विधि लिपिक कल्याण को बने कानून तो सुरक्षित होगा भविष्य
जमुई सिविल कोर्ट के विधि लिपिक बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे हैं। उन्हें कोर्ट में बैठने की जगह नहीं है और उनका भविष्य चिंताजनक है। वे सरकार से अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम लागू करने की...

प्रस्तुति, मनोज कुमार तिवारी जमुई सिविल कोर्ट के विधि लिपिक बैठने के लिए जगह समेत कई अन्य बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं। सभी तरह के मुकदमे में अधिवक्ताओं के साथ न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग करने वाले अधिवक्ता मुंशी अपने भविष्य और बुढ़ापे को लेकर चिंतित हैं। कोर्ट परिसर में जिला बार एसोसिएशन का नया भवन बन रहा है। विधि लिपिकों को मौखिक आश्वासन तो मिला है कि उन्हें इसमें बैठने की जगह मिलेगी, लेकिन वे इसे लेकर संशय में हैं। उनकी मांग है कि सरकार अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम बनाकर इसे लागू करे तो उनका भी भविष्य सुरक्षित होगा। न्यायालय में वकीलों के साथ काम करने वाले मुंशी कानूनी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
वे वकील के सहायक के तौर पर काम करते हैं जो अदालत में कामकाज को सुचारू रूप से चलाने का काम करते हैं। मुंशी कानूनी प्रक्रिया की रीढ़ कहलाते हैं जो वकीलों के लिए दस्तावेज तैयार करने, अदालत में दाखिल करने, मामलों की जानकारी रखने, ग्राहकों से संपर्क के साथ अदालत के कार्यों में सहायता करने का कार्य करते हैं। हालांकि, आज मुंशी इस पेशे में कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। उनके पास बैठने और काम करने तक की व्यवस्था नहीं है। सिविल कोर्ट के विधि लिपिक बैठने के लिए जगह समेत कई अन्य बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं। सभी तरह के मुकदमे में अधिवक्ताओं के साथ न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग करने वाले अधिवक्ता मुंशी अपने भविष्य और बुढ़ापे को लेकर चिंतित हैं। कोर्ट परिसर में जिला बार एसोसिएशन का नया भवन बन रहा है। विधि लिपिकों को मौखिक आश्वासन तो मिला है कि उन्हें इसमें बैठने की जगह मिलेगी, लेकिन वे इसे लेकर संशय में हैं। उनकी मांग है कि सरकार अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम बनाकर इसे लागू करे तो उनका भी भविष्य सुरक्षित होगा। आम बोलचाल की भाषा में इन्हें मुंशी भी कहा जाता है। ये किसी न किसी अधिवक्ता के साथ जुड़े होते हैं। मुंशी या विधि लिपिक अदालत में दर्ज होने वाले प्रत्येक मुकदमे की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। उन्हें कोर्ट में भाग-दौड़ करने के साथ-साथ मुकदमे की हर तारीख को नोट भी करना होता है। साथ ही मुवक्किलों के साथ अदालत में पेशी के समय मौजूद रहकर सभी जरूरी दस्तावेज मुहैया कराना होता है। पीड़ित को न्याय दिलाने में कारगर भूमिका निभाने वाले मुंशी खुद अपनी समस्याओं को लेकर जूझ रहे हैं। उनकी मांग है कि सरकार बिहार अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम बनाकर इसे लागू करे, ताकि उनका और उनके परिवार का भविष्य सुरक्षित हो। लंबे समय से वे इसकी मांग कर रहे हैं। बीमारी, हादसा या मौत के बाद इनपर पड़ता है मुसीबतों का पहाड़ विधि लिपिक जबतक स्वस्थ रहते हैं तो अपने परिवारों का भरण-पोषण एवं अन्य दायित्वों का निर्वहन करते हैं। लेकिन आकस्मिक मृत्यु, दुर्घटना होने या बीमार पड़ जाने पर इस समाज के परिवार सड़क पर आ जाते हैं। उनका कोई सहारा नहीं रह जाता है। ऐसे में परिवार के लोगों के बीच भुखमरी की स्थिति आ जाती है। बिहार अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम बनाने को लेकर बिहार सरकार से बहुत पहले से ही आग्रह एवं निवेदन किया जाता रहा। इतना ही नहीं पटना उच्च न्यायालय ने भी अधिवक्ता लिपिकों के कल्याण हेतु बिहार सरकार को उचित कदम उठाने के लिये दो बार आदेश निर्गत किया हैं। हालांकि इस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हो सका है। जबकि बिहार से ही अलग हुए झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, तमीलनाडु, केरल एवं ओडिशा आदि राज्यों में अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम लागू कर दिया है। पांच रुपये का स्टांप शुल्क लगाया जाए जमुई विधि लिपिक संघ के अध्यक्ष बताते है कि बिहार अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम बनाकर लागू करने से सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा। इस संबंध में केवल कानून बनाकर पॉलिसी लागू करना है, जिससे अधिवक्ता लिपिकों एवं उनके परिवारजनों का भला हो सकेगा। किसी भी मुकदमे के लिये अधिवक्ताओं के नाम से टिकट लगाया जाता है। अधिवक्ता लिपिक कल्याण अधिनियम के माध्यम से अधिवक्ताओं के साथ विधि लिपिकों के लिये भी 5 रुपये. का अतिरिक्त टिकट लगाया जाये ताकि उन्हें इसका सीधा लाभ मिल सके। शिकायत 1. कोर्ट में विधि लिपिकों के बैठने के लिए स्थायी कार्यालय नहीं है। 2. बिहार में वेलफेयर एक्ट लागू नहीं है, जबकी अन्य राज्यों में यह लागू है। 3. विधि लिपियो के कल्याण या अनुग्रह के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। 4. मुंशियों को किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है। सुझाव 1. विधि लिपिको को स्थायी कार्यालय मिलना चाहिए ,जहां सभी व्यवस्था उपलब्ध हो। 2. बिहार में भी वेलफेयर एक्ट लागू होना चाहिए, इससे मुंशियों को सामाजिक सुरक्षा मिलेगी। 3. मुकदमे में पांच रुपये का शुल्क लगाया जाये, जिससे आपात स्थिति में मुंशी। 4. मुंशियों को भी स्वास्थ्य, दुर्घटना बीमा, बैंक लोन जैसी सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए। हमारी भी सुनिए मुंशियों की आय बहुत कम और अनियमित होती है। कोर्ट से वेतन नहीं मिलता है, एक दिन में दो से चार केस आया तो उससे कुछ कमाई होती है। कभी-कभी एक भी केस नहीं मिलता है। मेरा यही निवेदन है कि हमलोगों को भी कोर्ट का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाए। - अवध किशोर प्रसाद मुंशी पहले से ही दयनीय हालत में थे। अब प्रतिस्पर्धा बढ़ने से और भी समस्याएं बढ़ गई हैं। कमाई कम हो गई है और महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहा है। हमलोगों को एक केस के लिए कम से कम पांच रुपया दिया जाए। इससे मुंशी आर्थिक तंगी से मुक्त हो पाएंगे। - रामचंद्र साव हमलोग निजी तौर पर कोर्ट में काम करते हैं। हमें बैंक से लोन तक जल्दी नहीं मिलता है। उम्र हो गई है जिसकी वजह से अब कोई अन्य काम भी नहीं कर सकते हैं। इस महंगाई में बड़ी मुश्किल से परिवार चला रहे हैं। - ऋृषिकांत राव इस पेशे का अब ज्यादा कोई महत्व नहीं रह गया है। आज लोग ऑनलाइन अपनी शिकायत दर्ज कर लेते हैं और उनको जरूरी मदद भी ऑनलाइन ही मिल जाती है। अब जल्दी मुवक्किल हमारे पास नहीं आते हैं। पहले से अब कमाई कम हो गई है। - राम विलास सिंह मुंशी पेशा में कई समस्याएं हैं। एक तो हमारी नौकरी निश्चित नहीं है। न ही कोई वेतन मिलता है। ऊपर से अधिक काम का बोझ रहता है। हमलोग अनिद्रा, मानसिक और शारीरिक थकान जैसी समस्याओं का सामना करते हैं। - अयोध्या यादव यह पेशा वर्ष 1990 तक सही चल रहा था लेकिन उसके बाद कई सारे बदलाव आ गए हैं। आज इस पेशे में भी अन्य पेशे की तरह अधिक प्रतिस्पर्धा हो गई है। जिसके कारण सबको प्रतिदिन काम नहीं मिल पाता है। अब पहले की तरह कमाई भी नहीं होती है। - रवि कुमार वेलफेयर एक्ट लागू नहीं किया जा रहा है। इसकी मांग हमलोग लंबे समय से कर रहे हैं। जबकि अन्य शहरों में बहुत पहले ही यह लागू हो गया था। इसके लागू हो जाने से हमें कई सुविधाएं मिलेंगी। - रामनीति यादव हमलोगों की यही मांग है कि जिस तरह बार कांउसिल है उसी प्रकार से अधिवक्ता विधि लिपिक परिसद का भी गठन किया जाए। इससे मुंशियों को मजबूती मिलेगी। हम अपनी बात को एक मंच के माध्यम से रख पाएंगे। इससे हमलोगों में एकजुटता आएगी। -योगेंद्र शर्मा मुंशी की मृत्यु के बाद उनके परिवार को आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। हमलोगों को पेंशन योजना का लाभ दिया जाए। इस योजना के आने से हमलोगों की जिंदगी में नई रोशनी की किरण आएगी। -पवन कुमार हमलोगों को कोई वेतन नहीं मिलता है, मुवक्किल के भरोसे ही हमारा घर चलता है। वो अपनी इच्छा के अनुसार जो दे देते हैं वही हमारी कमाई होती है। उसी से हमारा घर-परिवार चलता है। इतनी महंगाई में अच्छी कमाई नहीं होने से घर चलाना मुश्किल हो गया है। -मनोज कुमार हमलोगों को कब तक नया भवन मिलेगा इसकी जानकारी नहीं है। -वरून कुमार मुंशियों को कोई भी केस का रिकॉर्ड या जरूरी दस्तावेज देखने की अनुमति नहीं है। जबकी हमलोग ही बराबर अधिवक्ताओं के साथ मिलकर काम करते हैं। ये अपमान जनक लगता है। - रामानंद कुमार अस्थायी कार्यालय में काम करने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गर्मी और बरसात के दिनों में अधिक उमस, छत का टपकना, हवा, रोशनी की कमी जैसी समस्याओं से हमलोग जूझते हैं। हमारे पास कोई भी बुनियादी सुविधाएं नहीं है। -गोपाल तांती कचहरी परिसर में अधिवक्ताओं के साथ हमलोग बहुत कष्ट से काम कर रहे हैं। हमें जल्दी अपना भवन दिया जाए। -नीरज कुमार हमलोग स्वास्थ्य बीमा या पेंशन योजना से वंचित हैं। न ही कोई सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। हमलोग सुबह से शाम तक अधिवक्ता सहायक के तौर पर काम करते हैं, जो कोर्ट में कामकाज को सुचारू रूप से चलाने में मदद करते हैं। - अजीत साव हमलोगों के पास काम करने के लिए उचित स्थान की कमी है। अस्थायी शेड में काम करने को मजबूर हैं। -मो. मोजीबुर रहमान पहले अधिवक्ता एक्ट में विधि लिपिकों के लिए 10 प्रतिशत फीस निर्धारित किया गया था, लेकिन आज इसको मान्य नहीं समझा जाता है। पहले के मुकाबले अब इस पेशे में ज्यादा परेशानी होती है। कमाई भी कम हो गई है। -दिनेश सिंह मुंशी 12 से 15 घंटे तक काम करते हैं, लेकिन मुंशियों का सुख दुख पूछने वाला कोई नहीं है। पैसों की दिक्कत तो थी ही लेकिन हमारा भवन भी नहीं है। जिससे हमें काम करने में बहुत कठिनाई होती है। गर्मियों में और भी ज्यादा समस्या बढ़ जाती है। -सिंघेश्वर पासवान जिम्मेदारों ने बोला : अधिवक्ता लिपिकों को कोर्ट परिसर में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संघ इन समस्याओं से अवगत है मगर उनके समाधान के लिए कोष में राशि की व्यवस्था नहीं है । हमें संघ में कोष की राशि के लिए संगठित होना होगा तभी हम संघ के सदस्यों के भविष्य को संवार सकते हैं । -बच्चू तांती, अध्यक्ष, जमुई जिला अधिवक्ता लिपिक संघ जिला व्यवहार न्यायालय में 200 से अधिक अधिवक्ता लिपिकों के लिए कोई आर्थिक मदद की व्यवस्था नहीं है। जब वे मुसीबत में रहते हैं तो उन्हें अपने हालात से निकलने के लिए खुद ही व्यवस्था करनी पड़ती है। इसके लिए संघ को पहल करने की जरूरत है। -प्रभात सिंहा, उपाध्यक्ष, जमुई जिला अधिवक्ता लिपिक संघ अधिवक्ता लिपिकों को मुश्किल हालात में सहायता करने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जाती है। इससे अधिवक्ता लिपिक जब काम नहीं करते हैं तो उन्हें फाकाकशी करना पड़ता है। अधिवक्ता भी इस मामले में कुछ नहीं करते हैं । -विकास कुमार, कोषाध्यक्ष, जमुई जिला अधिवक्ता लिपिक संघ विधि लिपिकों के हित में कोई योजना नहीं बनी है। उनको सरकार की तरफ से दी जाने वाली कई योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए जिससे वह खुद को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुरक्षित महसूस कर सकें। जिले में 200 से अधिक अधिवक्ता लिपिक है जो कई सारी समस्याओं से जूझ रहे हैं। उनके समाधान की जरूरत है जिसके लिए संघ प्रयासरत है। -रमेश कुमार, सचिव, जमुई जिला अधिवक्ता लिपिक संघ
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