रक्षा मंत्री रहे क्षेत्रीय सांसद की अगुवाई में भारत ने जीता था युद्ध
1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। कैमूर जिले के लोग युद्ध के दौरान एकत्रित धन और सामान के माध्यम से सरकार की सहायता कर रहे थे। वृद्ध जनों ने बताया कि...

वर्ष 1971 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों ने भारत के समक्ष किया था आत्मसमर्पण शाम के वक्त एक जगह इकट्ठा होकर रेडियो से सुनते थे युद्ध का समाचार बोले वृद्धजन, तब न किसी के पास टीवी था और न एंड्रावयड मोबाइल (पेज चार) भभुआ, कार्यालय संवाददाता। रक्षा मंत्री रहे स्थानीय सांसद बाबू जगजीवन राम की अगुवाई में वर्ष 1971 में भारक-पाक के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें भारत की जीत हुई थी। तब कैमूर के लोगों को दो तरह की खुशी मिली थी। पहली 13 दिन के ही युद्ध में भारत की जीत और पाक सैनिकों का आत्मसर्पण तथा दूसरी खुशी स्थानीय सांसद द्वारा कौशलता के साथ युद्ध का नेतृत्व करने की।
कैमूर जिले के लोगों ने इस दौरान आपस में धन इकट्ठा कर सरकार को भिजवाया था। यह बातें जिले के कई वृद्धजनों ने बतायी। भगवानपुर के 80 वर्षीय सरतेज तिवारी ने बताया कि तब हमलोग गांवों में भ्रमण कर घर-घर से अनाज, पैसा, आभूषण इकट्ठा करते थे। जिससे जो बन पाता था वह मदद करते थे। कवि 87 वर्षीय सिपाही पांडेय मनमौजी ने बताया कि उनकी टीम आमजनों को जागरूक करने के साथ आर्थिक सहायता लेकर सरकार के खाता में भिजवाते थे। रामपुर के 82 वर्षीय अंबिका गोंड ने कहा कि भारत की जीत पर हर ओर खुशी मन रही थी। वीरचंद दुबे ने कहा कि भारत-पाक युद्ध के कारण ही बांग्लादेश नया देश बना। तीन दिसंबर से 16 दिसंबर तक युद्ध चला। पाक के 90-93 हजार सैनिकों, पाकिस्तान के वफादारों व युद्धबंदी नागरिकों ने ढाका में आत्मसमर्पण किया था। ब्लैकआउट और सायरन के बीच लोग रेडियो से चिपके रहते थे। तब ना तो इंटरनेट था और ना टेलीविजन् 1. जागरूकता सम्मेलन में दान किए थे धन भभुआ शहर के वार्ड 16 निवासी 86 वर्षीय रमजान अंसारी बताते हैं कि भारत-पाक युद्ध के दौरान पथ निर्माण मंत्री नरसिंग बैठा थे। युद्ध को ले भभुआ के नगरपालिका मैदान में आयोजित जागरूकता सम्मेलन में भाग लेने आए थे। तब मैंने 5100 रुपया दान दिया था। जहिर खां, बसीर खां सहित अन्य लोगों ने भी दान दिया। चीन-भारत की लड़ाई में हमलोग सक्रिय थे। स्वास्थ्य व कारा मंत्री रहे अब्दुल क्यूम अंसारी ने भभुआ ने बैठक की थी। अधिवक्ता जाहिर खां के यहां भोज रखा गया। यहीं पर सभी लोगों ने सामर्थ्य के अनुसार दान दिया। मैंने भी आभूषण दान दिया था। दान में मिली सारी चीजें एसडीओ अब्दुला साहब को सौंप दी गई। फोटो- रमजान अंसारी, समाजसेवी, भभुआ 2. कविका सुना जागरूक कर बटोरते थे धन भगवानपुर के 87 वर्षीय भोजपुर कवि सिपाही पांडेय मनमौजी बताते हैं कि उनकी टीम भगवानपुर से बनारस तक के लोगों के बीच जाती और कविता सुनाकर उन्हें जागरूक करती। उनकी बातों से प्रभावित लोग अनाज, पैसा, आभूषण देते थे। पूरे दिन धन इकट्ठा कर शाम में सरकारी महकमा के पास जमा कर देते थे। टीम की अगुवाई बनारस में चंद्रशेखर मिश्र, श्रीकृष्ण तिवारी, शण बनारसी, अभयनाथ तिवारी और भभुआ में सिपाही पांडेय करते थे। इनकी कविताएं रेडियो से भी प्रसारित की जा रही थीं। उन्होंने बताया कि उनके घर भी रेडियो था। ग्रामीण दलान में बैठकर युद्ध को ले प्रसारित खबर सुनते थे। लोगों में गजब का उत्साह दिख रहा था। फोटो- सिपाही पांडेय मनमौजी, कवि, भगवानपुर 3. जीत पर घरों में पका था पुआ-पकवान रामपुर प्रखंड के राजा के अकोढ़ी निवासी 79 वर्षीय शत्रुध्न सिंह बताते हैं कि जब भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और रक्षा मंत्री जगजीवन राम थे। उस समय सरकार ने मुक्त वाहिनी सेना का गठन किया था। सामर्थ्य के अनुसार हमलोग आर्थिक मदद करते थे। गांवों में युद्ध की चर्चा हो रही थी। जगह-जगह समूह में ग्रामीण रेडियो सुनते थे। तब यह बताया गया था कि अगर बम गिरता है तो जो जहां हैं वहीं जमीन पर लेट जाइएगा। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। भारत की जीत पर खुशी हुई। इस खुशी में घरों में पुआ-पकवान बना। खेत-खलिहान तक में इस जीत की खुशी मनी। फोटो- शत्रुध्न सिंह, किसान, अकोढ़ी
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