फसल अवशेष प्रबंधन का किसान सलाहकार लेंगे प्रशिक्षण
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक 11 और 12 अप्रैल को भभुआ में 70-80 किसान सलाहकारों को फसल अवशेष प्रबंधन पर प्रशिक्षण देंगे। यह प्रशिक्षण किसानों को पराली जलाने के नुकसान और सही फसल प्रबंधन विधियों के...

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक 11 व 12 अप्रैल को भभुआ में देंगे ट्रेनिंग केविके के उपकेंद्र भभुआ में 70-80 किसान सलाहकार किए जाएंगे प्रशिक्षित (पेज चार) भभुआ, कार्यालय संवाददाता। फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जिला प्रशासन किसान सलाहकारों को प्रशिक्षण देगा। कैमूर के चयनित 70-80 किसान सलाहकारों को कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक प्रशिक्षित करेंगे। कृषि विज्ञान केंद्र के उपकेंद्र भभुआ में 11 व 12 अप्रैल को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इन्हें पराली जलाने से होने वाले नुकसान व नहीं जलाने से होनेवाले लाभ तथा फसल प्रबंधन के सही विधि के बारे में जानकारी दी जाएगी। प्रशिक्षण लेने के बाद किसान सलाहकार किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में बताएंगे। यह प्रशिक्षण फसल विशेषज्ञ कृषि वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार सिंह व अन्य वैज्ञानिकों द्वारा दी जाएगी। जिला प्रशासन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों को सुपर सीडर, हैप्पी सीडर और बायोडीग्रेडेबल समाधान की मदद से निस्तारण किया जाना है। इससे जहां भूमि की उर्वरा क्षमता में वृद्धि होगी, वहीं पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा। साथ ही फसल की उपज ज्यादा होगी। जिला प्रशासन ने स्ट्रा रीपर के माध्यम से गेहूं की कटाई कर मवेशियों के लिए चारा तैयार करने की बात किसानों से कही है। जिला प्रशासन ने मोहनियां के बघिनी के किसान का उदाहरण भी दिया है। फसल अवशेष प्रबंधन का मतलब भी समझाया गया है। बताया गया है कि फसल कटाई के बाद खेत में बचे पौधों के तने, पत्ते और जड़ें का उचित तरीके से प्रबंधन करना, ताकि मिट्टी की उर्वरता और स्वास्थ्य में सुधार हो और पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके। फसल अवशेष को मिट्टी में मिलाने से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता और जल धारण क्षमता में सुधार होता है। ऐसे कम कर सकते हैं कृषि समस्या कृषि वैज्ञानिक अमित कुमार सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों को खेत में बिछाकर मल्चिंग की जा सकती है, जो मिट्टी के कटाव को रोकती है, नमी को बनाए रखती है और खरपतवारों को नियंत्रित करती है। विभिन्न प्रकार की फसलों को बारी-बारी से उगाने से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती और कीटों एवं बीमारियों की समस्या कम होती है। बिना जुताई के बीज बोने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है। फोटो- 08 अप्रैल भभुआ- 6 कैप्शन- मोहनियां प्रखंड के बघिनी गांव में स्ट्रा रीपर के माध्यम से गेहूं फसल की कटनी करता चालक।
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