Nurses Face Insecurity and Low Pay Amidst Hospital Challenges बोले सहारनपुर : संविदा भर्ती पर रोक लगे, सुरक्षा और सुविधाओं का हो इंतजाम, Saharanpur Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsSaharanpur NewsNurses Face Insecurity and Low Pay Amidst Hospital Challenges

बोले सहारनपुर : संविदा भर्ती पर रोक लगे, सुरक्षा और सुविधाओं का हो इंतजाम

Saharanpur News - नर्सों का काम केवल एक नौकरी नहीं है, बल्कि सेवा और समर्पण का प्रतीक है। लेकिन शेखुल हिंद मौलाना महमूद हसन मेडिकल कॉलेज में नर्सें कम वेतन, असुरक्षा और गंदगी जैसी समस्याओं का सामना कर रही हैं। रात की...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहारनपुरFri, 25 April 2025 05:15 AM
share Share
Follow Us on
बोले सहारनपुर : संविदा भर्ती पर रोक लगे, सुरक्षा और सुविधाओं का हो इंतजाम

नर्स का काम केवल एक नौकरी नहीं है, बल्कि सेवा, समर्पण और करुणा का भाव है। जब कोई मरीज अस्पताल के बिस्तर पर होता है, तो डॉक्टर की विशेषज्ञता और इलाज जितना महत्वपूर्ण होता है, उतना ही आवश्यक नर्सों का स्पर्श, उनकी देखभाल और उनका धैर्य भी होता है। अस्पतालों में तैनात नर्सेज कई तरह की समस्याएं झेल रही हैं। नर्सों का कम वेतन, असुरक्षा, वार्ड में गंदगी, भर्ती स्थाई रूप से न होना भी उनकी स्थिति के लिए जिम्मेदार है। शेखुल हिंद मौलाना महमूद हसन मेडिकल कॉलेज, पिलखनी का नाम सुनते ही एक ऐसा चित्र उभरता है जहां जिंदगी की आखिरी उम्मीद बचाई जाती हैं। मगर इस इमारत की नींव में जो लोग दिन-रात अपना फर्ज निभा रहे हैं, वे खुद दर्द, अनदेखी और उपेक्षा के साये में काम कर रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं उन नर्सों की, जिनके बिना अस्पताल की कोई भी सेवा मुकम्मल नहीं हो सकती। इन नर्सों की दुनिया अस्पताल के गलियारों में चलती सांसों, दवाइयों की गंध और मशीनों की आवाजों के बीच सिमटी हुई है। ये वही हैं जो हर दर्द की सदा पर दौड़ पड़ती हैं, हर नब्ज की थरथराहट को पहचान लेती हैं। लेकिन नर्सों की खुद की जिंदगी असुरक्षित, अनिश्चित और उपेक्षित है। कम वेतन, असुरक्षा, वार्ड में गंदगी, छेड़छाड़, और रोजाना की परेशानियों के बीच ये नर्सें न सिर्फ अपने फर्ज को निभा रही हैं।

संविदा पर कार्यरत नर्सों का कहना है कि जब उन्होंने नौकरी शुरू की थी, तब उन्हें एक निश्चित वेतन दिया जाता था जिससे वे अपने घर की जरूरतें पूरी कर पाती थीं, लेकिन अब न केवल उनका वेतन घटा दिया गया है, बल्कि पहले जैसा भुगतान भी नहीं हो रहा। महंगाई प्रतिदिन बढ़ रही है। बच्चों की पढ़ाई, किराया, इलाज, खानपान और बाकी जिम्मेदारियों के बीच इनका बजट लगातार बिगड़ता जा रहा है। ऐसे में नर्सों की आर्थिक स्थिति प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है और वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। नर्सों ने अपनी समस्याओं को प्रमुख सचिव स्वास्थ्य के सामने भी उठाया। उम्मीद थी कि बड़े अधिकारियों से बात होगी तो कोई राहत मिलेगी। मगर हकीकत इससे अलग निकली। फाइलों में शिकायतें दब गईं और नर्सें वहीं की वहीं खड़ी रह गईं-निराश और बेबस।

---

रात की ड्यूटी बन गई जानलेवा

रात की ड्यूटी वैसे ही थकावट भरी होती है, मगर नर्सों के लिए यह जानलेवा अनुभव बन गया है। ड्यूटी के बाद जब वे अपने घर लौटती हैं, तो टूटी-फूटी सड़कों और कैंपस में बिना स्ट्रीट लाइट्स के बीच रास्ता तय करना पड़ता है। इस अंधेरे और वीराने में कई बार उनके साथ छींटाकशी, पीछा करने और छेड़खानी की घटनाएं हो सकती हैं, मगर अब तक ना पुलिस ने कोई राउंड बढ़ाया और ना ही सुरक्षा व्यवस्था सख्त की गई।

----

अस्पताल में सुरक्षा नाम की कोई चीज नहीं

मेडिकल कॉलेज के अंदर सुरक्षा गार्डों की कमी के चलते कई बार चोरी की घटनाएं हो चुकी हैं। कुछ दिन पहले ही एक नर्स का मोबाइल फोन वार्ड से गायब हो गया। सीसीटीवी कैमरों का होना आज के दौर में बेहद जरूरी है, खासतौर पर अस्पताल जैसे संस्थानों में, लेकिन यहां यह सुविधा या तो नदारद है या महज दिखावे की है। नतीजा यह होता है कि अपराधी बेखौफ हैं और कर्मचारियों का मनोबल गिरता जा रहा है।

---

गंदगी और मच्छरों से मरीज और स्टाफ दोनों बेहाल

जहां मरीजों को साफ-सुथरे माहौल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वहीं इस मेडिकल कॉलेज के वार्ड और कैंपस में गंदगी रहती है। मच्छर न केवल रोग फैलाते हैं, बल्कि मरीजों के इलाज को भी प्रभावित करते हैं। और यह सिर्फ मरीजों की नहीं, बल्कि इन नर्सों की सेहत के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। सफाई कर्मचारी नियमित रूप से नहीं आते और वार्डों में कभी-कभी की सफाई नहीं होती।

---

यातायात की दुश्वारियां और असामाजिक तत्वों की परेशानी

शहर से मेडिकल कॉलेज तक आना-जाना भी नर्सों के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं। रोडवेज की बसें अक्सर मेडिकल कॉलेज पर नहीं रुकतीं, जिससे नर्सों को मजबूरी में ऑटो पकड़ना पड़ता है। ऑटो में कई बार असामाजिक तत्व उन्हें परेशान करते हैं-अभद्र टिप्पणियां, पीछा करना जैसे व्यवहार आम हो गए हैं। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है और वे अपने काम पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पातीं।

---

स्पीड ब्रेकर की कमी ने बढ़ाया खतरा

कॉलेज के मुख्य द्वार के सामने स्पीड ब्रेकर न होने की वजह से कई बार बाहर से आए तीमारदार या अन्य लोग तेज गति से वाहन चलाते हैं और नर्सों को टक्कर मार देते हैं। कई बार इस वजह से नर्सें घायल हो चुकी हैं, मगर इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। यह साफ दर्शाता है कि स्टाफ की सुरक्षा को लेकर प्रबंधन की प्राथमिकता बेहद कम है।

----

मां और नर्स की दोहरी जिम्मेदारी, लेकिन सुविधा नदारद

जो नर्सें मां हैं, उनके लिए बच्चों को साथ लाना मजबूरी होती है। लेकिन अस्पताल में ऐसा कोई कमरा नहीं है जहां वे बच्चों को दूध पिला सकें या कुछ देर के लिए सुरक्षित रूप से रख सकें। इससे न केवल उनकी मातृत्व भावना आहत होती है, बल्कि कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। यह एक संवेदनशील मसला है, जिसे समझना और हल करना प्रशासन की जिम्मेदारी है।

-

तीमारदारों की गुंडागर्दी और प्रबंधन की चुप्पी

कई बार रात के समय तीमारदार शराब पीकर वार्ड में हंगामा करते हैं और नर्सों के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं। जब नर्सें इसका विरोध करती हैं, तो उल्टा प्रबंधन उन्हीं पर कार्रवाई करता है, क्योंकि तीमारदार झूठी शिकायतें कर देते हैं। इससे नर्सों का आत्मबल टूटता जा रहा है और वे डर के साए में काम करने को मजबूर हैं।

--

मेडिकल कॉलेज में पुलिस चौकी बस नाम की है

अस्पताल परिसर में पुलिस चौकी तो है, मगर वहां तैनात पुलिसकर्मी राउंड पर नहीं निकलते। न दिन में और न ही रात में कोई गश्त होती है, जिससे वार्ड और कैंपस असुरक्षित बना रहता है। यह एक बड़ा खतरा है, जो कभी भी किसी गंभीर घटना का रूप ले सकता है।

-----

प्रत्येक फ्लोर पर हो सीसीटीवी कैमर और सुरक्षा गार्ड

नर्सों का कहना है कि नियमित और संविदा कर्मी के वेतन में वृद्धि होनी चाहिए, जिससे संविदा नर्सों आर्थिक रूप से सशक्त हों। साथ ही प्रत्येक फ्लोर पर सीसीटीवी कैमरे और पर्याप्त सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाने चाहिए। बेहतर व सुरक्षित सफर करने के लिए रोडवेज बसों को कॉलेज पर रोकना जरूरी हो, साथ ही मुख्य द्वार पर स्पीड ब्रेकर लगाया जाए। इसके अलावा अभद्र तीमारदारों पर कड़ी कार्रवाई हो, ताकि नर्सों की गरिमा बनी रहे और दिन व रात के समय पुलिस गश्त को नियमित किया जाए।

-----

शिकायतें

1. संविदा नर्सों का वेतन घटा दिया गया है और नियमित के समान नहीं मिलता।

2. मेडिकल कॉलेज में पर्याप्त सुरक्षा गार्ड नहीं हैं, जिससे चोरी और असुरक्षा की घटनाएं होती हैं।

3. रात में घर लौटते समय टूटी सड़कों और स्ट्रीट लाइट की कमी से खतरा रहता है।

4. वार्ड और कैंपस में गंदगी और मच्छरों का अत्यधिक प्रकोप है।

5. शराबी तीमारदारों द्वारा बदतमीज़ी की जाती है और विरोध करने पर झूठी शिकायतों पर नर्सों पर ही कार्रवाई होती है।

6. अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए नर्स माताओं के पास कोई उपयुक्त कक्ष नहीं है।

7. सीसीटीवी कैमरों की कमी है जिससे वार्ड और गलियारों में सुरक्षा नहीं मिलती।

8. अस्पताल के गेट पर स्पीड ब्रेकर नहीं होने से दुर्घटनाओं की संभावना रहती है।

9. नर्सों से गैर-जरूरी और अतिरिक्त कार्य कराए जाते हैं, जो उनकी ड्यूटी से बाहर हैं।

10. पुलिस चौकी होते हुए भी परिसर में रात के समय कोई गश्त नहीं होती।

समाधान

1. संविदा नर्सों का वेतन पुनः निर्धारित किया जाए, पारदर्शी प्रणाली द्वारा समय पर भुगतान सुनिश्चित हो।

2. प्रत्येक शिफ्ट में पर्याप्त सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाएं और महिला सुरक्षा के लिए अलग गार्ड हों।

3. सड़क मरम्मत और स्ट्रीट लाइट की स्थापना शीघ्र की जाए।

4. वार्ड और कैंपस की सफाई के लिए विशेष टीम बने और मच्छरनाशक का नियमित छिड़काव हो।

5. शराबी तीमारदारों के खिलाफ त्वरित और सख्त कार्रवाई हो, नर्सों की शिकायतों को प्राथमिकता दी जाए।

6. अस्पताल में नर्स मातृत्व कक्ष बनाया जाए ताकि नर्सें अपने बच्चों का ध्यान रख सकें।

7. प्रत्येक वार्ड, फ्लोर और गेट पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और निगरानी टीम बनाई जाए।

8. अस्पताल के गेट पर स्पीड ब्रेकर लगाया जाए और वाहनों की गति पर नियंत्रण रखने के संकेतक लगाए जाएं।

9. नर्सों के कार्यक्षेत्र की स्पष्ट परिभाषा हो और अतिरिक्त कार्यों के लिए सहयोगी स्टाफ की नियुक्ति हो।

10. पुलिस को अस्पताल परिसर में दिन व रात में नियमित प्रतिदिन गश्त करें।

-----------------------------------------------------------------------

0-वर्जन

सुरक्षा गार्ड को लेकर टेंडर कर दिया गया है शासन से अनुमति भी इसकी प्राप्त हो गई है। जल्द ही मेडिकल कॉलेज को सुरक्षा गार्ड मिल जाएंगे। कई स्थानों पर कैंपस में स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था नहीं है, यह संज्ञान में है एक सप्ताह के अंदर ही स्ट्रीट लाइटें लगवा दी जाएगी।

-डॉ सुधीर राठी, प्रिंसिपल मेडिकल कॉलेज

-----------------------------------------------------------------------

0-हमारी भी सुनों

1. हमारे साथ जो हो रहा है, वो नाइंसाफी है। न ड्यूटी में कमी करते हैं, न सम्मान मिलता है। सिस्टम में सुधार की आवश्यकता है -रागिनी

2. हर रोज ड्यूटी के बाद घर लौटते डर लगता है। ना लाइट है, ना सड़क, फिर भी हम खामोशी से काम कर रहे हैं। -ज्योति रानी

3. वेतन कटता जा रहा है, जिम्मेदारियां बढ़ रही हैं। किसी को हमारी हालत से कोई फर्क नहीं पड़ता लगता है। -प्रियंका

4. पुरुष होने के बावजूद असुरक्षित महसूस करता हूं। अस्पताल में सुरक्षा नहीं होने का खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है। -अशोक गिरी

5. हमसे हर काम लिया जाता है, लेकिन जब मदद की बात आती है, सब खामोश हो जाते हैं। अब और चुप नहीं रह सकते। -बिंदु

6. हमसे हर दिन नए-नए काम करवाए जाते हैं, बिना किसी प्रशिक्षण के। कई बार लगता है हम नर्स नहीं, बहु-उद्देशीय कर्मचारी बन चुके हैं। -निर्मला

7. सिर्फ मरीजों की देखभाल नहीं, हमें कागज़ी काम और कई बार क्लर्क का काम भी करना पड़ता है। यह सब हमारी ड्यूटी नहीं है, फिर भी करते हैं। -रूचि

8. पुलिस चौकी है, लेकिन गश्त नहीं होती। रात में काम करना बेहद डरावना हो गया है। सुरक्षा व्यवस्था मज़ाक बन चुकी है। -संतोष

9. सफाई न के बराबर है। मरीजों के साथ हम भी बीमार हो सकते हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। -संगीता

10. रोडवेज बस तक नहीं रुकती, ऑटो वाले तंग करते हैं। रोज़ सफर में डर लगता है। ये हमारी ड्यूटी का हिस्सा नहीं होना चाहिए। -राजेंद्र कौर

11. कई बार शराबी तीमारदारों ने वार्ड में बदतमीज़ी की, लेकिन प्रबंधन ने हमारी नहीं, उनकी बात मानी। -शिवानी

12. जब भी बच्चों को दूध पिलाने की जरूरत होती है, कोई व्यवस्था नहीं मिलती। इसके लिए एक कमरे की व्यवस्था हो हां बच्चें के साथ समय बिताया जा सके। -राजकुमारी

13. वार्ड में मच्छर इतने हैं कि मरीज और स्टाफ दोनों खतरे में हैं। साफ-सफाई का कोई जिम्मेदार नहीं है। -यशोदा

14. मेन गेट पर स्पीड ब्रेकर नहीं है, मैं कई बार हादसे का शिकार होने से बची हूं। हालांकि कई नर्स चोटिल हुई है। -मीनाक्षी

15. हर समय डर और चिंता में काम करना पड़ता है। हम इलाज करते हैं, लेकिन खुद अंदर से टूट चुके हैं। -प्रियंका चौहान

16. हर महीने वेतन को लेकर डर लगता है, कभी कट जाता है, कभी अटक जाता है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। -सुनीता

17. चोरी होती है, शराबी धमकाते हैं और प्रबंधन उल्टा हमें दोषी ठहराता है। इंसाफ की उम्मीद अब कम होती जा रही है। -राखी

18. हमसे नियमित नर्स जितना काम लिया जाता है, लेकिन वेतन में भेदभाव किया जा रहा है। संविदा नर्सों की आर्थिक स्थिति सही नहीं है। -सरिता

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।