तरैया पंचायत के बारा-पछगछिया वार्ड 9 में नल-जल योजना दो वर्षों से ठप: महादलित समुदाय पीने के पानी को तरसा
बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- पीके विश्वकर्मा बेलहर (बांका)। निज प्रतिनिधि बांका जिले के बेलहर प्रखंड अंतर्गत तरैया पंचायत के बारा-प

बेलहर (बांका), निज प्रतिनिधि। बांका जिले के बेलहर प्रखंड अंतर्गत तरैया पंचायत के बारा-पछगछिया वार्ड नंबर 9 में विगत दो वर्षों से नल-जल योजना पूरी तरह से ठप पड़ी हुई है। लगभग 1200 की आबादी वाले इस वार्ड में महादलित समुदाय की बहुलता है, और यह क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित भी है। विडंबना यह है कि सरकार की महत्वाकांक्षी “मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना” के अंतर्गत शुरू की गई नल-जल योजना यहां के निवासियों के लिए लाभकारी सिद्ध होने के बजाय असुविधा का कारण बन गई है। बारा-पछगछिया वार्ड संख्या 9 की स्थिति सरकार और प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि अगर योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही की जाएगी, तो उसका असर सबसे कमजोर तबके पर पड़ेगा।
महादलित समुदाय पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है, और यदि उसे बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलेंगी, तो समावेशी विकास का सपना अधूरा रह जाएगा। जरूरत है प्रशासनिक इच्छाशक्ति की, पारदर्शी व्यवस्था की और जनता की आवाज़ को गंभीरता से लेने की। वरना यह कहानी किसी एक गांव तक सीमित नहीं रहेगी, यह एक राज्यव्यापी विफलता बन जाएगी। बारा और पछगछिया टोला को लेकर बने इस वार्ड में नल-जल योजना को शुरू हुए लगभग पांच वर्ष हो चुके हैं। शुरुआत में ही योजना को लेकर ढिलाई देखने को मिली। पाइपलाइन बिछाने का कार्य अधूरा रह गया था। बाद में जब काम पूरा हुआ, तब भी योजना सुचारु रूप से नहीं चल पाई। लगभग दो साल पहले पानी टंकी की मोटर बंद हो गई और तब से लेकर अब तक इस वार्ड के लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। वर्तमान में टंकी पूरी तरह से निष्क्रिय है। इससे जुड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर-पाइपलाइन, नल की टोंटियां, मोटर - सभी जर्जर हो चुके हैं। गर्मियों में जब तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच जाता है, तब गांव की स्थिति और भी भयावह हो जाती है। लोग दूर-दूर तक कुएं और चापाकल से पानी लाने को विवश हैं। कई चापाकलों का जलस्तर नीचे चला गया है और पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से प्राकृतिक जलस्रोत भी सूख चुके हैं। इस वार्ड में अधिकतर महादलित परिवार रहते हैं, जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं। उनके पास निजी चापाकल या कुआं नहीं है। वे सरकारी योजनाओं पर ही निर्भर रहते हैं। लेकिन जब सरकारी योजनाएं ही ठप हो जाएं, तो इन परिवारों के सामने जीवन जीने की बुनियादी जरूरतें भी संकट में आ जाती हैं। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वार्ड सदस्य रामोतार रजक ने बताया कि योजना बंद होने के बाद स्थानीय स्तर पर कई बार शिकायत की गई, लेकिन कोई हल नहीं निकला। जब जिला स्तर पर प्रयास किया गया, तो बांका के जिलाधिकारी को व्हाट्सएप पर आवेदन भेजा गया। दो बार आवेदन भेजने के बावजूद कोई जवाब या कार्रवाई नहीं हुई। लोगों का कहना है कि अब शिकायत करें तो कहां करें? हर बार एक ही जवाब मिलता है - “देखते हैं” या “ठेकेदार को भेजते हैं”। ग्रामीणों ने बताया कि पानी टंकी की मोटर को बिजली नहीं मिलने की वजह से योजना पूरी तरह से ठप हो गई है। बिजली विभाग को भी इस समस्या की जानकारी दी गई थी। जेई को कई बार सूचित किया गया, लेकिन विभाग की ओर से कोई पहल नहीं की गई। बताया गया कि बिजली पोल से पानी टंकी तक जाने वाला तार जल गया है। इस वजह से मोटर में करंट नहीं पहुंचता और पानी सप्लाई नहीं हो पाती। एक दो बार ठेकेदार गांव आया भी, लेकिन उसने सिर्फ आश्वासन देकर मामला टाल दिया। अब स्थिति यह है कि गांव के लोग खुद अपने स्तर से पानी की व्यवस्था कर रहे हैं - वह भी इस भीषण गर्मी में। सरकार का दावा है कि हर घर तक नल का जल पहुंचाना उनकी प्राथमिकता है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। विभागीय अधिकारियों और अभियंताओं की लापरवाही से यह योजना दम तोड़ चुकी है। योजना को सुचारु रखने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों पर थी, वे आज शिकायत सुनने को भी तैयार नहीं हैं। इस योजना में राज्य सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए हैं। लेकिन अगर समय पर निरीक्षण और देखभाल नहीं की जाए, तो यह पैसा पानी की तरह बह जाता है। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ है। दो साल से टंकी बंद है, मोटर खराब है, पाइपलाइन जगह-जगह से फटी हुई है और नल की टोंटियां टूट चुकी हैं। फिर भी विभाग के अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं।बारा-पछगछिया के ग्रामीण आज दोहरे संकट से गुजर रहे हैं - एक ओर भीषण गर्मी, दूसरी ओर स्वच्छ पीने के पानी का अभाव। बुजुर्ग महिलाएं सिर पर बाल्टी लेकर एक किलोमीटर दूर कुएं से पानी भरकर लाती हैं। बच्चे स्कूल जाने के बदले घर पर पानी लाने में माता-पिता की मदद करते हैं। वहीं, सरकार के वादे सिर्फ कागजों में रह गए हैं। सात निश्चय योजना के तहत हर घर नल से जल देने का जो सपना दिखाया गया था, वह इस गांव में आज सपना ही बनकर रह गया है। गांव वालों का कहना है कि नल-जल योजना की स्थिति को लेकर जब स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों से बात की जाती है, तो वे भी कोई ठोस जवाब नहीं देते। सिर्फ आश्वासन मिलते हैं - कार्रवाई होगी, योजना जल्द चालू कर दी जाएगी। लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं दिखता। कुछ ग्रामीणों ने यहां तक कहा कि योजना को चालू रखने के लिए जो मासिक राशि ली जाती थी, वह भी लोगों से वसूली गई थी, लेकिन अब जब सेवा नहीं मिल रही, तो किसी को जवाबदेह भी नहीं ठहराया जा रहा। बारा-पछगछिया जैसे वार्डों में स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा का न होना सीधे तौर पर संविधान में दिए गए जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। यह सिर्फ एक वार्ड की कहानी नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों गांवों की भी हकीकत है जहां सरकारी योजनाएं सिर्फ उद्घाटन के दिन तक ही जिंदा रहती हैं। ग्राम पंचायत तरैया के मुखिया बलराम यादव ने कहा कि पछगछिया वार्ड 9 में पानी की समस्या है जिसपर लगातार संज्ञान लिया जा रहा है। इस संबंध में वरीय अधिकारियों को भी सूचना दी गई है। संबंधित विभाग के अधिकारी और अभियंता से बात कर जलापूर्ति योजना यथा शीघ्र चालू कराने का प्रयास किया जाएगा।
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