सफलता चाहिए तो पहले बनिए विनम्र, धीरे-धीरे मिल जाएगा हर समस्या का हल
किसी भी क्षेत्र में सफल बनने के लिए सबसे पहले खुद का विनम्र होना बहुत जरूरी है। इसकी मदद से आप जिंदगी में आ रही कई समस्याओं का हल भी चुटकी में निकाल पाएंगे।

विनम्रता व्यक्तित्व की वह विशेषता है, जो उसे महान व्यक्तियों की श्रेणी में प्रतिष्ठित करती है। विनम्रता मनुष्य की सुंदरता है। विकास का महामंत्र है विनम्रता। कहा जाता है ‘विनयं विद्या ददाति।’ विनम्रता से ही व्यक्ति ज्ञानार्जन कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति सफलता को प्राप्त करना चाहता है, लेकिन विनम्रता का अभाव है तो सफलता भी उसके लिए दूर है। जब व्यक्ति विकास की ओर अग्रसर होता है, तब उसमें कुछ विकृतियां भी आ जाती हैं। वही व्यक्ति विकृतियों से बच सकता है, जिसने विनम्रता का कवच धारण कर लिया हो।
विनम्रता अनेक प्रकार के अनर्थों से व्यक्ति को सुरक्षित रखती है। मनुष्य के भीतर अहंकार की वृत्ति, विकृति के रूप में होती है। अहंकार की अग्नि इतनी तीव्र होती है कि उसमें मनुष्य के सारे सद्गुण स्वाहा हो जाते हैं। अहंकार का परिणाम किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं होता है।
विनम्रता ऐसा गुण है, जिससे व्यक्ति अपने हर उद्देश्य को सिद्ध कर सकता है। विनम्रता में वह शक्ति है,जो आपकी हर समस्या को सुलझा सकती है। यह भी हो सकता है कि विनम्रता की स्थिति में समस्याओं को जन्म लेने का किसी भी प्रकार का अवसर ही नहीं मिले। संसार में विनम्र व्यक्ति ही श्रेष्ठ हो सकता है। जो विनम्र होता है, वही शांतिमय और सफल जीवन जी सकता है। एक ज्ञानी व्यक्ति कभी अहंकार नहीं करता। वह अंहकार से दूर रहता है।
एक कहावत है-‘अधजल गगरी छलकत जाए।’ आधा भरा हुआ घड़ा आवाज करता है। पूर्ण घड़ा आवाज नहीं करता। उसी प्रकार अज्ञानी थोड़ा-सा ज्ञान प्राप्त करने पर अपने आपको संसार का महाज्ञानी मानने लगता है। लेकिन एक ज्ञानी व्यक्ति संपूर्ण ज्ञान भी प्राप्त कर लेगा, तब भी अपने आपको अज्ञानी ही मानेगा। जो व्यक्ति विद्वान तथा सज्जन होते हैं, उनकी भाषा और व्यवहार में कभी अहंकार नहीं झलकता। उनकी विनम्रता ही उनकी पहचान होती है। गुणविहीन मूर्ख व्यक्ति ही अहंकार करते हैं।
यदि आप विकास का आसमान छूना चाहते हो, सफलता के शिखर पर स्थापित होना चाहते हो तो आपको विनम्रता रूपी शस्त्र को धारण करना होगा। विनम्रता वह संजीवनी बूटी है, जिससे आपका जीवन अमरता का आनंद प्राप्त कर सकता है। याद रखें फलदार वृक्ष सदा झुका हुआ रहता है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति झुका हुआ रहता है। सूखा, काष्ठ और मूर्ख मनुष्य टूट जाता है पर झुकता नहीं है। हमें फलदार वृक्ष बनकर समाज और राष्ट्र के लिए हर तरह से उपयोगी बनना है।विनम्र व्यक्ति ही समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी बन सकता है। विनम्रता एक आध्यात्मिक गुण है, जिससे व्यक्ति अपने शरीर ही नहीं, आत्मा को भी हर प्रकार से सुरक्षित रखता है।
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