शाप से मुक्ति के लिए राक्षस बने और फिर भगवान विष्णु को पाया उनके भक्तों ने
- Lord Vishnu:भागवत पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा के मानस पुत्र सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार भगवान विष्णु के दर्शनों के लिए वैकुंठ पहुंचे। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र होने के कारण तीनों लोकों में उनकी गति अबाध थी।

भागवत पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा के मानस पुत्र सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार भगवान विष्णु के दर्शनों के लिए वैकुंठ पहुंचे। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र होने के कारण तीनों लोकों में उनकी गति अबाध थी। लेकिन भगवान विष्णु के सोलह पार्षदों में प्रमुख पार्षद जय-विजय ने उन्हें वैकुंठ में प्रवेश देने से इनकार कर दिया। इससे चारों ऋषि उनसे अप्रसन्न हो गए और क्रोध में आकर उन्हें राक्षस होने का शाप दे दिया। यह सुनते ही जय-विजय ने उनसे अपने अपराध की क्षमा मांगी और शाप से मुक्त करने की विनती की।
श्रीहरि को जब इस घटना का पता चला तो उन्होंने चारों ऋषि कुमारों से क्षमा मांगी और जय-विजय को उनकी शरण में जाने के लिए कहा। तब ऋषियों ने अपने शाप की तीव्रता कम करते हुए कहा कि तुम अगले सात जन्मों तक भगवान के भक्त बनोगे, तब तुम्हारी मुक्ति होगी। लेकिन जय-विजय को यह अवधि लंबी लगी। उन्होंने इसे और छोटा करने के लिए कहा। तब सनक आदि ऋषि कुमारों ने कहा तुम तीन जन्मों तक राक्षस योनि में भगवान के परम शत्रु होगे, इसके बाद तुम्हें मुक्ति मिलेगी। जय-विजय ने अपने प्रभु का शत्रु बनना स्वीकार किया क्योंकि वे लंबे काल तक उनका बिछोह नहीं सह सकते थे। उनकी इच्छा जानकर भगवान बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तीनों जन्म में, मैं स्वयं तुम्हारा वध करके उद्धार करूंगा।
सतयुग में अपने पहले जन्म में महर्षि कश्यप और दक्ष पुत्री दिति के पुत्रों के रूप में जय हिरण्यकश्यप और विजय उसके छोटे भाई हिरण्याक्ष के रूप में जन्मे। हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर और हिरण्यकश्यप का वध उन्होंने नृसिंह अवतार लेकर किया। त्रेता में अपने दूसरे जन्म में महर्षि विश्रवा और राक्षस कन्या कैकसी के पुत्रों के रूप में जय रावण और विजय उसके छोटे भाई कुंभकर्ण के रूप में जन्मे। दोनों का वध श्रीहरि ने राम अवतार में किया। द्वापर में अपने तीसरे जन्म में जय महाराज दमघोष और रानी श्रुतश्रवा के पुत्र के रूप में जन्मे, जिनका नाम शिशुपाल था। विजय राजा वृध्वमण एवं रानी श्रुतिदेवी के पुत्र के रूप में जन्मे, जिसका नाम दंतवक्र पड़ा। दोनों का वध भगवान विष्णु ने अपने नौवें अवतार कृष्ण के रूप में किया। इस प्रकार श्रीहरि ने अपने पार्षद जय-विजय को ऋषि कुमाराें के शाप से मुक्ति दिलाई।
अश्वनी कुमार
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