बोले कटिहार: सड़कें हों दुरुस्त, जलनिकासी की हो व्यवस्था तो सुधरे हालत
कटिहार शहर के सफाईकर्मी खुद बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं। अम्बेडकर कॉलोनी में रहने वाले सफाईकर्मियों को टूटी सड़कें, बजबजाते नाले और गंदगी का सामना करना पड़ता है। उन्हें सुरक्षित घर और साफ मोहल्ला...
स्वच्छता कर्मियों की परेशानी
प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप
कटिहार शहर को रोज़ चमकाने वाले सफाईकर्मी खुद बदहाल ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। अम्बेडकर कॉलोनी और आसपास के मोहल्लों में रहने वाले हज़ारों सफाईकर्मी ऐसे जर्जर मकानों में रहते हैं, जो कभी भी जान ले सकते हैं। टूटी सड़कें, बजबजाते नाले, गंदगी और पीने के पानी का संकट उनकी रोज़मर्रा की हकीकत है। जिन हाथों से शहर की सफाई होती है, उन्हीं हाथों के आशियाने पर व्यवस्था ने आंखें मूंद ली हैं। जिनके दम पर शहर सांस लेता है, वही खुद घुटन में जी रहे हैं। इन्हें सिर्फ़ सुविधा नहीं, इंसाफ़ और सम्मान भी चाहिए।
कटिहार शहर की सुबह जब आंखें खोलती है, तो सड़कों पर झाड़ू लगाते, नाले से कचरा निकालते सफाईकर्मी सबसे पहले दिखाई देते हैं। वे अपने काम में जुटे होते हैं, ताकि शहर स्वच्छ दिखे, लोग सुख से जिएं। लेकिन इन्हीं सफाई कर्मियों का अपना जीवन नारकीय है। शहर के पुराने मोहल्लों में शामिल अम्बेडकर कॉलोनी इसकी सबसे बड़ी मिसाल है।
यह मोहल्ला सफाईकर्मियों और मजदूर तबके के लोगों का है। लगभग 10 हजार लोग यहां रहते हैं, जिनमें अधिकांश नगर निगम के कर्मचारी हैं। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, जिस मोहल्ले से पूरे शहर की सफाई की शुरुआत होती है, वहीं सबसे ज्यादा गंदगी, टूटी सड़कें, खुले नाले और जर्जर मकान मिलते हैं।
सुबह हम शहर का कचरा उठाते हैं, शाम को उसी से होकर अपने घर लौटते हैं यह कहना है मोहल्ले के निवासी पप्पू मल्लिक का। अम्बेडकर कॉलोनी की सड़कें वर्षों से जर्जर हैं। नाले टूटे हुए हैं, कई जगह तो स्लैब ही नहीं है। बरसात में पानी घरों में घुस जाता है। न तो नियमित सफाई होती है, न ही कचरा उठाव। सबसे दर्दनाक स्थिति उन मकानों की है जो नगर निगम ने दशकों पहले बनवाए थे। आज वे इतने जर्जर हो चुके हैं कि कभी भी गिर सकते हैं। हमारा जीवन हर पल खतरे में है, लेकिन जाएं तो जाएं कहां, यह सवाल यहां रहने वाली गीता देवी की आंखों में साफ झलकता है।
निगम इसे कर दिया है परित्यक्त घोषित
नगर निगम इन्हें परित्यक्त घोषित कर चुका है। इनमें से कई बच्चे इन्हीं क्वार्टर्स में जन्मे, बड़े हुए। उन्हें अपनी छत छोड़ने का मतलब है, अपनी पहचान गंवाना। बालकनी से गिरते हैं बच्चे, छत से प्लास्टर टूटकर गिरता है, लेकिन कोई पूछने नहीं आता।
पेयजल की है भारी समस्या
अम्बेडकर कॉलोनी समेत जिले के स्लम एरिया में पेयजल की भी भारी समस्या है। पानी के लिए लोगों को दूसरे मोहल्लों तक जाना पड़ता है। महिलाएं घंटों कतार में खड़ी रहती हैं। यहां के लोगों का कहना है कि
हम शहर के लिए काम करते हैं, क्या हमारा हक नहीं कि हमें भी सुरक्षित घर और साफ मोहल्ला मिले। मोहल्ले के चारों ओर अतिक्रमण है। असामाजिक तत्वों का जमावड़ा आम बात हो गई है। मोहल्ला शाम होते ही डर का ठिकाना बन जाता है।
यह कहानी सिर्फ बदहाली की नहीं, सम्मान की मांग की भी है।
कटिहार नगर निगम और जिला प्रशासन से अब यह उम्मीद की जाती है कि जो लोग शहर को साफ रखने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें भी एक स्वच्छ, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन मिले।
अम्बेडकर कॉलोनी केवल एक मोहल्ला नहीं, यह उन हजारों मेहनतकश हाथों की बस्ती है, जो शहर के चेहरे को संवारते हैं — अब वक्त है कि उनका चेहरा भी मुस्कराए।
10 हजार से अधिक लोग अम्बेडकर कॉलोनी और आसपास के इलाके में रहते हैं
350 अधिकृत क्वार्टर में अब 1500 से अधिक परिवार रहते
40 साल पुराने भवनों में लोग आज भी जान जोखिम में डालकर रह रहे हैं
शिकायतें:
1. जर्जर मकानों में रहना पड़ रहा है – पुराने सरकारी क्वार्टर की हालत खस्ताहाल है, छत से प्लास्टर गिरता रहता है, जान का खतरा बना रहता है।
2. पेयजल की भारी किल्लत है – मोहल्ले में नल की सुविधा अधूरी है, गर्मी में पानी भरने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
3. सड़क और नाले की बदहाली – गलियों में न सड़क है, न नाले की सफाई होती है, गंदा पानी सड़कों पर फैलता है।
4. कचरा उठाव की नियमित व्यवस्था नहीं – विडंबना है कि सफाईकर्मी के मोहल्ले से ही समय पर कचरा नहीं उठाया जाता।
5. असामाजिक तत्वों का अड्डा – मोहल्ले के आसपास शराबियों और जुआरियों का जमावड़ा रहता है, जिससे महिलाएं और बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं।
सुझाव:
1. पुराने क्वार्टर का नवनिर्माण हो या पुनर्वास योजना बने – जर्जर भवनों को गिराकर नए मकान बनाए जाएं या लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पुनर्वास मिले।
2. मोहल्ले में पेयजल टंकी और समुचित जलापूर्ति की व्यवस्था हो – हर घर तक पाइपलाइन से स्वच्छ जल पहुंचे।
3. सड़कों की मरम्मत और नाले का पुनर्निर्माण कराया जाए – जलनिकासी की बेहतर व्यवस्था हो ताकि गंदगी न फैले।
4. साप्ताहिक कचरा उठाव और सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित हो – निगम की टीम मोहल्ले में नियमित सफाई करे।
5. मोहल्ले में सीसीटीवी और पुलिस गश्ती की व्यवस्था हो – असामाजिक तत्वों पर रोक लगे ताकि महिलाओं-बच्चों में सुरक्षा का भरोसा बने।
इनकी भी सुनें
हम सफाईकर्मी दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन जहां हम रहते हैं वहां की हालत सबसे खराब है। न नाला साफ होता है, न कचरा उठता है। बच्चे बीमार पड़ते हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। सरकार और नगर निगम को खुद आकर देखना चाहिए कि हम किन हालात में जी रहे हैं।
विनोद मल्लिक
हमारे मोहल्ले में ना तो नियमित सफाई होती है और ना ही पीने का साफ पानी मिलता है। नाले खुले हैं और सड़कों पर गंदा पानी बहता है। बरसात में हालत और बदतर हो जाती है। जो लोग पूरे शहर को साफ रखते हैं, उनके घरों की ये स्थिति शर्मनाक है।
राजन बास्फोर
हम बूढ़े हो चले हैं, पर अब भी जर्जर मकान में जान हथेली पर रखकर रह रहे हैं। मकान की छत गिरती रहती है, दीवारें टूट रही हैं। हमें यहां से हटाने का नोटिस तो दिया गया, लेकिन रहने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई। कहां जाएं हम?
जगदीश बास्फोर
हम महिलाओं के लिए यहां रहना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है। रात को अंधेरा रहता है, रास्तों में गंदगी फैली होती है। छोटी बच्चियों को स्कूल भेजना भी डरावना लगता है। नगर निगम ने कई बार आश्वासन दिया, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।
उषा देवी
हमारे मोहल्ले में हैंडपंप भी खराब हैं और पाइपलाइन भी नहीं बिछी है। पानी के लिए लोगों को दूर-दूर भटकना पड़ता है। गर्मी में तो हालात और भी खराब हो जाते हैं। इतनी बड़ी आबादी के लिए एक भी स्थायी जलस्रोत नहीं है। क्या हम इंसान नहीं हैं?
लीला देवी
बरसात आते ही घरों में गंदा नाला भर जाता है। बच्चे तक कीचड़ में गिर जाते हैं। कई बार शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। हम लोग दिन भर शहर को चमकाते हैं, लेकिन अपने घर की सफाई के लिए किसी की नजर नहीं जाती।
पूनम देवी
हमारे इलाके में बिजली की भी समस्या रहती है। जर्जर तार और पोल किसी भी समय हादसा करवा सकते हैं। बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। इतने सालों से यहां रह रहे हैं लेकिन सुविधाएं नहीं बढ़ीं, सिर्फ समस्याएं बढ़ीं।
पप्पू मल्लिक
मुझे अब डर लगने लगा है कि कहीं कोई बड़ी बीमारी न फैल जाए। हर तरफ गंदगी और दुर्गंध है। लोग बीमार हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग भी कभी झांकने नहीं आता। सफाईकर्मी होने के बावजूद हमें ही सबसे बदतर हालत में रहना पड़ रहा है।
बेबी देवी
हमारे बच्चे नालियों के ऊपर से स्कूल जाते हैं। कई बार बच्चे फिसल कर गिर चुके हैं। मोहल्ले में ना ढंग की सड़क है, ना सुरक्षा व्यवस्था। ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम जिस शहर को साफ रखते हैं, उसी शहर में सबसे गंदे माहौल में रहते हैं।
जानकी देवी
मकान की बालकनी से कई बार बच्चे गिर चुके हैं। छज्जे कमजोर हो चुके हैं। हमने कितनी बार मांग की कि सरकार हमें दूसरी जगह शिफ्ट करे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। बच्चों की जान को खतरा है, लेकिन कोई चिंता नहीं कर रहा।
सावित्री देवी
महिलाओं को नाली पार कर के पानी भरने जाना पड़ता है। रास्ते में कीचड़ और बदबू फैली रहती है। कपड़े खराब हो जाते हैं। क्या यही हमारे साथ न्याय है? हम भी चाहते हैं कि साफ-सुथरे माहौल में रहें, लेकिन कोई सुध नहीं ले रहा।
आरती देवी
मैंने कई बार नगर निगम में जाकर अपनी समस्या बताई, लेकिन अधिकारी सुनने को तैयार नहीं होते। हम लोग कितनी बार हड़ताल पर गए, लेकिन हर बार केवल वादा मिला। इस बार कुछ ठोस नहीं हुआ तो हम सब मिलकर आंदोलन करेंगे।
शानो देवी
हमारे मोहल्ले में कभी कोई जनप्रतिनिधि झांकने नहीं आता। वोट लेने के समय सभी आते हैं, लेकिन बाद में भूल जाते हैं। हमें भी बुनियादी सुविधाएं चाहिए। बच्चों के लिए खेल का मैदान तो छोड़िए, साफ गली तक नहीं है।
रीना देवी
गर्मी में रहना मुश्किल हो जाता है। मकान के अंदर इतनी गर्मी होती है कि बीमार पड़ जाते हैं। बिजली गुल रहती है और नालों की बदबू से जीना मुश्किल हो जाता है। हम गरीब जरूर हैं, लेकिन जीने का हक तो हमारा भी है।
सुनीता देवी
हम लोगों को इंसान समझा ही नहीं जाता। हर बार कहा जाता है कि योजना आ रही है, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। बच्चे बीमार हो रहे हैं, बूढ़े दम घोंट रहे हैं, और सरकार कागजों पर योजना चला रही है।
मुन्नी देवी
नाले का गंदा पानी हमारे आंगन में भर जाता है। घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। हमारी कॉलोनी को कोई देखने वाला नहीं है। हमने कई बार अपनी समस्याएं सोशल मीडिया पर डालीं, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।
गीता देवी
जिम्मेदार
हमारे सफाईकर्मी शहर को स्वच्छ रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। अम्बेडकर कॉलोनी की स्थिति की जानकारी हमें मिली है। वहां की सड़कों, नालों और पेयजल की समस्याओं को प्राथमिकता पर लिया गया है। जर्जर भवनों के पुनर्वास हेतु प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है। जल्द ही नियमित कचरा उठाव और सफाई की व्यवस्था सुदृढ़ की जाएगी। हम प्रयासरत हैं कि सफाईकर्मियों को भी सम्मानजनक और सुरक्षित वातावरण मिले।
संतोष कुमार, नगर आयुक्त, कटिहार
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