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Hindustan Special: बच्चों को यौन शोषण से बचाएगी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की यह किताब

रुहेलखंड विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अमित सिंह और शिक्षिका एडवोकेट प्रीती वर्मा ने चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज इन इंडिया नामक किताब लिखी है। इस किताब में बच्चों के शारीरिक और मानसिक यौन शोषण पर विस्तार से चर्चा की गई है।

Pawan Kumar Sharma आशीष दीक्षित, बरेलीMon, 17 March 2025 09:55 PM
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Hindustan Special: बच्चों को यौन शोषण से बचाएगी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की यह किताब

रुहेलखंड विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अमित सिंह और शिक्षिका एडवोकेट प्रीती वर्मा ने चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज इन इंडिया नामक किताब लिखी है। चेरियन पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित किताब मे बच्चों के शारीरिक और मानसिक यौन शोषण पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह पुस्तक बाल यौन शोषण के खिलाफ जारी लड़ाई को मजबूती देने का काम कर रही है।

बच्चों का शोषण एक मूक महामारी है जो बच्चों से उनकी मासूमियत, सुरक्षा और भविष्य सभी कुछ छीन लेती है। भारत में यह मुद्दा लंबे समय से कलंक, भय और चुप्पी में घिरा हुआ है। फिर भी यह कई लोगों के लिए एक कठोर वास्तविकता बनी हुई है, जो सामाजिक वर्गों, क्षेत्रों और समुदायों में फैली हुई है। यह एक ऐसा संकट है जिसके लिए सिर्फ़ स्वीकारोक्ति से ज़्यादा की ज़रूरत है। इसके लिए कार्रवाई, जागरुकता और एक सामाजिक बदलाव की ज़रूरत है। डॉ. अमित बताते हैं कि बच्चों के यौन शोषण के विषय पर बने प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेंस एक्ट 2012 पर यह एक महत्वपूर्ण किताब है। पॉक्सो एक कानून है जो बच्चों के ख़िलाफ़ यौन अपराधों से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए बनाया गया था। यह सुनिश्चित करता है कि अपराधियों को दंड मिले और पीड़ितों को देखभाल और सहायता प्रदान किया जाए।

हालांकि, अपनी प्रगतिशील प्रकृति के बावजूद, पॉक्सो के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसका मुख्य कारण समझ में अंतराल, सांस्कृतिक प्रतिरोध और न्याय प्रणाली में खामियां हैं।

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पॉक्सो के प्रभाव को किया उजागर

लेखिका प्रीती वर्मा बताती हैं कि यह पुस्तक न केवल पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को बल्कि इसके वास्तविक दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव को भी उजागर करने का प्रयास करती है। यह आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण करती है कि कानून को व्यवहार में कैसे लागू किया जाता है। कानूनी पेशेवरों, कानून प्रवर्तन और बाल संरक्षण संगठनों के सामने क्या चुनौतियां हैं, और पीड़ितों को न्याय और उपचार पाने के लिए किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

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रुहेलखंड विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अमित सिंह और शिक्षिका एडवोकेट प्रीती वर्मा ने चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज इन इंडिया नामक किताब लिखी है। चेरियन पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित किताब मे बच्चों के शारीरिक और मानसिक यौन शोषण पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह पुस्तक बाल यौन शोषण के खिलाफ जारी लड़ाई को मजबूती देने का काम कर रही है।

बच्चों का शोषण एक मूक महामारी है जो बच्चों से उनकी मासूमियत, सुरक्षा और भविष्य सभी कुछ छीन लेती है। भारत में यह मुद्दा लंबे समय से कलंक, भय और चुप्पी में घिरा हुआ है। फिर भी यह कई लोगों के लिए एक कठोर वास्तविकता बनी हुई है, जो सामाजिक वर्गों, क्षेत्रों और समुदायों में फैली हुई है। यह एक ऐसा संकट है जिसके लिए सिर्फ़ स्वीकारोक्ति से ज़्यादा की ज़रूरत है। इसके लिए कार्रवाई, जागरुकता और एक सामाजिक बदलाव की ज़रूरत है। डॉ. अमित बताते हैं कि बच्चों के यौन शोषण के विषय पर बने प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेंस एक्ट 2012 पर यह एक महत्वपूर्ण किताब है। पॉक्सो एक कानून है जो बच्चों के ख़िलाफ़ यौन अपराधों से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए बनाया गया था। यह सुनिश्चित करता है कि अपराधियों को दंड मिले और पीड़ितों को देखभाल और सहायता प्रदान किया जाए।

हालांकि, अपनी प्रगतिशील प्रकृति के बावजूद, पॉक्सो के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसका मुख्य कारण समझ में अंतराल, सांस्कृतिक प्रतिरोध और न्याय प्रणाली में खामियां हैं।

पॉक्सो के प्रभाव को किया उजागर

लेखिका प्रीती वर्मा बताती हैं कि यह पुस्तक न केवल पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को बल्कि इसके वास्तविक दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव को भी उजागर करने का प्रयास करती है। यह आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण करती है कि कानून को व्यवहार में कैसे लागू किया जाता है। कानूनी पेशेवरों, कानून प्रवर्तन और बाल संरक्षण संगठनों के सामने क्या चुनौतियां हैं, और पीड़ितों को न्याय और उपचार पाने के लिए किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है।|#+|

बच्चों की आवाज को उठाने का काम

यह पुस्तक बच्चों की आवाज़ को सबसे आगे लाने और समुदायों को सक्रिय रूप से उनकी रक्षा करने के लिए सशक्त बनाने के महत्व पर जोर देती है। इस पुस्तक के पन्नों को पढ़ते हुए लेखक आपको न केवल कानून पर बल्कि बच्चों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने की हम सभी की बड़ी जिम्मेदारी पर भी विचार करने के लिए आमंत्रित करते है। यह पुस्तक एलएलबी त्रिवर्षीय और बीए एलएलबी पंचवर्षीय पाठयक्रम के नए विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी होगी। लेखक डॉ. अमित सिंह और एडवोकेट प्रीति वर्मा को विश्वास है कि यह पुस्तक एक आंख खोलने वाली और कार्रवाई के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी। साथ ही, पेशेवरों, कानून निर्माताओं, शिक्षकों और नागरिकों को न केवल कानून को समझने के लिए बल्कि बाल यौन शोषण के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेगी।