बोले जमुई : गर्मी की शुरुआत में ही सूखी उलाय नदी, बंद हो बालू खनन
नदियां जीवनदायिनी होती हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और अवैध खनन के कारण जिले की प्रमुख नदियों का जलस्तर घट रहा है। इससे 2000 से अधिक किसान प्रभावित हो रहे हैं और फसलें सूख रही हैं। नदियों के संरक्षण के...
नदियां जीवनदायिनी हैं। ये न केवल प्राकृतिक संसाधन हैं, बल्कि हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन की अभिन्न हिस्सा हैं। जिले की प्रमुख नदियां, जो कभी अपनी विशालता और जलप्रवाह के लिए प्रसिद्ध थीं। अब सूखने और सिकुड़ने लगी हैं। इस कारण जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट में वृद्धि हो रही है जो न केवल प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही है। बल्कि कृषि क्षेत्र और स्थानीय समुदायों के जीवन को भी प्रभावित कर रही हैं। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान नदी किनारे रहने वाले लोगों ने अपनी समस्या बताई।
02 हजार से अधिक किसान हो रहे हैं नदी सूख जाने से प्रभावित, फसलें सूख रहीं
01 सौ से 150 ट्रकों का रोज होता है आवागमन, टूटती हैं इलाके की सड़कें
01 ही बड़ी नदी है गिद्धौर के किनारे जिससे होती है फसलों की सिंचाई
नदियां कृषि को जीवन देती हैं। सिंचाई के लिए नदी किनारे के किसान इसके पानी पर निर्भर रहते हैं। अब नदियों के जलस्तर में गिरावट हो रही है। ये सूख रही हैं। खासकर उन क्षेत्रों में जहां कृषि पूरी तरह से नदियों के पानी पर निर्भर है, किसानों को सिंचाई के लिए पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इससे न केवल फसलें प्रभावित हो रही हैं, बल्कि किसानों के जीवन-यापन का भी संकट खड़ा हो गया है। यह समस्या धीरे-धीरे खाद्य संकट की ओर भी बढ़ सकती है, क्योंकि जलस्तर की कमी से फसलों का उत्पादन घटेगा। नदियों की संरक्षण के लिए सरकार द्वारा कई फैसले लिए जा रहे हैं। लेकिन जिले की प्रमुख नदियां मृतप्राय हैं। लगातार उपेक्षा किए जाने की वजह से अपनी अस्तित्व को खोते हुए विलुप्त होने के कगार पर हैं।
खेतों की सिंचाई का प्रमुख स्रोत रही हैं नदियां :
उलाय, आंजन, बरनार, नागी आदि नदियों में हर समय पानी रहता था। अब गर्मियों के शुरुआती दिनों में ही ये सूखने लगी हैं। कई जगहों पर यह मैदान में तब्दील हो गई हैं तो कहीं नदी को नाले के रूप में सीमित कर दिया गया है। एक दशक पूर्व इन नदियों में भीषण गर्मी के दिनों में भी कल-कल-छल-छल की आवाज के साथ पानी का बहाव जारी रहता था। लेकिन आज गर्मी के शुरुआती दिनों में यह नदी पूरी तरह सिकुड़ गई है। नदी ऊबड़-खाबड़ गढ्ढे में तब्दील हो गई है, जहां बालू के बदले पत्थर एवं कंकरीट नजर आ रहे हैं। उलाय और बरनार नदी इस क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी मानी जाती थी। अब अवैध खनन और मानवजनित कारणों से संकट में हैं। इन क्षेत्रों में नदियां एक समय में कृषि के लिए सिंचाई का प्रमुख स्रोत थीं, लेकिन अब इसका ही अस्तित्व संकट में है। नदियों के किनारे बसने वालों को भी पानी का लाभ नहीं मिल पा रहा है। नदियों का जलस्तर घटने और उनके सिकुड़ने से पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। मछली और पानी में रहनेवाली अन्य प्रजाति का जीवन खतरे में है। नदी के किनारे पक्षियों की आवासीय जगह कम हो रही है।
अतिक्रमण और अवैध खनन से नदियों का अस्तित्व संकट में :
नदी क्षेत्रों में अतिक्रमण और बालू खनन के कारण नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है। कई जगहों पर नदी का अतिक्रमण कर वहां अन्य निर्माण कर लिया गया है। इससे नदी का चौर कम हो गया है। कई जगहों पर खेती की जमीन में नदी का किनारा बन गया है। नदियों के प्रवाह क्षेत्र में कमी आई है। बालू खनन के कारण नदी तल में बदलाव आ रहा है, जलस्तर और भी घट रहा है। बालू उत्खनन ने जिले की सभी नदियों को नुकसान पहुंचाया है। सरकारी नियमों के विपरीत माफिया अवैध रूप से अधिक बालू खनन कर रहे हैं। उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं।
शिकायत
नदी से बालू का अवैध रूप से उत्खनन हो रहा है, जिससे बालू कम हो रहा है। पानी नीचे जा रहा है।
तीन फीट तक ही खुदाई करनी है लेकिन अधिक खुदाई कर बालू निकाला जा रहा है।
नदी से जमीन का कटाव रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है।
सुझाव
बालू के उत्खनन पर रोक लगाई जानी चाहिए, तभी नदी बचेगी।
निर्धारित सीमा तक ही नदी में खुदाई होनी चाहिए, गलत पर कार्रवाई करनी चाहिए।
नदी से जमीन का कटाव रोकने को लेकर बेहतर उपाय किए जाने चाहिए।
सुनें हमारी पीड़ा
बालू खनन से नदी का जलस्तर लगातार घट रहा है। पहले नदी से खेतों में पानी आता था, लेकिन अब बालू के खनन से नदी सूख चुकी है। अब पानी के लिए दूर-दूर जाना पड़ता है।
-सच्चिदानन्द मिश्रा
नदियों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। अवैध बालू खनन और अतिक्रमण के कारण नदियां सूख रही हैं। जिससे न केवल पानी की कमी हो रही है बल्कि असंतुलन भी उत्पन्न हो रहा है।
- कुणाल सिंह, संयोजक वन पर्यावरण एवं नदी संरक्षण समिति
बालू उत्खनन नदियों के अस्तित्व को खत्म करने पर तुला है। अगर सरकार अभी सचेत नहीं होगी तो आने वाले समय मे स्थिति बहुत भयावह होगी।
-श्रवण कुमार यादव, संरक्षक, वन पर्यावरण एवं नदी संरक्षण समिति
हमारे गांव में नदी के किनारे बहुत सारे खेत थे। हर साल अच्छी फसल लेते थे। अब नदी का पानी कम हो गया है और बुआई के समय पानी की भारी कमी हो जाती है। खेती करना मुश्किल हो गया है।
शेषनारायण सिंह
नदियां हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा है, अगर इनका संरक्षण नहीं हुआ, तो हम पानी के बिना बर्बाद हो जाएंगे। हम सरकार से मांग करते हैं कि नदी संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए।
-कामिनी सिन्हा
मानवजनित कारणों से नदियां प्रभावित हो रही हैं। जहां सालों भर नदी में पानी की धारा बहती थी, वह आज मैदान बन चुकी है, सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
-योगेंद्र राम
यह सही है कि नदियां के संरक्षण को लेकर सबको मिलकर इस पर ध्यान देना होगा। अगर जलस्तर बढ़ने के उपाय नहीं किए गए, तो हमारी आने वाली पीढ़ी को यह नदियां नहीं मिलेंगी।
-प्रभाकर कुमार
नदी में पानी की कमी के कारण हमारी फसलें सूख जाती हैं। अब हमें खेती में बारिश के भरोसे रहना पड़ता है। अगर बारिश हुई तो पैदावार होता है और अगर नहीं तो सूखा झेलना होता है।
-बिहारी भगत
बालू खनन ने हमारी नदियों को पूरी तरह से तबाह कर दिया है। पहले नदियों में पानी की अधिकता होती थी, लेकिन अब हर साल गर्मी बढ़ने के साथ नदी में पानी खत्म हो रहा है।
-परशुराम सिंह
नदी का पानी अब केवल गड्डों में ही नजर कुछ आता है। पहले खेतों में सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिलता था, अब पानी के बिना फसलें मुरझा रही हैं।
-गुड्डन सिंह
बालू खनन ने हमारी नदियों को पूरी तरह से प्रभावित किया है। नदी का तल अब नष्ट हो चुका है और पानी की कमी हो गई है। यह खनन तुरंत बंद होना चाहिए ताकि नदियां सुरक्षित रह सकें।
-शम्भु कुमार केशरी
नदियां हमारी जीवनरेखा हैं। नदियों के बिना हमारे खेत बंजर हो जाएंगे। इनकी रक्षा के लिए सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इन्हें देख सके।
-दयानंद रावत
सिर्फ सरकार ही नहीं, स्थानीय समुदायों और पर्यावरण संरक्षण संगठनों को भी नदियों के संरक्षण की दिशा में काम करना होगा, ताकि नदियां सुरक्षित रह सकें।
-सुशांत साईं सुंदरम
पहले नदियों में सालों भर पानी रहता था। लेकिन अब पानी खोजने पर भी नहीं मिलता है। बालू का खनन रोकना चाहिए।
-मुन्ना सोनार
नदियों में घटता जलस्तर आने वाले समय मे मानव समुदाय के लिए बहुत बड़ा खतरा है। जल के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है।
-सर्वेश कुमार मिश्रा
नदियां जीवनदायिनी रही हैं। पहले ये नदियां खेतों को पानी देती थी, लेकिन अब सूखने लगी हैं। सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा। जिससे फसलें खराब हो रही हैं।
-रामदेव यादव
बोले जिम्मेदार
नदी में निर्धारित सीमा तक ही खुदाई कर बालू का उठाव किया जाना है। इससे संबंधित शिकायत मिलने पर विभाग को लगातार जांच किए जाने को कहा गया है। अवैध उत्खनन के खिलाफ प्रशासन सख्त है। लगातार कार्रवाई कर रही है।
-अभिलाषा शर्मा, डीएम, जमुई
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