Narada Jayanti 2025 I am Narad among Devarshis: Shri Krishna नारद जयंती स्पेशल: मैं देवर्षियों में नारद हूं : श्रीकृष्ण, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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नारद जयंती स्पेशल: मैं देवर्षियों में नारद हूं : श्रीकृष्ण

देवर्षि नारद भगवान के विशेष कृपापात्र और लीला-सहचर हैं। भगवान के अवतरण के समय ये उनकी लीला के लिए भूमिका तैयार करते हैं।

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तानTue, 13 May 2025 08:24 AM
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नारद जयंती स्पेशल: मैं देवर्षियों में नारद हूं : श्रीकृष्ण

Narada Jayanti: श्रीमद्भगवद् गीता के दशम अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं- अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:। -“मैं समस्त वृक्षों में पीपल (अश्वत्थ) हूं, और देवर्षियों में नारद हूं।” ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार नारद मुनि का जन्म ब्रह्माजी के कंठ से ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ। भक्ति मार्ग के प्रणेता नारदजी ने दक्ष प्रजापति के दस हजार पुत्रों को संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी। इससे क्रुद्ध होकर दक्ष प्रजापति ने नारद को शाप दिया कि वह दो घड़ी से ज्यादा कहीं टिक नहीं पाएंगे, इसलिए वे तीनों लोकों में हमेशा विचरण करते रहते हैं।

ब्रह्माजी भी दक्ष प्रजापति के पुत्रों को सृष्टिमार्ग पर अग्रसर करना चाहते थे, लेकिन नारदजी ने दक्ष प्रजापति के पुत्रों को संन्यास मार्ग की ओर प्रेरित किया। इससे क्रोधित होकर ब्रह्माजी ने भी नारद को गंधमादन पर्वत पर उपबर्हण नाम के गंधर्व के रूप में जन्म लेने का शाप दिया। उपबर्हण की साठ पत्नियां थीं। रूपवान होने के कारण वे हमेशा सुंदर स्त्रियों से घिरे रहते थे। उनके अशिष्ट आचरण से क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी ने उन्हें फिर से शूद्र योनि में जन्म लेने का शाप दिया। शाप के फलस्वरूप उनका दासी पुत्र के रूप में जन्म हुआ। वे अपनी माता के साथ साधु-संतों की सेवा करते थे, जिससे प्रसन्न होकर साधुओं उन्हें भगवद् भक्ति का उपदेश दिया। कुछ समय पश्चात उनकी मां की सर्प दंश से मृत्यु हो गई। एक दिन वह पीपल के वृक्ष के नीचे भक्ति में लीन थे, तभी उन्हें अपने हृदय में भगवान की झलक दिखाई दी और आकाशवाणी हुई- ‘हे पुत्र! अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद के रूप में जन्म लोगे।’

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देवर्षि नारद भगवान के विशेष कृपापात्र और लीला-सहचर हैं। जब-जब भगवान का अवतरण होता है, ये उनकी लीला के लिए भूमिका तैयार करते हैं। नारद मुनि के शाप के कारण ही राम को देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था। नारद की प्रेरणा से ही भृगु-कन्या लक्ष्मी का विवाह विष्णु के साथ हुआ। इन्होंने ही महादेव द्वारा जलंधर का वध करवाया। वाल्मीकि को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी। कंस के विनाश के लिए उसे आकाशवाणी का अर्थ समझाया। महर्षि वेदव्यास से महाभारत की रचना करवाई। प्रह्लाद और ध्रुव को उपदेश देकर महान भक्त बनाया। देवर्षि नारद वेदव्यास, वाल्मीकि और शुकदेव के गुरु भी हैं। नारद जयंती के दिन गंगा-स्नान करने से व्यक्ति के मान-सम्मान में वृद्धि होती है।