तारा जयंती 2025: ज्ञान और मोक्ष देने वाली देवी तारा
- देवी तारा तारकेश्वर रुद्र की शक्ति का रूप हैं। यह एकमात्र ऐसी देवी हैं, जिनकी हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध भी आराधना करते हैं। बौद्ध धर्म में मान्यता है कि बोधिसत्व के आंसुओं से कमल का फूल प्रकट हुआ था और इससे देवी तारा का जन्म हुआ।

दस महाविद्याओं में से एक देवी तारा को ज्ञान एवं मोक्ष देने वाली देवी माना गया है। महाकाल संहिता के अनुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी को देवी तारा प्रकट हुई थीं, इसलिए इसे तारा अष्टमी कहा जाता है। साधकों की देवी तारा की चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है इसलिए चैत्र शुक्ल नवमी को तारा रात्रि या तारा जयंती के रूप में मनाया जाता है। ये साधकों को उनकी साधना का शीघ्र फल देने वाली देवी हैं। देवी तारा तारकेश्वर रुद्र की शक्ति का रूप हैं। यह एकमात्र ऐसी देवी हैं, जिनकी हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध भी आराधना करते हैं। बौद्ध धर्म में मान्यता है कि बोधिसत्व के आंसुओं से कमल का फूल प्रकट हुआ था और इससे देवी तारा का जन्म हुआ।
पौराणिक कथा के अनुसार जब सती ने शिव से अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने की इच्छा व्यक्त की तो शिव ने वहां जाने से मना किया। यह सुनकर सती ने क्रोध में दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कीं। इस दृश्य को देखकर भगवान शिव घबरा गए। शिव ने सती से पूछा, ‘ये दसों देवियां कौन हैं?’ सती ने कहा, ‘ये मेरे दस रूप हैं। सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, नीलवर्णी तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बायें भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोडशी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।’ बाद में सती ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों का वध करने के लिए किया था। दस महाविद्याओं में से देवी तारा दूसरी महाविद्या हैं। प्राय: लोग देवी तारा के स्वरूप को मां काली मानकर आराधना करते हैं, जबकि काली और तारा दो अलग देवियां हैं। दोनों का स्वरूप एक है, लेकिन काली श्यामवर्णी और तारा नीलवर्णी देवी हैं। जीवों को तारने के कारण ही इन्हें देवी तारा कहा जाता है। देवी तारा के जन्म को लेकर पुराणों में अलग-अलग कथाएं हैं। एक कथा है कि जब सृष्टि में घोर अंधकार था, तब इस अंधकार में से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई, जो देवी तारा कहलाईं। ब्रह्मांड में उपस्थित सभी पिंडों की स्वामिनी देवी तारा ही हैं। प्रकाश के रूप में उत्पन्न होने के कारण इन्हें महातारा भी कहा जाता है। ये अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति हैं। ऐसी मान्यता है कि ह्यग्रीव असुर का वध करने के लिए ये प्रकट हुई थीं। एक अन्य कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान शिव को हलाहल विष की जलन से मुक्ति दिलाने के लिए मां तारा प्रकट हुई थीं।
शत्रुओं का दमन करने वाली और रूप-ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति के साथ भोग और मोक्ष भी प्रदान करने वाली हैं। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ है। यह शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहते हैं। महर्षि वसिष्ठ ने सबसे पहले यहां देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। देवी तारा के तीन स्वरूप हैं- उग्र तारा, एकजटा और नील सरस्वती। देवी तारा को महानीला या नील तारा भी कहा जाता है।