिलाएं बच्चों को स्वयं अपने पैसे से मुहैया करने में पीछे नहीं हैं। इन महिलाओं में अपने व्यवसाय को वृहद रूप देकर शहर, कस्बों और गांव की अन्य महिलाओं को रोजगार से जोड़ रही हैं। इससे अब गांवों में भी प्राइवेट स्कूलों की बसें पहुंचकर बच्चों को लाने और ले जाने लगीं हैं। इन महिलाओं की बस एक ही आशा है कि उनके बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिल सके और वह अपने पैरों पर खड़े हो सकें। नंबर गेम 12 तरह के स्वरोजगार से जुड़ी हैं महिलाएं 03 विभाग मुख्य रूप से महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। 6 तहसीलों में करीब दो हजार से अधिक महिलाएं स्वरोजगार से जुड़ी हैं।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।