संसार विषवृक्ष है, तो सत्संग व ज्ञान अमृत फल : राज्यपाल
संसार विषवृक्ष है, तो सत्संग व ज्ञान अमृत फल : राज्यपालसंसार विषवृक्ष है, तो सत्संग व ज्ञान अमृत फल : राज्यपालसंसार विषवृक्ष है, तो सत्संग व ज्ञान अमृत फल : राज्यपाल

संसार विषवृक्ष है, तो सत्संग व ज्ञान अमृत फल : राज्यपाल राजगीर में मोरारी बापू की रामकथा में पहुंचे राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान कहा-दो दशक पहले से संतवचन का उठा रहा हूं लाभ फोटो : राज्यपाल01 : राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल में मंगलवार को मोरारी बापू की कथावाचन सभा को संबोधित करते राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान। राज्यपाल02 : राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल में मंगलवार को मोरारी बापू से आशीर्वाद लेते राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान। राज्यपाल03 : राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल में मंगलवार को मोरारी बापू की कथावाचन सभा में श्रोता बने बैठे राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान। राजगीर, निज संवाददाता।
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान मंगलवार को राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में आयोजित रामकथा सुनने पहुंचे। उन्होंने कथावाचक मोरारी बापू व श्रद्धालुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त की और कहा कि बापू से जो प्यार और आशीर्वाद उन्हें मिल रहा है, इससे वे कभी मुक्त नहीं हो सकते हैं। यह उनका सौभाग्य है कि पिछले दो दशकों से उन्हें बापू का स्नेह प्राप्त है। राज्यपाल ने संस्कृत के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा कि संसार विषवृक्ष है और विष भरे इस संसार में दो अमृत फल हैं। पहला, सद्ग्रंथों और काव्यों से निकलने वाला ज्ञान रूपी अमृत और दूसरा संतों की संगति यानि सत्संग। वर्तमान माहौल में दुनिया हमारा ध्यान भटकाती है, वहीं बापू अपने वचन अमृत और राम कथा से हमें हमारे आदर्शों और मूल्यों की याद दिलाते हैं। लोगों के हित के लिए प्रवास करते हैं संत : उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त का उल्लेख करते हुए कहा-राम तुम्हारा चरित्र स्वयं काव्य है, कोई कवि बन जाए यह सहज संभाव्य है। उन्होंने संतों के महत्व को समझाते हुए कहा कि वे वसंत ऋतु की तरह लोगों के हित के लिए प्रवास करते हैं और स्वयं भवसागर को पार करने के साथ-साथ दूसरों को भी बिना स्वार्थ के इसे पार करने में मदद करते हैं। हमारी संस्कृति आत्मा से परिभाषित : राज्यपाल ने श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का जिक्र करते हुए कहा कि भक्त वे हैं जिनका मन ईश्वर में लगा है। जिनके प्राण अर्पित हैं, जो एक-दूसरे को बोध कराते हैं और निरंतर कथा कहते हुए आनंद लेते हैं। हमारी संस्कृति भाषा या उपासना के तरीके से नहीं, बल्कि आत्मा से परिभाषित होती है। अहम ब्रह्मास्मि, तत्वमसि, प्रज्ञानम ब्रह्मा, अयम आत्मा ब्रह्मा। उन्होंने बापू के एक वाक्य का जिक्र किया मैं सुधारने नहीं आया हूं, मैं स्वीकार करने आया हूं। इसे भारतीय आध्यात्मिक परंपरा की आत्मा बताया। कहा कि हमें विविधता और अनेकता का सम्मान करना चाहिए। लेकिन, इसके पीछे छुपी हुई एकता को भी समझना चाहिए। उन्होंने संत तुकाराम के उदाहरण से भक्ति भाव की महिमा भी बताई। अपनी बात समाप्त करते हुए कहा कि बापू के आशीर्वाद से हम सब इस आध्यात्मिक अमृत का पान कर सकें।
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