Vat Savitri Vrat : वट सावित्री व्रत कब रखा जाएगा? नोट कर लें डेट, पूजा-विधि और सामग्री की लिस्ट
- Vat Savitri Vrat : वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। वट सावित्री महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना के लिए रखती है। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है।

Vat Savitri Vrat : वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। वट सावित्री महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना के लिए रखती है। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। सबसे पहले वट सावित्री का व्रत राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था। तभी से वट सावित्री व्रत महिलाएं अपने पति के मंगल कामना के लिए रखती हैं। इस साल वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि यानी सोमवार 26 मई को रखा जाएगा। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं भूखी प्यासी रहकर व्रत करती हैं। साथ ही वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इसे शनि जयंती के नाम से भी कहा जाता है। साथ ही इस व्रत को करने से शनि के नकारात्मक प्रभाव में भी कमी आती है। बता दें कि 26 मई को अमावस्या तिथि का आरंभ दोपहर में 12 बजकर 12 मिनट पर होगा और 27 तारीख को सुबह में 8 बजकर 32 मिनट पर अमावस्या तिथि समाप्त होगी। शास्त्रीय विधान के अनुसार अमावस्या तिथि दोपहर के समय होने पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इसलिए यह व्रत 26 मई को किया जाएगा।
पूजा-विधि : सबसे पहले पूजा के दिन टोकरी में रेत भरकर ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित करें तथा वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। दूसरी टोकरी में सत्यवान सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। दोनों टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे रखें। सबसे पहले ब्रह्मा-सावित्री की पूजा करें फिर सत्यवान और सावित्री की पूजा करें। इसके बाद वट वृक्ष को पानी दें। जल, फूल, मोली, रोली, कच्चा सूत, चना, गुड़ तथा धूप-दीप से पूजा करें। जल चढ़ाकर वृक्ष के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन बार परिक्रमा करें। वट के पत्तों की माला पहन कर कथा का श्रवण करें।
वट सावित्रि पूजा सामग्री की लिस्ट- सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, बांस का पंखा, लाल कलावा, धूप, दीप, घी, फल, पुष्प, रोली, सुहाग का सामान, पूडियां, बरगद का फल, जल से भरा कलश।
वट वृक्ष की पूजा का धार्मिक महत्व- शास्त्रों के अनुसार, बरगद के वृक्ष के तने में भगवान विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव का वास है। इस वृक्ष में कई सारी शाखाएं नीचे की ओर रहती हैं, जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इसलिए मान्यता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। संतान प्राप्ति के लिए इस वृक्ष की पूजा करना लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन वट वृक्ष की छांव में देवी सावित्री ने अपने पति की पुन: जीवित किया था। इस दिन से ही वट वृक्ष की पूजा की जाने लगी। हिंदू धर्म में जिस तरह से पीपल के वृक्ष को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। उसी तरह बरगद के पेड़ को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। इस स्थान को प्रयाग में ऋषभदेव तपस्थली नाम से भी जाना जाता है।