बोले सहारनपुर : अपनी उपेक्षा से जूझ रहे निजी विद्यालय
Saharanpur News - निजी विद्यालय गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के सपनों को साकार कर रहे हैं। लेकिन, उन्हें आरटीई की राशि, बिजली-पानी के शुल्क, और मान्यता नवीनीकरण की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रबंधक सरकार से...

निजी विद्यालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराकर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के सपनों को संवार रहे हैं। निजी विद्यालयों की मांग है कि व्यावसायिक विद्युत कनेक्शन को समाप्त कर सामान्य घरेलू श्रेणी में रखा जाए। नगर निगम द्वारा विद्यालयों पर लगाए जाने वाले हाउस टैक्स और कमर्शियल वॉटर टैक्स को समाप्त किया जाए। आरटीई के अंतर्गत प्रतिपूर्ति 11 माह की बजाय पूरे 12 माह तक प्रदान की जाए। साथ ही विद्यालय प्रबंधन और कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए। निजी विद्यालय इन दिनों अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, मान्यता प्रक्रिया की जटिलताएं, आर्थिक शोषण और प्रशासनिक उदासीनता के चलते स्कूलों पर भारी दबाव है।
नगर और ग्रामीण क्षेत्र में संचालित 5000 हजार से अधिक निजी विद्यालय वर्षों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराकर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के सपनों को संवारते आ रहे हैं, लेकिन अब वे खुद अनदेखी के शिकार हो गए हैं। शिक्षा विभाग की अनियमितताओं और भेदभावपूर्ण रवैये से परेशान स्कूल प्रबंधक एकजुट होकर अपनी आवाज उठा रहे हैं। प्रबंधकों का आरोप है कि आरटीई की राशि महंगाई के अनुरूप नहीं बढ़ाई गई। वहीं फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अपात्र बच्चों को दाखिला देकर वंचितों का हक छीना जा रहा है। शिक्षा विभाग की निष्क्रियता, आधार कार्ड और जन्म प्रमाण पत्र जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी तथा बिजली-पानी के भारी शुल्क ने विद्यालयों की रीढ़ तोड़ दी है। ऊपर से, समय पर फीस नहीं मिलने से शिक्षकों का वेतन और स्कूल संचालन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इन चुनौतियों से जूझते हुए निजी स्कूलों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे। यह संघर्ष केवल अपने अस्तित्व के लिए नहीं, बल्कि बच्चों के उज्जवल भविष्य और शिक्षा की गरिमा की रक्षा के लिए है। नगर क्षेत्र में लगभग 500 और जिले में 5,000 से अधिक निजी विद्यालय संचालित हो रहे हैं, जिनमें से अधिकांश जूनियर हाईस्कूल स्तर के हैं। ये विद्यालय न केवल शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में सरकारी नीतियों, विभागीय लापरवाही और प्रशासनिक अनियमितताओं के चलते इन विद्यालयों को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी आदेशों के जटिल प्रावधान, आर्थिक दबाव, और विभागीय सहानुभूति की कमी ने इन विद्यालयों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। इनसमस्याओं के समाधान के लिए विद्यालय प्रबंधकों ने सरकार और शिक्षा विभाग से ठोस कदम उठाने की मांग की है, ताकि ये विद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में बिना किसी बाधा के अपना योगदान जारी रख सकें। स्कूल प्रबंधकों ने कहा आरटीई के तहत बच्चों के लिए सरकार 450 प्रतिपूर्ति देती है, जो केवल 11 महीने के लिए मिलती है। यह राशि 2014 के बाद कभी बढ़ाई नहीं गई, जबकि महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है। प्रबंधकों ने यह राशि 12 महीने तक देने और इसे बढ़ाकर वास्तविक खर्च के अनुरूप करने की मांग की। दूसरी ओर गलत दस्तावेजों से वंचितों का हक छीनने के खेल के आरोप लगाए गए। प्रबंधक गणेश शर्मा ने कहा कि आरटीई के तहत दाखिला लेने वाले कई संपन्न परिवार फर्जी आय प्रमाण पत्र बनवाकर गरीबों के हक की सीटे हड़प रहे हैं। महंगी गाड़ियों और ऊंचे बंगले वाले लोग आरटीई के नियमों का दुरुपयोग कर रहे हैं। शिक्षा विभाग इन मामलों की जांच नहीं करता केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित रहता है। उधर, स्कूल प्रबंधक अशोक मलिक ने आरोप लगाया कि शिक्षा विभाग नियमों का डर दिखाकर छोटे स्कूलों पर दबाव बनाता है। अधिकारी मान्यता रद्द करने तक की धमकी देते हैं। वहीं बड़े स्कूलों को नियमों में छूट मिल जाती है। यह दोहरा रवैया कब तक चलेगा? प्रबंधकों का कहना है कि जन्म प्रमाण पत्र और आधार कार्ड में लापरवाही से बढ़ रही परेशानियों को रेखांकित करते हैं। जिले के 30 फीसदी छात्रों का आधार कार्ड अब तक नहीं बना है। नगर निगम की लापरवाही के कारण जन्म प्रमाण पत्र समय पर नहीं बनते, जिससे बच्चों की अपार आईडी जनरेट नहीं हो पाती। सरकार को स्कूलों में आधार कार्ड बनाने की सुविधा देनी चाहिए, ताकि छात्रों का रिकॉर्ड सही ढंग से तैयार हो सके। वहीं, शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करते हुए प्रबंधकों ने कहा कि जिले में कुछ हाइब्रिड स्कूल चल रहे हैं, लेकिन विभाग को इनकी कोई जानकारी नहीं है। इन स्कूलों में छह घंटे से ज्यादा पढ़ाई कराई जाती है, जो सरकारी नियमों का उल्लंघन है। इसमें भ्रष्टाचार और सरकारी आदेशों की अनदेखी की आशंका है। ---- आरटीई का दुरुपयोग और पात्र वंचित एक और गंभीर मुद्दा यह है कि आरटीई की सीटों पर कई अपात्र और संपन्न परिवार फर्जी दस्तावेजों के सहारे दाखिला ले रहे हैं। प्रबंधकों का कहना है कि महंगी गाड़ियों और ऊंचे बंगलों में रहने वाले लोग फर्जी आय प्रमाण पत्र बनवाकर गरीबों के अधिकार की सीटें हड़प लेते हैं। शिक्षा विभाग इस गड़बड़ी की जांच करने की बजाय केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित रहता है, जिससे वंचित तबका शिक्षा से वंचित रह जाता है। इस समस्या के समाधान हेतु विद्यालय प्रबंधकों ने मांग की है कि एक स्वतंत्र समिति बनाई जाए जो आरटीई के तहत दाखिला लेने वाले छात्रों के दस्तावेजों की गहन जांच करे और फर्जीवाड़ा करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो। ---- निजी स्कूलों के साथ दोहरा रवैया अपनाते है अधिकारी विद्यालय प्रबंधक अशोक मलिक का कहना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी छोटे स्कूलों को नियमों का डर दिखाकर धमकाते हैं और मान्यता रद्द करने की धमकी देते हैं। जबकि बड़े और नामी स्कूलों को नियमों में छूट मिल जाती है। यह दोहरा रवैया शिक्षा के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। प्रबंधकों की यह भी मांग है कि तीन वर्ष पूरे कर चुके विद्यालयों को स्थायी मान्यता प्रदान की जाए ताकि उन्हें हर साल नवीनीकरण की जटिल प्रक्रिया से गुजरना न पड़े। ---- आधार कार्ड और जन्म प्रमाण पत्र की समस्या बच्चों की डिजिटल उपस्थिति और सरकारी योजनाओं के लिए आवश्यक आधार और जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया भी एक बड़ी चुनौती है। जिले में लगभग 30 प्रतिशत छात्रों का आधार कार्ड अब तक नहीं बन पाया है। नगर निगम की लापरवाही के कारण जन्म प्रमाण पत्र समय पर नहीं बनते, जिससे छात्रों की अपार आईडी जनरेट नहीं हो पाती। विद्यालयों का कहना है कि सरकार को स्कूल परिसर में ही आधार पंजीकरण और जन्म प्रमाण पत्र की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए ताकि यह कार्य समय पर और प्रभावी ढंग से हो सके। ---- बिजली, पानी और हाउस टैक्स ने बढ़ाया आर्थिक बोझ विद्यालयों पर लगाए जा रहे व्यावसायिक बिजली और पानी शुल्क, हाउस टैक्स तथा अन्य स्थानीय करों ने आर्थिक बोझ को और बढ़ा दिया है। निजी विद्यालयों को घरेलू दरों पर बिजली और पानी की सुविधा मिलनी चाहिए क्योंकि वे लाभ कमाने के लिए नहीं, बल्कि सेवा भाव से कार्य कर रहे हैं। इसके साथ ही, अभिभावकों द्वारा समय पर फीस जमा न किए जाने से विद्यालयों को शिक्षकों का वेतन देने और अन्य खर्चों को पूरा करने में परेशानी होती है। प्रबंधकों ने इस पर भी चिंता जताई और सरकार से फीस भुगतान के लिए एक स्पष्ट नीति बनाने की मांग की। ----- समाधान की आवश्यकता नहीं, अनिवार्यता है निजी विद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के सच्चे साझेदार हैं। इनकी समस्याओं को केवल सुना जाना काफी नहीं, बल्कि उन्हें प्राथमिकता के साथ सुलझाया जाना आवश्यक है। शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता तभी सुधरेगी जब नीति निर्माण में निजी विद्यालयों की भी भूमिका हो और उनकी बातों को गंभीरता से सुना जाए। यदि सरकार और शिक्षा विभाग इन मांगों को समय रहते नहीं मानते हैं, तो विद्यालय प्रबंधकों ने आंदोलन की चेतावनी दी है। यह आंदोलन केवल विद्यालयों की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा की गरिमा और भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए होगा। स्कूल प्रबंधकों की मांग विद्यालयों को व्यवसाय की श्रेणी से हटाकर सेवा क्षेत्र के अंतर्गत रखा जाए, ताकि उन्हें गैर-लाभकारी संस्थानों के समान सुविधाएं मिल सकें। विद्यालयों के लिए व्यावसायिक विद्युत कनेक्शन को समाप्त कर सामान्य घरेलू श्रेणी में रखा जाए। नगर निगम द्वारा विद्यालयों पर लगाए जाने वाले हाउस टैक्स और कमर्शियल वॉटर टैक्स को पूरी तरह समाप्त किया जाए। आरटीई के अंतर्गत प्रतिपूर्ति 11 माह की बजाय पूरे 12 माह तक प्रदान की जाए। सरकारी आदेशों और सूचनाओं के प्रभावी अनुपालन के लिए विद्यालय प्रबंधन और कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए। विद्यालयों में सोलर सिस्टम लगाने पर सरकार 75 फीसदी की सब्सिडी प्रदान करे, जिससे बिजली खर्च में कमी आ सके। विद्यालयों के लिए ऋण लेने की प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाया जाए, ताकि वित्तीय जरूरतों को पूरा किया जा सके। तीन वर्ष पूरे कर चुके विद्यालयों को स्थायी मान्यता प्रदान की जाए, ताकि हर साल मान्यता नवीनीकरण की प्रक्रिया से बचा जा सके। शिक्षा के व्यवसायीकरण संबंधी वर्तमान समिति को भंग कर एक नई और निष्पक्ष समिति का गठन किया जाए। शिकायतें 1. आरटीई के तहत कई संपन्न परिवार गलत दस्तावेजों के आधार पर गरीबों की सीटों पर कब्जा कर रहे हैं। 2. शिक्षा विभाग के अधिकारी छोटे विद्यालयों को धमकी देकर डराने और परेशान करने का कार्य कर रहे हैं। 3. बिजली व पानी के व्यावसायिक शुल्क से स्कूलों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ डाला जा रहा है। 4. मान्यता नवीनीकरण प्रक्रिया में देरी और भ्रष्टाचार के कारण विद्यालयों को हर साल परेशानी झेलनी पड़ती है। 5. अभिभावकों द्वारा समय पर फीस न देने से शिक्षकों का वेतन और विद्यालय संचालन प्रभावित हो रहा है। सुझाव 1. आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले छात्रों के दस्तावेजों की गहन जांच सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र समिति बने। 2. शिक्षा विभाग के अधिकारियों की ओर से विद्यालयों को अनावश्यक धमकियां देने पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। 3. निजी विद्यालयों के लिए बिजली और पानी के शुल्क को घरेलू दरों पर निर्धारित किया जाए। 4. विद्यालयों को तीन वर्ष की बजाय स्थायी मान्यता देकर नवीनीकरण की अनावश्यक प्रक्रिया खत्म की जाए। 5. अभिभावकों के लिए नीति बनाई जाए, जिससे वे समय पर स्कूल फीस जमा करने के लिए बाध्य हों। ------------------------------------------------------------------ 1.हर साल मान्यता के नाम पर कागज़ी प्रक्रिया में समय बर्बाद करना पड़ता है। विभागीय अधिकारी छोटे स्कूलों को निशाना बनाते हैं, जबकि बड़े संस्थानों को खुली छूट है। ये दोहरा रवैया शिक्षा के साथ अन्याय है। -अशोक मलिक, स्कूल प्रबंधक 2.बिजली और पानी के कमर्शियल चार्ज से हम जैसे छोटे स्कूल चलाना मुश्किल हो गया है। हम सेवा कर रहे हैं, व्यापार नहीं। सरकार को हमें घरेलू दरों पर सुविधाएं देनी चाहिए। -गय्यूर आलम, स्कूल प्रबंधक 3.आरटीई के तहत अपात्र बच्चों का दाखिला एक बड़ा घोटाला बन चुका है। फर्जी आय प्रमाण पत्र से अमीर लोग गरीबों का हक छीन रहे हैं और शिक्षा विभाग चुप है। इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है। -अजय सिंह रावत, स्कूल प्रबंधक 4.आधार कार्ड और जन्म प्रमाण पत्र की प्रक्रिया में नगर निगम की लापरवाही से छात्रों का भविष्य अटक गया है। सरकार को स्कूलों में ये सुविधाएं देनी चाहिए, ताकि रिकॉर्डिंग आसान हो सके। -मुजाहिद नदीम, स्कूल प्रबंधक 5.सरकार हमें आरटीई के तहत जो राशि देती है, वह सिर्फ 11 महीने के लिए है और वर्षों से नहीं बढ़ी। महंगाई के इस दौर में ये राशि प्रतीकात्मक बन गई है, व्यावहारिक नहीं। -अब्दुल सत्तार, स्कूल प्रबंधक 6.मान्यता नवीनीकरण की प्रक्रिया बहुत ही जटिल और अपारदर्शी है। हर साल नए नियम सामने आते हैं और स्कूलों को अनावश्यक परेशान किया जाता है। हमें स्थायी मान्यता दी जानी चाहिए। -मोहम्मद अहमद, स्कूल प्रबंधक 7.अभिभावकों द्वारा फीस न देने से सबसे अधिक नुकसान शिक्षक और छात्रों को होता है। समय पर वेतन न मिलने से स्टाफ में असंतोष बढ़ता है और पढ़ाई पर असर पड़ता है। -प्रवीण गुप्ता, स्कूल प्रबंधक 8.शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी छोटे स्कूलों से धमकी भरे लहजे में बात करते हैं। यह अपमानजनक है और शिक्षा के माहौल को दूषित करता है। सम्मान और सहयोग मिलना चाहिए। -केपी सिंह, स्कूल प्रबंधक 9.हमने विद्यालय में सोलर सिस्टम लगवाने का विचार बनाया था, लेकिन सरकारी सब्सिडी नहीं मिलने से विचार अधर में है। सरकार को पर्यावरण हित में इसे प्रोत्साहित करना चाहिए। -खदीजा तौकीर, स्कूल प्रबंधक 10.बच्चों की शिक्षा से जुड़े हर दस्तावेज में देरी हो रही है। अपार आईडी जनरेट न होने से उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा। यह लापरवाही नहीं, अन्याय है। -उमा बाटला, स्कूल प्रबंधक 11.हमने कई बार विभाग के अधिकारियों को ज्ञापन दिए लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला। लगता है जब तक आंदोलन नहीं होगा, तब तक कोई सुनवाई नहीं होगी। -यशपाल सिंह, स्कूल प्रबंधक 12.आज के समय में जब डिजिटल इंडिया की बात हो रही है, हम आधार और जन्म प्रमाण पत्र जैसे बुनियादी कागज़ों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सिस्टम में बदलाव जरूरी है। -अशोक सैनी, स्कूल प्रबंधक
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