बोले सीतापुर-बोले सीतापुर- तपिश भरे मौसम में सूखे कंठ की प्यास बुझा रहे प्याऊ
Sitapur News - सीतापुर में मई माह में 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान पहुँचने से पानी की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। ज्यादातर प्याऊ और हैंडपंप खराब हैं, जिससे राहगीरों को पानी खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।...

सीतापुर। मई माह का चौथा सप्ताह चल रहा है। गर्मी भी अपना रौद्र रूप दिखा रही है। यहां तक की पारा दिन के समय 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। ऐसे में राहगीरों, रेहड़ी और पटरी दुकानदारों और बाजार आने वाले लोगों का हलक सूखना स्वाभाविक है। भीषण गर्मी के इस मौमस में पीने का साफ पानी ही सबसे बड़ी राहत बनकर सामने आता है। शहर हों या कस्बे, यहां तक कि दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में भी राहगीर पानी को तरस रहे हैं। अधिकांश हैण्डपम्प खराब पड़े हैं। दोपहर बाद खाली हो जाते प्याऊ पर लगे घड़े : गर्मी के प्रकोप से निपटने और सूखे कंठ की प्यास बुझाने के लिए नगर पालिका प्रशासन सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों ने प्याऊ और वाटर कूलर स्थापित कर रखे हैं।
यह प्याऊ प्रमुख बाजारों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों और भीड़भाड़ वाले स्थानों, बाजारों आदि जगहों पर स्थापित किए गए हैं। कई जगह तो आरओ फिल्टर लगे हुए वाटर कूलर भी लगाए गए हैं। जिससे लोगों को पीने के लिए साफ और और ठंडा पानी मिल सके। हालांकि, इनकी संख्या और इनके समुचित रखरखाव को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। सीतापुर नगर पालिका प्रशासन ने लोगों को सूखे कंठों की प्यास बुझाने के लिए शहर में सार्वजनिक प्याऊ और वाटर कूलर की व्यवस्था तो की है, लेकिन समुचित देखरेख के अभाव में यह बेमानी ही साबित हो रहे हैं। शहर में विभिन्न सार्वजनिक स्थलों पर प्याऊ लगाए गए हैं। इन सभी प्याऊ पर मिट्टी के दो-दो घड़े रखे गए हैं। यहां पर लोगों को पानी पिलाने के लिए एक-एक कर्मचारी की भी तैनाती की गई है। नगर पालिका परिषद के सहायक आयुक्त वैभव त्रिपाठी की ओर से इन सभी कर्मियों को स्पष्ट निर्देश हैं कि वह अपने-अपने प्याऊ पर पीने के पानी का समुचित इंतजाम रखें और अपनी ड्यूटी को पूरा किए बिना प्याऊ छोड़कर कतई नहीं जाएंगे। लेकिन दोपहर होने से पहले ही इन प्याऊ के घड़े पानी से खाली हो जाते हैं। ऐसे में आमजन को अपनी प्यास बुझाने के लिए न सिर्फ इधर से उधर तक की दौड़ लगानी पड़ती है। बल्कि महंगी कीमत पर खरीद कर पानी पीना पड़ता है। इससे सबसे ज्यादा दिक्कत राहगीरों, रिक्शाचालकों, ऑटो चलाने वालों और दूसरे शहरों से आए लोगों को हो रही है। लोग पानी खरीदकर पीने को मजबूर हैं। जो 20 रुपये की बोतल नहीं खरीद सकते वह दो रुपये वाला पानी का पाउच ले रहे हैं। पाउच वाले पानी की की गुणवत्ता पर पहले भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। ग्रामीण अंचलों में भी गहरा रही समस्या : नगरों एवं कस्बों में जितने प्याऊ होने चाहिए, उससे कम संख्या में ही लगे हैं। अत्याधिक भीड़भाड़ वाले बाजारों और शहरी आबादी के बाहर जितनी संख्या में प्याऊ होने चाहिए, उतने स्थापित नहीं किए जा सके हैं। हालांकि सीतापुर नगर पालिका प्रशासन द्वारा स्थापित प्याऊ और स्वयं सेवी संगठनों द्वारा प्याऊ की स्थापना करने का दावा तो किया जा रहा है। लेकिन प्याऊ की स्थापना के बाद जिम्मेदार उनके रख-रखाव की ओर समुचित ध्यान नहीं देते हैं। जिसके चलते यह प्याऊ सिर्फ नाम के रह जाते हैं। पानी की टंकियां धूप में तपती रहती हैं, जिससे पानी गर्म हो जाता है। कुछ प्याऊ में तो कूलर लगे होने के बावजूद बिजली गुल होने या खराबी के कारण वे सिर्फ साधारण पानी ही उपलब्ध करा पाते हैं। यही नहीं, कई प्याऊ में तो पानी की आपूर्ति ही बाधित रहती है, जिससे राहगीरों को निराशा ही हाथ लगती है। इसके अलावा प्याऊ की टंकी अथवा मटकों की साफ-सफाई और उनकी गुणवत्ता की ओर भी जिम्मेदार ध्यान नहीं दे रहे हैं। शहर के कई प्याऊ ऐसी जगह पर स्थापित हैं, जिनके आसपास गंदगी भी है। इन जगहों के प्याऊ का पानी मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। सरकारी प्रयासों के अलावा, कई निजी संस्थाएं, धार्मिक संगठन और समाज सेवी भी गर्मी में पानी की व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मंदिरों, गुरुद्वारों, मस्जिदों और सामाजिक संगठनों द्वारा जगह-जगह प्याऊ लगाए जाते हैं। ये अक्सर बेहतर रखरखाव वाले और ठंडा पानी उपलब्ध कराने वाले होते हैं। ग्रामीण अंचलों में भी गहरा रही समस्या जिला और तहसील मुख्यालयों पर तो प्याऊ लग भी जाते हैं, लेकिन दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में राहगीरों के लिए पानी की व्यवस्था एक बड़ी चुनौती है, खासकर उन इलाकों में जहां आबादी कम है और सार्वजनिक परिवहन के साधन भी सीमित हैं। कई कस्बों में धार्मिक संगठनों और समाज सेवियों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर या छोटे समूहों में प्याऊ संचालित करते हैं। यह अक्सर सामुदायिक भावना और धर्मार्थ कार्यों से प्रेरित होते हैं। लेकिन सीतापुर जिले में इनकी संख्या ना काफी है। ऐसे में ग्रामीण राहगीरों को अपनी प्यास बुझाने के लिए ग्रामीण इलाकों में पानी का मुख्य स्रोत हैंडपंप पर ही निर्भर होना पड़ता है। भीषण गर्मी के मौसम में भूजल स्तर के नीचे खिसक जाने से तमाम हैंडपंप पानी देना बंद कर देते हैं, या फिर उनमें से बहुत कम पानी आता है। ऐसे में ग्रामीण राहगीरों, पटरी दुकानदारों और छोटे व्यवसायियों को महंगी दर पर खरीद कर ही पानी पीना पड़ता है। जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण अंचलों तक कई जगह तो ये संस्थाएं 'छबील' के माध्यम से भी राहगीरों को पानी और शरबत पिलाती हैं, जो गर्मी में बड़ी राहत पहुंचाता है। ज्येष्ठ (जेठ) माह के मंगलवार और शनिवार को समाज सेवियों द्वारा प्याऊ और 'छबील' का आयोजन कर लोगों की प्यास बुझाने का काम तो किया जा रहा है। लेकिन केवल एक या दो दिन के इन आयोजनों से प्यासे कंठ की प्यास बुझाना मुश्किल काम है। प्यास बुझा रहा इनर व्हील क्लब बिसवां। तपिश भरे मौसम में सूखे कंठ की प्यास बुझाने के लिए इनर व्हील क्लब उड़ान ने एक सार्थक पहल की है। किशोरियों और महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक संबल प्रदान करने के लिए प्रयासरत इनर व्हील क्लब उड़ान ने कस्बे के शंकरगंज मोहल्ले में एक प्याऊ की स्थापना की है। क्लब की जोनल हेड रेनू मेहरोत्रा बताती हैं कि गर्मी के इस मौसम में राहगीरों को ठंडा पानी मिल सके। इसे लेकर क्लब ने अपने सीमित संसाधनों के माध्यम से यह एक छोटा सा प्रयास किया गया है। इस तरह के और प्रयासों की जरूरत है, इसके लिए लोगों को आगे आना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे ही छोटे-छोटे प्रयासों से हम लोगों की प्यास बुझा सकते हैं, क्योकि बूंद-बूंद से ही सागर भरता है। इसके अलावा नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पुष्पू जायसवाल द्वारा भी नगर में चार प्याऊ घड़े वाले और चाल वाटर कूलर की स्थापना की गई है। पालिकाध्यक्ष ने बताया कि गर्मी के इस मौसम में लोग अपनी प्यास बुझा सके इसको लेकर घड़े वाले प्याऊ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के निकट, पॉवर हाउस के निकट, तीसरा बस स्टैंड के पास और जहांगीराबाद रोड के पास लगवाए गए हैं। इसके अलावा वाटर कूलर बड़ा चौराहा पर, जहांगीराबाद तिराहे पर, दशहरा मेला मैदान के निकट और चौथा काला गेट के पास लगवाए गए हैं। शिकायतें --- - शहर में वाटर कूलर और प्याऊ तो लगे हैं, लेकिन जिम्मेदारों द्वारा उनकी निगरानी नहीं की जाती है। - प्याऊ और वाटर कूलर के पानी से अक्सर लोग हाथ, पैर, बर्तन आदि भी धोने लगते हैं। - बिजली की कटौती के दौरान वाटर कूलर ठप हो जाते हैं, या फिर वह गर्म पानी देने लगते हैं। - मीठे पानी से सड़कों की तराई और वाहनों की धुलाई कर हम जल संकट को आमंत्रित कर रहे हैं। - प्राकृतिक स्रोतों कुओं और तालाबों को तेजी से पाटा जा रहा है। कई तालाबों पर भवन बन गए हैं। - पेयजल को संरक्षित करने के बजाए लोग इसकी तेजी से बर्बादी कर रहें हैं, यह उचित नहीं है। सुझाव --- - शहर में लगे वाटर कूलर और प्याऊ की समय-समय पर अधिकारियों द्वारा निगरानी भी की जानी चाहिए। - वाटर कूलर और प्याऊ पर हमें सिर्फ पीने के लिए ही पानी का उपयोग कर उसकी स्वच्छता बनाए रखना चाहिए। - सौर ऊर्जा से चलने वाले वाटर कूलर को बढ़ावा दिया जाए, जिससे लोगों को हर समय ठंडा पानी मिल सके। - जल संकट के समाधान के लिए भूजल संरक्षण और वर्षा जल संचयन पर विशेष ध्यान देने की जरूतर है। - भविष्य के लिए पानी के प्राकृतिक स्रोतों को संरक्षित कर उन्हें सूखने से बचाने की बेहद जरूरत है। - भीषण गर्मी में पानी की उपलब्धता एक जनहित का मुद्दा है। हर एक व्यक्ति को इसमें शामिल होना चाहिए। प्रस्तुति- राजीव गुप्ता
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