मनमाने तरीके से बढ़ाई,अब बनी गले की फांस,प्राइवेट स्कूलों के फीस बढ़ोतरी पर ऐक्शन की मांग
- निजी स्कूलों ने किस तरह से फीस में मनमानी बढ़ोतरी की, इसकी परतें जिला प्रशासन की जांच में खुल रही हैं। कमेटी के सामने पिछले पांच साल का फीस बढ़ोतरी का रिकॉर्ड स्कूलों के गले की फांस बन गया है। जो स्कूल फंस रहे हैं, उन पर क्या एक्शन होगा?

निजी स्कूलों ने किस तरह से फीस में मनमानी बढ़ोतरी की, इसकी परतें जिला प्रशासन की जांच में खुल रही हैं। कमेटी के सामने पिछले पांच साल का फीस बढ़ोतरी का रिकॉर्ड स्कूलों के गले की फांस बन गया है। जो स्कूल फंस रहे हैं, उन पर क्या एक्शन होगा? यह जिला प्रशासन को अभी तय करना है।‘हिन्दुस्तान’ ने 23 मार्च के अंक में ‘नया सत्र नई मुसीबत’ अभियान के जरिये ‘निजी स्कूलों ने नए सत्र में बढ़ाई मनमानी फीस’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। इसके जरिये खुलासा किया गया था कि शहर के कई स्कूलों ने ट्यूशन फीस 40 फीसदी तक बढ़ा दी है। साथ ही,वार्षिक फीस नाम से भी अभिभावकों से वसूली का खेल किया जा रहा था।
‘हिन्दुस्तान’ में छपी खबरों के बाद जहां प्रशासन व शिक्षा विभाग हरकत में आया। अभिभावकों और छात्रों ने प्रदर्शन किए। इसके बाद डीएम सविन बंसल ने स्कूलों की जांच बिठा दी। कुछ दिन से चल रही जांच में स्कूलों से पांच साल की फीस का रिकॉर्ड मांगा जा रहा है। ऐसे में कई स्कूल फंसते दिख रहे हैं। क्योंकि, कई स्कूलों ने कोविड के बाद हर साल फीस में 10% से अधिक की बढ़ोतरी की है।
चार बुक सेलरों पर हालिया कार्रवाई के विरोध में बुधवार को शहर में बड़ी संख्या में किताबों की बिक्री करने वाले स्टोर बंद रहे। दून वैली उद्योग व्यापार मंडल के प्रतिनिधियों ने इसके विरोध में डीएम कार्यालय पहुंचकर ज्ञापन दिया। साथ ही व्यापारियों ने नारेबाजी भी की। दरअसल,हाल में नया शैक्षिक सत्र शुरू हुआ है। अभिभावक अपने बच्चों के लिए किताबें खरीद रहे हैं।
आरोप है कि बुक स्टेशनरी संचालक किताबों की बिक्री पर मनमानी कर रहे हैं। इसे लेकर बीते दिनों डीएम सविन बंसल के निर्देश पर कई बुक सेलरों पर छापेमारी की गई। चार बड़े बुक सेलरों पर केस दर्ज किए। दुकानों को सील किया गया। इस पर दून वैली उद्योग व्यापार मंडल अध्यक्ष पंकज मैसोन और बुक सेलर एसोसिएशन अध्यक्ष रणधीर अरोड़ा के नेतृत्व में बुक सेलरों ने डीएम आवास पर प्रदर्शन किया। कहा गया कि किताबों पर ओवररेटिंग नहीं की गई। लेकिन, पुस्तकों के नकली होने का हवाला देते हुए केस दर्ज कर दिए गए, जो गलत है। आईएसबीएन छापने की बाध्यता है भी तो वे प्रकाशक का निजी निर्णय है।
कई स्कूलों ने पांच साल के भीतर एडमिशन फीस दोगुनी तक कर दी। स्कूल नए दाखिले के वक्त इस फीस को अभिभावकों से लेते हैं। वार्षिक फीस के नाम पर कई नए मद भी कोविडकाल के बाद तैयार हुए, जिनमें ऐप संचालन फीस भी शामिल है। साथ ही, स्पोर्ट्स, रोबोटिक और कल्चर फीस भी हर साल छात्रों से बढ़ी हुई ली रही है। अन्य शैक्षणिक गतिविधियों (एक्स्ट्रा करिकुलम) के नाम पर भी कई स्कूलों की ओर से मनमानी फीस वसूलने के मामले सामने आए हैं।
कांग्रेस व्यापार प्रकोष्ठ ने पुस्तक विक्रेताओं के आंदोलन पर कहा कि हम ऐसे व्यापारियों का समर्थन नहीं करते, जो शिक्षा के नाम पर मनमानी कर रहे हैं। अध्यक्ष सुनील बांगा ने कहा कि ऐसे स्कूलों के साथ कारोबारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए, जो नियम नहीं मानते। सुरेश गुप्ता, मनोज कुमार, राहुल कुमार, राजेश मित्तल, प्रवीण बांगा, राम कपूर, अजीत सिंह, चमन लाल, अजीत सिंह, राजेंद्र सिंह नेगी, आमिर खान, राजेंद्र घई ने भी शिक्षा मंत्री व डीएम से कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
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