बोले काशी : सहेजें इन्हें, तभी पौराणिक रह पाएगी शिवनगरी
Varanasi News - वाराणसी में 'तीर्थायन' नामक यात्रा पौराणिक स्थलों को आधुनिक संदर्भों से जोड़ने का प्रयास है। यह यात्रा 600 से अधिक सदस्यों के साथ शुरू हुई है, जिसका उद्देश्य काशी के ऐतिहासिक प्रतीकों की महिमा को...
वाराणसी। काशी की महिमा से जुड़े अनगिनत संदर्भ हैं, देवस्थलों-कुंडों और जलाशयों के रूप में प्रतीक भी हैं। ये प्रतीक पौराणिक शिवनगरी के ‘वातायन हैं। वातायन यानी ऐसा झरोखा जिससे प्राचीन काशी को समझा, महसूस किया जा सकता है। शहर का एक जुनूनी जमात साप्ताहिक यात्रा के जरिए उन प्रतीकों को आधुनिक संदर्भों से जोड़ने, उनका वैभव-गरिमा लौटाने में जुटा है। उस यात्रा का नाम ‘तीर्थायन है। जमात के सदस्यों का मानना है कि इन प्रतीकों के बिना दिव्य काशी की भव्यता अधूरी रहेगी। यह तीर्थायन शोध के नए विषयवस्तु भी तैयार कर रहा है।
तीर्थायन की शुरुआत एक स्वत:स्फूर्त सोच का परिणाम है। उन लोगों की सोच जो सनातनी और पौराणिक काशी का कायाकल्प होते देख आह्लादित थे। लेकिन उनके मन में काशी के पौराणिक स्वरूप से जुड़े स्थलों-कुंडों की उपेक्षा से एक वेदना भी थी। एक कसक थी कि पुराणों में तो लगभग डेढ़ हजार प्रतीकों का उल्लेख मिलता है लेकिन उनमें दहाई की संख्या में भी प्रतीकों के दिन नहीं लौट सके हैं। यह वेदना और कसक सात वार-नौ त्योहार के नेमियों से लेकर बीएचयू एवं आईआईटी बीएचयू के पूर्व-वर्तमान प्रोफेसरों, छात्रों-शोधार्थियों ने एक साथ महससू की। फिर, लगभग दो वर्ष पहले ‘तीर्थायन का श्रीगणेश हुआ। ‘तीर्थायन के कर्ताधर्ता एवं आईआईटी बीएचयू में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर पीके मिश्र, डॉ. अवधेश दीक्षित, रत्नेश पांडेय और उमाशंकर गुप्ता आदि ने ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा- ‘पुराणों में काशी डेढ़ हजार से अधिक प्रतीकों में प्रकट हुई है। हम लोगों ने एक वर्ष के दौरान छह सौ अधिक स्थलों को चिह्नित किया है, तीर्थायन जारी है। साथ चल रहे आईआईटी के पूर्व निदेशक प्रो. एसएन उपाध्याय ने स्पष्ट किया- ‘हमारी इस यात्रा का उद्देश्य सनातन काशी के ऐश्वर्य की ओर जनसामान्य का ध्यान दिलाना, युवाओं को उनके संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करना है। चूंकि उद्देश्य पवित्र और प्रेरक है, इसलिए 600 से अधिक सदस्य हमारे सहयात्री बन चुके हैं। उनमें सर्वाधिक युवा ही हैं।
रविवार प्रात:, चैत्र पूर्णिमा को जैतपुरा के वागेश्वरी देवी मंदिर से इस यात्रा का नया चरण शुरू हुआ जो काशी के ओंकारेश्वर खंड स्थित 21 स्थलों-कुंडों तक पहुंचा। तीर्थायन के नेतृत्वकर्ता उमाशंकर गुप्ता ने वह यात्रापथ तैयार किया है जिसके किनारे या इर्दगिर्द पौराणिक मंदिर, कुंड-जलाशय हैं। हर वर्ष काशी प्रदक्षिणा यात्रा निकालने वाले उमाशंकर गुप्ता को काशी का भूगोल कंठस्थ है। उन्होंने कहा कि युवा यदि इस पुनीत कार्य में अपना जोश मिला दें तो इन प्रतीकों में पुराणों की काशी फिर पुनर्जीवित हो उठेगी।
हर बार नई शक्ति और ऊर्जा
चैत्र पूर्णिमा को तीर्थायन के पड़ाव वागेश्वरी गणेश, सिद्धेश्वर महादेव, वागीश्वर महादेव, ज्वरहरेश्वर महादेव, सोमेश्वर महादेव, श्रीकर्कोट नागेश्वर तीर्थ (नागकुआं या नागकूप), नागेश्वर महादेव, उत्तरार्कादित्य (बकरिया कुंड), शैलपुत्री, शैलेश्वर महादेव, मधुरेश्वर महादेव, हुंडेश्वर महादेव, श्रीकपाल मोचन (लाटभैरव), कुंतेश्वर महादेव, वैतरणी महादेव (कोनिया) में हुए। अंत में पापमोचनेश्वर महादेव, नौवां पोखरा पर नए चरण की यात्रा पूर्ण हुई। पूर्व अपर निदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) डॉ. एसके उपाध्याय ने शैलपुत्री मंदिर में बताया कि सन-1955 में बनारस पढ़ने आया था। तब से ‘आज तक इतनी विविधता न देखी न सुनी थी। तीर्थायन में नई-नई जानकारियां मिल रही हैं। वाकई अद्भुत है काशी का अध्यात्म। दिनेश्वर तिवारी, बीएचयू मालवीय अनुशीलन केन्द्र के डॉ. धर्मजंग, नेहा दुबे, मृत्युंजय मालवीय, रवि विश्वकर्मा, जितेन्द्र जायसवाल ने लगभग एक स्वर में कहा कि हर बार यात्रा में हमारे संकल्प को नई शक्ति और ऊर्जा मिलती है। यह कि ये स्थल हमारी थाती हैं, विरासत हैं। इन्हें नष्ट या लुप्त नहीं होने देना है।
अभी जागरण, आगे हस्तक्षेप
सूत्रधार डॉ. अवधेश दीक्षित के मुताबिक अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर से तीर्थायन की शुरुआत हुई थी। पहले चरण में हम गंगातटीय स्थलों से होते हुए आदिकेशव तक गए। इसी 27 अप्रैल को दो वर्ष पूरे हो जाएंगे। इस अवधि को हमने जागरण काल माना है। यात्रा से हर वर्ग को जोड़ते हुए जनसामान्य को विरासत के प्रति जागरूक करना एकमात्र उद्देश्य है। सभी सहयात्रियों का एक ह्वाट्सएप ग्रुप बना है। संगठन कोई नहीं है, आगे बनाएंगे भी नहीं। डॉ. अवधेश को प्रेरणा काशी अन्तरगृही परिक्रमा, प्रदक्षिणा यात्रा आदि को निरंतर चलाने वाले उमाशंकर गुप्ता से मिली। बोले, उनके साथ कई स्थानों पर यात्रा की। उस दौरान महससू हुआ कि हम इनके संरक्षण के लिए कुछ कर सकते हैं। फिर तीर्थायन सामने आया। उन्होंने बताया कि अप्रैल में तीर्थायन का दूसरा चरण पूरा होने के बाद अब तक चिह्नित पौराणिक स्थलों का डाक्यूमेंटेशन होगा। उनमें वे स्थान विशेष रूप से दिखाए जाएंगे तो किन्हीं कारणों से संकट में हैं और उनके तत्काल संरक्षण की जरूरत है। तीसरा चरण हस्तक्षेप का होगा जिसमें प्रशासन-शासन आदि का ध्यान दिलाया जाएगा।
बहुत बुरा है बालार्क कुंड का हाल
तीर्थायन के यात्रा पथ में दारानगर, जैतपुरा डिगिया, शैलपुत्री, लाट भैरव को जाने वाली सड़कों की स्थिति बहुत खराब मिली। ज्यादातर जगह कोई न कोई काम होने के बाद सड़कें खुदी हुई छोड़ दी गई हैं। शैलपुत्री मंदिर के रास्ते पर कई दिनों से सीवर ओवरफ्लो कर रहा है। सबसे बुरा हाल बालार्क या बकरिया कुंड का दिखा। सूर्य से जुड़े इस पौराणिक कुंड का तीन वर्ष पहले वीडीए ने जीर्णोद्धार करवाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सांसद निधि से राशि मिली थी। उस समय 19 हेरिटेज लाइटें, सौ से अधिक ट्री गार्ड भी लगे थे। जीर्णोद्धार के बाद कुंड नगर निगम को हैंडओवर कर दिया गया। अब सिर्फ दो-तीन हेरिटेज लाइटें जलती हैं। ट्री गार्डों में सिर्फ नौ बचे हैं। पर्यटन विभाग को सूर्य मंदिर की सीढ़ी और द्वार बनवाने थे। दोनों काम अधूरे हैं। मंदिर की देखरेख कर रहे आनंद मौर्या ने बताया कि नगर निगम ने अतिक्रमण मानते हुए सीढ़ियों को तोड़वा दिया। कुंड में आसपास का कूड़ा फेका जा रहा है। जलकुंभी से काला पड़ चुका पानी नहीं दिखता। प्रो. पीके मिश्रा, अखिलेश सिंह, ओमप्रकाश चौरसिया, अनुभव सिन्हा, विनय शुक्ल, बृजमोहन वर्मा आदि ने कहा कि नगर निगम को इस कुंड और मंदिर के लिए संवेदनशील होना पड़ेगा।
सुझाव
1. काशी के पौराणिक स्थल अतिक्रमण और निजी कब्जों से मुक्त होने चाहिए। इनका प्रशासन संज्ञान ले।
2. सामर्थ्यवान लोग नए मंदिर बनवाएं ठीक है। वे प्राचीन स्थलों के संरक्षण, सुंदरीकरण के लिए भी पहल करें तो काशी का भला होगा।
3. पौराणिक स्थलों के परिसर राजस्व रिकार्डों की मदद से स्पष्ट रूप से निर्धारित होने चाहिए।
4. पौराणिक स्थलों से जुड़े कुंडों-तालाबों की स्थिति भी सुधरनी चाहिए। इसके लिए नगर निगम को पहल करनी होगी।
5. जनसामान्य को काशी के पौराणिक स्थलों की अधिक से अधिक जानकारी रखनी चाहिए।
शिकायतें
1. पौराणिक स्थलों की दुर्दशा के लिए वे भी उतने ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने स्थलों को निजी संपत्ति बना ली है।
2. प्राचीन स्थलों की चिंता नहीं की जा रही है। नए-नए मंदिरों के निर्माण से ही काशी का सनातन स्वरूप सुरक्षित नहीं रहेगा।
3. अनेक पौराणिक स्थलों के परिसर की सीमा अस्पष्ट है। इसका फायदा उठाते हुए लोगों ने अतिक्रमण कर रखे हैं।
4. पौराणिक स्थलों से जुड़े कुंड-तालाब में ज्यादातर की स्थिति बहुत खराब है। कई कुंड गंदगी के केन्द्र बन गए हैं।
5. काशी के जनसामान्य, खासकर युवाओं को अपने प्राचीन और अध्यात्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों की बहुत जानकारी नहीं है।
मन की बात
तीर्थायन का उद्देश्य सनातन काशी के ऐश्वर्य की ओर जनसामान्य का ध्यान दिलाना है।
प्रो. एसएन उपाध्याय
प्राचीन मंदिरों की जानकारी हर काशीवासी को होनी चाहिए। उनसे जुड़े जलाशयों, कुंडों, कुओं का भी संरक्षण हो।
उमाशंकर गुप्ता
हमने इस बार समर कैंप का टॉपिक काशी के पौराणिक स्थलों को बनाया है। उन पर दो माह शोध होंगे।
प्रो. पीके मिश्रा
नई पीढ़ी को पौराणिक मंदिरों के वैज्ञानिक महत्व की जानकारी देने का प्रबंध होना चाहिए।
डॉ. एसके उपाध्याय
काशी के पौराणिक मंदिरों की वैज्ञानिकता, आध्यात्मिक रहस्य का प्रसार होना आवश्यक है।
डॉ. अवधेश दीक्षित
युवा पीढ़ी को काशी खंडोक्त कई मंदिरों का महत्व बताने को तीर्थायन जरूरी है।
प्रो. माधव जर्नादन रटाटे
कई मंदिरों का केवल नाम सुना था। तीर्थायन से जुड़ने के बाद वहां दर्शन का लाभ मिला।
किरन मिश्रा
प्राचीन मंदिरों को पर्यटन सर्किट से जोड़ने की सख्त जरूरत है। युवा पीढ़ी को जागरूक होना पड़ेगा।
-नेहा दुबे
तीर्थायन काशी खंडोक्त मंदिरों का महत्व आमजन तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम बन रहा है।
आनंद मिश्रा
साल भर हुआ, तीर्थायन से जुड़े हुए। कई मंदिरों में दर्शन का पहली बार मौका मिला।
शिवप्रकाश गुप्ता
कुंडों को पुनर्जीवित करके भूजल स्तर सुधारा जा सकता है। उनका संरक्षण जरूरी है।
अर्चना
बनारस की जीडीपी बढ़ाने में इन प्राचीन मंदिरों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
मृत्युंजय मालवीय
मंदिरों तक पहुंचने वाली खस्ताहाल सड़कों और गलियों की मरम्मत होनी जरूरी है।
डॉ. अनुभव सिन्हा
गली-गली में छिपा है काशी का आध्यात्मिक वैभव। उससे नई पीढ़ी को परिचित होना चाहिए।
-डॉ. धर्मजंग
कई मंदिरों में दर्शन किया। उनका नाम नहीं सुना था। अपने दोस्तों को भी दर्शन कराएंगे।
ओम गुप्ता
दशाश्वमेध में ऐसे मंदिर में गया जहां शुरू में एक व्यक्ति के आने-जाने की जगह है।
प्रेमचंद्र श्रीवास्तव
दशकों से जिन मंदिरों के बारे में नहीं जान सका, अब वहां दर्शन लाभ मिल रहा है।
डॉ. छेदीलाल कांस्यकार
कई प्राचीन मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए बैठने, पेयजल की सुविधा नहीं है। उनका इंतजाम होना चाहिए।
जितेंद्र जायसवाल
पौराणिक मंदिरों तक पहुंच आसान बनाने के लिए नगर निगम बुनियादी सुविधाएं विकसित करे।
संजय शुक्ला
बकरिया कुंड के सूर्य मंदिर में जाने के लिए सुगम रास्ता नहीं है। नगर निगम इसे तत्काल ठीक कराए।
बृजमोहन वर्मा
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