Ashadh is also a time of introspection for saints संतों के लिए भी आत्मचिंतन का समय है आषाढ़ का महीना, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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संतों के लिए भी आत्मचिंतन का समय है आषाढ़ का महीना

आषाढ़ मास ‘चातुर्मास’ की शुरुआत का प्रतीक है। यह समय तपस्वियों, संन्यासियों के लिए एक स्थान पर ठहरकर अनुशासन के साथ आत्मचिंतन और साधना का काल होता है। भारतीय वैदिक परंपरा में समय को केवल भौतिक नहीं,

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानTue, 17 June 2025 12:55 PM
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संतों के लिए भी आत्मचिंतन का समय है आषाढ़ का महीना

आषाढ़ मास ‘चातुर्मास’ की शुरुआत का प्रतीक है। यह समय तपस्वियों, संन्यासियों के लिए एक स्थान पर ठहरकर अनुशासन के साथ आत्मचिंतन और साधना का काल होता है। भारतीय वैदिक परंपरा में समय को केवल भौतिक नहीं, बल्कि दैवत्व का प्रतीक माना गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं- “कालः कलयतामहम्।”

इसी पृष्ठभूमि में ‘आषाढ़ मास’ का विशेष स्थान है। यह ग्रीष्म ऋतु का अंतिम चरण और वर्षा ऋतु की पूर्व सूचना लेकर आता है। यह मास न केवल ऋतुओं के संक्रमण का परिचायक है, बल्कि धार्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। आषाढ़ मास की गणना वैदिक पद्धति से की गई है। इसका नामकरण पूर्णिमा तिथि पर पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के संयोग से हुआ है। यह उत्तरायण का अंतिम महीना है, जिसके उपरांत सूर्य दक्षिणायन में प्रवेश करते हैं और ऋतु चक्र में वर्षा ऋतु का आरंभ होता है। सूर्य के इस दक्षिणगामी मार्ग के कारण उत्तर भारत में गर्मी कम होने लगती है। दक्षिण भारत में इसका प्रभाव बढ़ता है।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में समय की सबसे छोटी इकाई ‘त्रुटि’ से लेकर सबसे बड़ी इकाई ‘प्रलय’ तक की सटीक गणना दी गई है। पल, घटी, दंड, मुहूर्त, प्रहर, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष, युग, मन्वंतर, कल्प जैसी अवधारणाएं इसी ज्योतिषीय कालचक्र का हिस्सा हैं।

आषाढ़ मास की महत्ता केवल ज्योतिष तक सीमित नहीं है। यह मास गांवों एवं नगरों में वर्षा का पूर्वानुमान लगाने का समय भी होता है। आषाढ़ पूर्णिमा को ऊंचे स्थान पर ध्वज लगाकर हवा की दिशा से वर्षा की स्थिति का पूर्वानुमान लगाया जाता है। यदि वायु पूर्व या ईशान दिशा से चलती है, तो वर्षा शुभ मानी जाती है अन्यथा विपरीत दिशाएं वर्षा की कमी का संकेत देती हैं।

इस समय सात प्रकार के धान्यों को भूमि में बोकर यह परीक्षण भी किया जाता है कि कौन-सा अन्न सबसे पहले अंकुरित होता है- जो सबसे पहले अंकुरित होता है, वही फसल अधिक होती है।

महाकवि कालिदास का ‘मेघदूत’ ग्रंथ भी आषाढ़ मास की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है। इसमें आषाढ़ के पहले दिन घुमड़ते मेघों को देख यक्ष अपनी प्रेयसी के पास संदेश भेजने की कल्पना करता है।

धार्मिक रूप से आषाढ़ मास ‘चातुर्मास’ की शुरुआत का प्रतीक है। यह समय तपस्वियों, संन्यासियों के लिए एक स्थान पर ठहरकर अनुशासन के साथ आत्मचिंतन और साधना का काल होता है। इस चातुर्मास का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल एकादशी (हरिशयनी एकादशी) से होता है, जिसे ‘महा-एकादशी’ भी कहते हैं। इस अवधि में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थान एकादशी) को जागते हैं।

इस काल में विवाह, यज्ञादि जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार आषाढ़ मास का एक अन्य नाम ‘वरुणप्रघास’ भी है, जिसमें जौ अर्पण की परंपरा रही है। वर्षा के अधिदेवता वरुण को समर्पित यह यज्ञकाल भारतीय कृषि जीवन के अनुकूल रहा है। यह मास हमें प्रकृति की लयबद्धता, समय की दिव्यता और जीवन के चातुर्मासिक अनुशासन का बोध कराता है।

पंडित दिनेश शास्त्री

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